"महाभारत सभा पर्व अध्याय 9 श्लोक 23-30": अवतरणों में अंतर
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नवम (9) अध्याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)
भरतवंशी राजेन्द्र युधिष्ठिर ! लंघती, गोमती, संध्या और त्रिस्त्रोतसी, ये तथा दूसरे लोक विख्यात उत्तम तीर्थ (वहाँ वरूण की उपासना करते हैं )। समस्त सरिताएँ, जलाशय, सरोवर, कूप, झरने, पोखरे और तालाब, सम्पूर्ण दिशाएँ, पृथ्वी तथा सम्पूर्ण जलचर जीव अपने-अपने स्वरूप धारण करके महात्मा वरूणा की उपासना करते हैं। सभी गन्धर्व और अप्सराओं के समुदाय भी गीत गाते और बाजे बजाते हुए उस सभा में वरूण देवता की स्तुति एवं उपासना करते हैं। रत्नयुक्त पर्वत और प्रतिष्ठित रस (मूर्तिमान् होकर) अत्यन्त मधुर कथाएँ कहते हुए वहाँ निवास करते हैं। वरूण का मन्त्री सुनाभ अपने पुत्र-पौत्रों से घिरा हुआ गौ तथा पुष्कर नाम वाले तीर्थ के साथ वरूण देव की उपासना करता है। ये सभी शरीर धारण करके लोकश्वर वरूण की उपासना करते रहते हैं। भरतश्रेष्ठ ! पहले सब ओर घूमते हुए मैंने वरूण जी की इस रमणीय सभा का भी दर्शन किया है । अब तुम कुबेर की सभा का वर्णन सुनो ।
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