"महाभारत सभा पर्व अध्याय 10 श्लोक 25-40": अवतरणों में अंतर
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दशम (10) अध्याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)
इनके सिवा और भी विविध वस्त्राभूषणों से विभूषित और प्रसन्नचित्त सैकड़ों गन्धर्वपति विश्वावसु, हाहा, हूहू, तुम्बुरू, पर्वत, शैलूष, संगीतज्ञ चित्रसेन तथा चित्ररथ-ये और अन्य मन्धर्व भी धनाध्यक्ष कुबेर की उपासना करते हैं । विद्याधरों के अधिपति चक्रधर्मा भी अपने छोटे भाइयों के साथ वहाँ धनेश्वर भगवान् कुबेर की आराधना करते हैं। भगदत्त आदि राजा भी उस सभा में बैठते हैं तथा किन्नरों के स्वामी द्रुम कुबेर की उपासना करते हैं। महेन्द्र, गन्धमादन एवं धर्मनिष्ठ राक्षसराज विभीषण भी यक्षों, गन्धवों तथा सम्पूर्ण निशाचरों के साथ अपने भाई भगवान् कुबेर की उपासना करते हैं। हिमवान्, पारियात्र, विन्ध्य, कैलास, मन्दराचल, मलय, दर्दुर, महेन्द्र, गन्धमादन और इन्द्रकील तथा सुनाभ नाम-वाले दोनों दिव्य पर्वत-ये तथा अन्य सब मेरू आदि बहुत-से पर्वत धन के स्वामी महामना प्रभु कुबेर की उपासना करते हैं ।
भगवान् नन्दीश्वर, महाकाल तथा शंकु कर्ण आदि भगवान् शिव के सभी दिव्य-पार्षद काष्ठ, कुटीमुख, दन्ती, तपस्वी विजय तथा गर्जनशील महाबली श्वेत वृषभ वहाँ उपस्थित रहते हैं। दूसरे-दूसरे राक्षस और पिशाच भी धनदाता कुबेर की उपासना करते हैं । पार्षदों से घिरे हुए देवदेवेश्वर, त्रिभुवन-भावन, बहुरूपधारी, कल्याण स्वरूप, उमावल्लभ भगवान् महेश्वर जब उस सभा में पधारते हैं, तब पुलस्त्यनन्दन धनाध्यक्ष कुबेर उन के चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम करते और उनकी आज्ञा ले उन्हीं के पास बैठ जाते हैं । उनका सदा यही नियम है । कुबेर के सखा भगवान् शंकर कभी-कभी उस सभा में पदार्वण किया करते हैं । श्रेष्ठ निधियों में प्रमुख और धन के अधीश्वर शंख तथा पद्म-ये दोनों (मूर्तिमान् हो) अन्य सब निधियों को साथ ले धनाध्यक्ष कुबेर की उपासना करते हैं। राजन् ! कुबेर की वैसी रमणीय सभा जो आकाश में विचरने वाली है, मैंने अपनी आँखों देखी है । अब मैं ब्रह्मा जी की सभा का वर्णन करूँगा, उसे सुनो।
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