"महाभारत विराट पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-14": अवतरणों में अंतर

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भीमसेन और अर्जुन द्वारा विराटनगर में किये जाने वाले अपने अनुकूल कार्यों का निर्देश
भीमसेन और अर्जुन द्वारा विराटनगर में किये जाने वाले अपने अनुकूल कार्यों का निर्देश


भीमसेन ने कहा- भरतवंशशिरोमणि ! मैं पौरोगर्व (पाकशाला का अध्यक्ष) बनकर और बल्लव के नाम से अपना परिचय देकर राजा विराट के दरबार में उपस्थि होऊँगा। मेरा यही विचार है। मैं रसोई बनाने के काम में चतुर हूँ। अपने ऊपर राजा के मन में अत्यंत प्रेम उत्पन्न करने के उद्देश्य से उनके लिये सूप (दाल, कढ़ी, एंव साग) तैयार करूँगा और पाकशाला में भलीभाँति शिक्षा पाये हुए चतुर रसोइयों ने राजा के लिये पहले जो-जो व्यंजन बनाये होंगे, उन्हें भी अपने बलाये हुए व्यंज्नों से तुच्छ सिद्ध कर दूँगा। इतना ही नहीं, मैं रसोइ के लिये लकडि़यो के बड़े से बड़े गट्ठों को भी उठा लाऊँगा, जिस महान् कर्म को देखकर राजा विराट मुऐ अवश्य रसोइये के काम पर नियुक्त कर लेंगे। भारत ! मैं वहाँ ऐसे-ऐसे अद्भुत कार्य करत रहूँगा, जो साधारण मनुष्यों की शक्ति के बाहर है। इससे राजा विराट के दूसरे सेवक राजा विराट की तरह ही मेरा सम्मान करेंगे और मैं भक्ष्य, भोज्य, रस और पेय पदार्थों का इच्छानुसार उपयोग करने में समर्थ होऊँगा। राजन् ! बलवान् हाथी अथवा महाबली बैल भी यदि काबू में करने के लिये मुण्े सौंपे जाँगे तो मैं उन्हें भी बाँधकर अपने वश में कर लूँगा । तथा जो कोई भी मल्लयुद्ध करने वाले पहलवान जन-समाज में दंगल करना चाहेंगे, राजा का प्रेम बढ़ाने के लिये मैं उनसे भी भिड़ जाऊँगा। परंतु कुश्ती करने वाले इन पहलवानों को मैं किसी प्रकार जान से नहीं मारूँगा; अपितु इस प्राकर नीख्चे गिराऊँगा, जिससे उनकी मृत्यु न हो। माराज के पूछने पर मैं यह कहूँगा कि मैं राजा युधिष्ठिर के यहाँ आरालिक (मतवाले हाथियों को भी काबू में करने वाला गजशिक्षक), गोविकर्ता (महाबली वृषभों को भी पछाड़कर उन्हें नाथने वाला), सूपकर्ता (दाल-साग आदि भाँति-भाँति के व्यन्जन बनाने वाला) तथा नियोधक (दंगली पहलवान) रहा हूँ। राजन् ! अपने-आप अपनी रक्षा करते हुए मैं विराट के नगर में विचरूँगा। मुझे विश्वास है कि इस प्रकार मैं वहाँ सुखपूर्वक रह सकूँगा।
भीमसेन ने कहा- भरतवंशशिरोमणि ! मैं पौरोगर्व (पाकशाला का अध्यक्ष) बनकर और बल्लव के नाम से अपना परिचय देकर राजा विराट के दरबार में उपस्थि होऊँगा। मेरा यही विचार है। मैं रसोई बनाने के काम में चतुर हूँ। अपने ऊपर राजा के मन में अत्यंत प्रेम उत्पन्न करने के उद्देश्य से उनके लिये सूप (दाल, कढ़ी, एवं साग) तैयार करूँगा और पाकशाला में भलीभाँति शिक्षा पाये हुए चतुर रसोइयों ने राजा के लिये पहले जो-जो व्यंजन बनाये होंगे, उन्हें भी अपने बलाये हुए व्यंज्नों से तुच्छ सिद्ध कर दूँगा। इतना ही नहीं, मैं रसोइ के लिये लकडि़यो के बड़े से बड़े गट्ठों को भी उठा लाऊँगा, जिस महान् कर्म को देखकर राजा विराट मुऐ अवश्य रसोइये के काम पर नियुक्त कर लेंगे। भारत ! मैं वहाँ ऐसे-ऐसे अद्भुत कार्य करत रहूँगा, जो साधारण मनुष्यों की शक्ति के बाहर है। इससे राजा विराट के दूसरे सेवक राजा विराट की तरह ही मेरा सम्मान करेंगे और मैं भक्ष्य, भोज्य, रस और पेय पदार्थों का इच्छानुसार उपयोग करने में समर्थ होऊँगा। राजन् ! बलवान् हाथी अथवा महाबली बैल भी यदि काबू में करने के लिये मुण्े सौंपे जाँगे तो मैं उन्हें भी बाँधकर अपने वश में कर लूँगा । तथा जो कोई भी मल्लयुद्ध करने वाले पहलवान जन-समाज में दंगल करना चाहेंगे, राजा का प्रेम बढ़ाने के लिये मैं उनसे भी भिड़ जाऊँगा। परंतु कुश्ती करने वाले इन पहलवानों को मैं किसी प्रकार जान से नहीं मारूँगा; अपितु इस प्राकर नीख्चे गिराऊँगा, जिससे उनकी मृत्यु न हो। माराज के पूछने पर मैं यह कहूँगा कि मैं राजा युधिष्ठिर के यहाँ आरालिक (मतवाले हाथियों को भी काबू में करने वाला गजशिक्षक), गोविकर्ता (महाबली वृषभों को भी पछाड़कर उन्हें नाथने वाला), सूपकर्ता (दाल-साग आदि भाँति-भाँति के व्यन्जन बनाने वाला) तथा नियोधक (दंगली पहलवान) रहा हूँ। राजन् ! अपने-आप अपनी रक्षा करते हुए मैं विराट के नगर में विचरूँगा। मुझे विश्वास है कि इस प्रकार मैं वहाँ सुखपूर्वक रह सकूँगा।
युधिष्ठिर बोले - जो मनुष्यों में श्रेष्ठ महाबली ओर महाबाहु है, पहले भगवान  श्रीकृष्ण के साथ बैठे हुए जिस अर्जुन के पास खाण्डववन को जलाने की इच्छा से ब्राह्मण का रूप धारण करके साक्षात् अग्निदेव पधारे थे, जो कुरुकुल को आनन्द देने वाला तथा किसी से भी परास्त न होने वाला है, वह कुन्तीनन्दन धनंजय विराटनगर में कौन सा कार्य करेगा ? जिससे खण्डवदाह के समय वहाँ पहुँचकर एकमात्र रथ का आश्रय ले इन्द्र को पराजित कर तथा नागों एवं राक्षसों को मारकर अग्निदेव को तृप्त किया और अपने अप्रतिम सौन्दर्य से नागराज वासुकि की बहिन उलूपी का चित्त चुरा लिया एवं जो सचमुच युद्ध करने वाले वीरों में सबसे श्रेष्ठ है, वह अर्जुन वहाँ क्या काम करेगा ?
युधिष्ठिर बोले - जो मनुष्यों में श्रेष्ठ महाबली ओर महाबाहु है, पहले भगवान  श्रीकृष्ण के साथ बैठे हुए जिस अर्जुन के पास खाण्डववन को जलाने की इच्छा से ब्राह्मण का रूप धारण करके साक्षात् अग्निदेव पधारे थे, जो कुरुकुल को आनन्द देने वाला तथा किसी से भी परास्त न होने वाला है, वह कुन्तीनन्दन धनंजय विराटनगर में कौन सा कार्य करेगा ? जिससे खण्डवदाह के समय वहाँ पहुँचकर एकमात्र रथ का आश्रय ले इन्द्र को पराजित कर तथा नागों एवं राक्षसों को मारकर अग्निदेव को तृप्त किया और अपने अप्रतिम सौन्दर्य से नागराज वासुकि की बहिन उलूपी का चित्त चुरा लिया एवं जो सचमुच युद्ध करने वाले वीरों में सबसे श्रेष्ठ है, वह अर्जुन वहाँ क्या काम करेगा ?



13:17, 7 मई 2017 के समय का अवतरण

द्वितीय (2) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)

महाभारत: विराट पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 1- 14 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन और अर्जुन द्वारा विराटनगर में किये जाने वाले अपने अनुकूल कार्यों का निर्देश

भीमसेन ने कहा- भरतवंशशिरोमणि ! मैं पौरोगर्व (पाकशाला का अध्यक्ष) बनकर और बल्लव के नाम से अपना परिचय देकर राजा विराट के दरबार में उपस्थि होऊँगा। मेरा यही विचार है। मैं रसोई बनाने के काम में चतुर हूँ। अपने ऊपर राजा के मन में अत्यंत प्रेम उत्पन्न करने के उद्देश्य से उनके लिये सूप (दाल, कढ़ी, एवं साग) तैयार करूँगा और पाकशाला में भलीभाँति शिक्षा पाये हुए चतुर रसोइयों ने राजा के लिये पहले जो-जो व्यंजन बनाये होंगे, उन्हें भी अपने बलाये हुए व्यंज्नों से तुच्छ सिद्ध कर दूँगा। इतना ही नहीं, मैं रसोइ के लिये लकडि़यो के बड़े से बड़े गट्ठों को भी उठा लाऊँगा, जिस महान् कर्म को देखकर राजा विराट मुऐ अवश्य रसोइये के काम पर नियुक्त कर लेंगे। भारत ! मैं वहाँ ऐसे-ऐसे अद्भुत कार्य करत रहूँगा, जो साधारण मनुष्यों की शक्ति के बाहर है। इससे राजा विराट के दूसरे सेवक राजा विराट की तरह ही मेरा सम्मान करेंगे और मैं भक्ष्य, भोज्य, रस और पेय पदार्थों का इच्छानुसार उपयोग करने में समर्थ होऊँगा। राजन् ! बलवान् हाथी अथवा महाबली बैल भी यदि काबू में करने के लिये मुण्े सौंपे जाँगे तो मैं उन्हें भी बाँधकर अपने वश में कर लूँगा । तथा जो कोई भी मल्लयुद्ध करने वाले पहलवान जन-समाज में दंगल करना चाहेंगे, राजा का प्रेम बढ़ाने के लिये मैं उनसे भी भिड़ जाऊँगा। परंतु कुश्ती करने वाले इन पहलवानों को मैं किसी प्रकार जान से नहीं मारूँगा; अपितु इस प्राकर नीख्चे गिराऊँगा, जिससे उनकी मृत्यु न हो। माराज के पूछने पर मैं यह कहूँगा कि मैं राजा युधिष्ठिर के यहाँ आरालिक (मतवाले हाथियों को भी काबू में करने वाला गजशिक्षक), गोविकर्ता (महाबली वृषभों को भी पछाड़कर उन्हें नाथने वाला), सूपकर्ता (दाल-साग आदि भाँति-भाँति के व्यन्जन बनाने वाला) तथा नियोधक (दंगली पहलवान) रहा हूँ। राजन् ! अपने-आप अपनी रक्षा करते हुए मैं विराट के नगर में विचरूँगा। मुझे विश्वास है कि इस प्रकार मैं वहाँ सुखपूर्वक रह सकूँगा। युधिष्ठिर बोले - जो मनुष्यों में श्रेष्ठ महाबली ओर महाबाहु है, पहले भगवान श्रीकृष्ण के साथ बैठे हुए जिस अर्जुन के पास खाण्डववन को जलाने की इच्छा से ब्राह्मण का रूप धारण करके साक्षात् अग्निदेव पधारे थे, जो कुरुकुल को आनन्द देने वाला तथा किसी से भी परास्त न होने वाला है, वह कुन्तीनन्दन धनंजय विराटनगर में कौन सा कार्य करेगा ? जिससे खण्डवदाह के समय वहाँ पहुँचकर एकमात्र रथ का आश्रय ले इन्द्र को पराजित कर तथा नागों एवं राक्षसों को मारकर अग्निदेव को तृप्त किया और अपने अप्रतिम सौन्दर्य से नागराज वासुकि की बहिन उलूपी का चित्त चुरा लिया एवं जो सचमुच युद्ध करने वाले वीरों में सबसे श्रेष्ठ है, वह अर्जुन वहाँ क्या काम करेगा ?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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