"महाभारत आदि पर्व अध्याय 29 श्लोक 35-44": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 35-44 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 35-44 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
‘महाबली पक्षिराज ! संग्राम में देवताओं के साथ युद्ध करते समय ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, पवित्र हविष्य, सम्पूर्ण रहस्य तथा सभी वेद तुम्हें बल प्रदान करें।’ पिता के ऐसा कहने पर गरूड़ उस सरोवर के निकट गये। उन्होंने देखा, सरोवर का जल अत्यन्त निर्मल है और नाना प्रकार के पक्षी इसमें सब ओर चहचहा रहे हैं। तदनन्तर भयंकर वेगशाली अन्तरिक्षगामी गरूड़ ने पिता के वचन का स्मरण करके एक पंजे से हाथी को और दूसरे से कछुए को पकड़ लिया। फिर वे पक्षिराज आकाश में ऊँचे उड़ गये। उड़कर वे फिर उलम्बतीर्थ में जा पहुँचे। वहाँ (मेरू गिरिपर) बहुत से दिव्यवृ़क्ष अपनी सुवर्णमय शाखा प्रशाखाओं के साथ लहलहा रहे थे। जब गरूड़ उनके पास गये, तब उनके पंखों की वायु से आहत होकर वे सभी दिव्यवृ़क्ष इस भय से कम्पित हो उठे कि कहीं ये हमें तोड़ न डालें। गरूड़ | ‘महाबली पक्षिराज ! संग्राम में देवताओं के साथ युद्ध करते समय ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, पवित्र हविष्य, सम्पूर्ण रहस्य तथा सभी वेद तुम्हें बल प्रदान करें।’ पिता के ऐसा कहने पर गरूड़ उस सरोवर के निकट गये। उन्होंने देखा, सरोवर का जल अत्यन्त निर्मल है और नाना प्रकार के पक्षी इसमें सब ओर चहचहा रहे हैं। तदनन्तर भयंकर वेगशाली अन्तरिक्षगामी गरूड़ ने पिता के वचन का स्मरण करके एक पंजे से हाथी को और दूसरे से कछुए को पकड़ लिया। फिर वे पक्षिराज आकाश में ऊँचे उड़ गये। उड़कर वे फिर उलम्बतीर्थ में जा पहुँचे। वहाँ (मेरू गिरिपर) बहुत से दिव्यवृ़क्ष अपनी सुवर्णमय शाखा प्रशाखाओं के साथ लहलहा रहे थे। जब गरूड़ उनके पास गये, तब उनके पंखों की वायु से आहत होकर वे सभी दिव्यवृ़क्ष इस भय से कम्पित हो उठे कि कहीं ये हमें तोड़ न डालें। गरूड़ रुचि के अनुसार फल देने वाले उन कल्य वृक्षों को काँपते देख अनुपम रूप-रंग तथा अंगों वाले दूसरे-दूसरे महावृक्षों की ओर चल दिये। उनकी शाखाएँ वैदूर्य मणि की थीं और वे सुवर्ण तथा रजतमय फलों से सुशोभित हो रहे थे। वे सभी महावृक्ष समुद्र के जल से अभिषिक्त होते रहते थे। वहीं एक बहुत बड़ा विशाल वट वृक्ष था। उसने मन के समान तीव्र वेग से आते हुए पक्षियों के सरदार गरूड़ से कहा। वटवृक्ष बोला—पक्षिराज ! यह जो मेरी सौ योजन तक फैली हुई सबसे बड़ी शाखा है, इसी पर बैठकर तुम इस हाथी और कछुए को खा लो। तब पर्वत के समान विशाल, शरीर वाले, पक्षियों में श्रेष्ठ, वेगशाली गरूड़ सहस्त्रों विहंगमों से सेवित उस महान् वृक्ष को कम्पित करते हुए तुरन्त उस पर जा बैठे। बैठते ही अपने असह्म वेग से उन्होंने सघन पल्लवों से सुशोभित उस विशाल शाखा को तोड़ डाला। | ||
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11:12, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
एकोनत्रिंश (29) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
‘महाबली पक्षिराज ! संग्राम में देवताओं के साथ युद्ध करते समय ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, पवित्र हविष्य, सम्पूर्ण रहस्य तथा सभी वेद तुम्हें बल प्रदान करें।’ पिता के ऐसा कहने पर गरूड़ उस सरोवर के निकट गये। उन्होंने देखा, सरोवर का जल अत्यन्त निर्मल है और नाना प्रकार के पक्षी इसमें सब ओर चहचहा रहे हैं। तदनन्तर भयंकर वेगशाली अन्तरिक्षगामी गरूड़ ने पिता के वचन का स्मरण करके एक पंजे से हाथी को और दूसरे से कछुए को पकड़ लिया। फिर वे पक्षिराज आकाश में ऊँचे उड़ गये। उड़कर वे फिर उलम्बतीर्थ में जा पहुँचे। वहाँ (मेरू गिरिपर) बहुत से दिव्यवृ़क्ष अपनी सुवर्णमय शाखा प्रशाखाओं के साथ लहलहा रहे थे। जब गरूड़ उनके पास गये, तब उनके पंखों की वायु से आहत होकर वे सभी दिव्यवृ़क्ष इस भय से कम्पित हो उठे कि कहीं ये हमें तोड़ न डालें। गरूड़ रुचि के अनुसार फल देने वाले उन कल्य वृक्षों को काँपते देख अनुपम रूप-रंग तथा अंगों वाले दूसरे-दूसरे महावृक्षों की ओर चल दिये। उनकी शाखाएँ वैदूर्य मणि की थीं और वे सुवर्ण तथा रजतमय फलों से सुशोभित हो रहे थे। वे सभी महावृक्ष समुद्र के जल से अभिषिक्त होते रहते थे। वहीं एक बहुत बड़ा विशाल वट वृक्ष था। उसने मन के समान तीव्र वेग से आते हुए पक्षियों के सरदार गरूड़ से कहा। वटवृक्ष बोला—पक्षिराज ! यह जो मेरी सौ योजन तक फैली हुई सबसे बड़ी शाखा है, इसी पर बैठकर तुम इस हाथी और कछुए को खा लो। तब पर्वत के समान विशाल, शरीर वाले, पक्षियों में श्रेष्ठ, वेगशाली गरूड़ सहस्त्रों विहंगमों से सेवित उस महान् वृक्ष को कम्पित करते हुए तुरन्त उस पर जा बैठे। बैठते ही अपने असह्म वेग से उन्होंने सघन पल्लवों से सुशोभित उस विशाल शाखा को तोड़ डाला।
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