"महाभारत आदि पर्व अध्याय 16 श्लोक 20-25": अवतरणों में अंतर
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षोडश (16) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
‘मा ! तूने लोभ के वशीभूत होकर मुझे इस प्रकार अधूरे शरीर का बना दिया— मेरे समस्त अंगो को पूर्णतः विकसित एवं पुष्ट नहीं होने दिया; इसलिये जिस सौत के साथ तू लाग-डाँट रखती है, उसी की पाँच सौ वर्षो तक दासी बनी रहेगी। ‘और मा ! यह जो दूसरे अण्डे में तेरा पुत्र है, यही तुझे दासी-भाव से छुटकारा दिलायेगा; किन्तु माता ! ऐसा तभी हो सकता है जब तू इस तपस्वी पुत्र को मेरी ही तरह अण्डा फोड़कर अंगहीन या अधूरे अंगो से युक्त न बना देगी। ‘इसलिये यदि तू इस बालक को विशेष बलवान बनाना चाहती है तो पाँच सौ वर्ष के बाद तक तुझे धैर्य धारण करके इसके जन्म की प्रतीक्षा करनी चाहिये।' इस प्रकार विनता को शाप देकर यह बालक अरूण अन्तरिक्ष में उड़ गया। ब्रह्मन! तभी से प्रातःकाल (प्राची दिशा में) सदा जो लाली दिखायी देती है, उसके रूप में विनता के पुत्र अरुण का ही दर्शन होता है। वह सूर्यदेव के रथ पर जा बैठा और उनके सारथि का काम सँभालने लगा। तदनन्तर समय पूरा होने पर सर्प संहारक गरूड़ का जन्म हुआ। भृगु श्रेष्ठ ! पक्षी राज गरूड़ जन्म लेते ही क्षुधा से व्याकुल हो गये और विश्वता ने उनके लिये जो आहार नियत किया था, अपने उस भोज्य पदार्थ को प्राप्त करने के लिये माता विनता को छोडकर आकाश में उड़ गये।
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