"महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 25 श्लोक 37-43": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: कर्ण पर्व: पञ्चविंश अध्याय: श्लोक 37-43 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: कर्ण पर्व: पञ्चविंश अध्याय: श्लोक 37-43 का हिन्दी अनुवाद</div>


वह महान् खंग कटकर सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ा। भारत ! सुनदर मूठवाले उस खंग का आधा भाग सुतसोम के हाथ में ही रह गया। अपने उस खंग को कटा हुआ जान महारथी सुतसोम ने छः पग ऊँचे उछलकर उसके शेष भाग को ही शकुनि पर दे मारा। वह स्वर्ण और हीरे से विभूषित कटा हुआ खंग रणभूमि में महामना शकुनि के धनुष को प्रत्यन्चा सहित काअकर तुरंत ही पृथ्वी पर गिर पड़ा। तत्पश्चात् सुतसोम श्रुतकीर्ति के विशाल रथ पर चढ़ गया। उधर शकुनि भी दूसरा अत्यन्त दुर्जय एवं भयंकर धनुष लेकर बहुत से शत्रुओं का संहार करता हुआ पाण्डव-सेना की ओर चल दिया। प्रजानाथ ! सुबल पुत्र शकुनि को समर भूमि में निर्भय से विचरते देख पाण्डव-दल में महान् सिंहनाद होने लगा।  महामना शकुनि ने घमंड में भरे हुए उन शस्त्र सम्पन्न महान् सैनिको को भगा दिया। यह सब हमने अपनी अँाखों देखा। राजन् ! जिस प्रकार देवराज इन्द्र ने दैत्यों की सेना को कुचल दिया था,उसी प्रकार सुबल पुत्र शकुनि ने पाण्डव-सेना का विनाश कर डाला।
वह महान् खंग कटकर सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ा। भारत ! सुनदर मूठवाले उस खंग का आधा भाग सुतसोम के हाथ में ही रह गया। अपने उस खंग को कटा हुआ जान महारथी सुतसोम ने छह पग ऊँचे उछलकर उसके शेष भाग को ही शकुनि पर दे मारा। वह स्वर्ण और हीरे से विभूषित कटा हुआ खंग रणभूमि में महामना शकुनि के धनुष को प्रत्यन्चा सहित काअकर तुरंत ही पृथ्वी पर गिर पड़ा। तत्पश्चात् सुतसोम श्रुतकीर्ति के विशाल रथ पर चढ़ गया। उधर शकुनि भी दूसरा अत्यन्त दुर्जय एवं भयंकर धनुष लेकर बहुत से शत्रुओं का संहार करता हुआ पाण्डव-सेना की ओर चल दिया। प्रजानाथ ! सुबल पुत्र शकुनि को समर भूमि में निर्भय से विचरते देख पाण्डव-दल में महान् सिंहनाद होने लगा।  महामना शकुनि ने घमंड में भरे हुए उन शस्त्र सम्पन्न महान् सैनिको को भगा दिया। यह सब हमने अपनी अँाखों देखा। राजन् ! जिस प्रकार देवराज इन्द्र ने दैत्यों की सेना को कुचल दिया था,उसी प्रकार सुबल पुत्र शकुनि ने पाण्डव-सेना का विनाश कर डाला।


<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में सुतसोम और शकुनि का युद्ध विषयक पच्चीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में सुतसोम और शकुनि का युद्ध विषयक पच्चीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>  

11:36, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

पञ्चविंश (25) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: पञ्चविंश अध्याय: श्लोक 37-43 का हिन्दी अनुवाद

वह महान् खंग कटकर सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ा। भारत ! सुनदर मूठवाले उस खंग का आधा भाग सुतसोम के हाथ में ही रह गया। अपने उस खंग को कटा हुआ जान महारथी सुतसोम ने छह पग ऊँचे उछलकर उसके शेष भाग को ही शकुनि पर दे मारा। वह स्वर्ण और हीरे से विभूषित कटा हुआ खंग रणभूमि में महामना शकुनि के धनुष को प्रत्यन्चा सहित काअकर तुरंत ही पृथ्वी पर गिर पड़ा। तत्पश्चात् सुतसोम श्रुतकीर्ति के विशाल रथ पर चढ़ गया। उधर शकुनि भी दूसरा अत्यन्त दुर्जय एवं भयंकर धनुष लेकर बहुत से शत्रुओं का संहार करता हुआ पाण्डव-सेना की ओर चल दिया। प्रजानाथ ! सुबल पुत्र शकुनि को समर भूमि में निर्भय से विचरते देख पाण्डव-दल में महान् सिंहनाद होने लगा। महामना शकुनि ने घमंड में भरे हुए उन शस्त्र सम्पन्न महान् सैनिको को भगा दिया। यह सब हमने अपनी अँाखों देखा। राजन् ! जिस प्रकार देवराज इन्द्र ने दैत्यों की सेना को कुचल दिया था,उसी प्रकार सुबल पुत्र शकुनि ने पाण्डव-सेना का विनाश कर डाला।

इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में सुतसोम और शकुनि का युद्ध विषयक पच्चीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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