"महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 3 श्लोक 19-23": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 19-23 का हिन्दी अनुवाद </div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 19-23 का हिन्दी अनुवाद </div> | ||
कुन्तीकुमार युधिष्ठिर के इस प्रकार कहने पर श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने दो घड़ी तक सोच-विचाकर धर्मराज से कहा-‘पार्थ! यद्यपि तुम्हारा खजाना इस समय | कुन्तीकुमार युधिष्ठिर के इस प्रकार कहने पर श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने दो घड़ी तक सोच-विचाकर धर्मराज से कहा-‘पार्थ! यद्यपि तुम्हारा खजाना इस समय ख़ाली हो गया है तथा पिवह बहुत शीघ्र भर जाएगा। हिमालय पर्वत पर महात्मा मरुत्त के यज्ञ में ब्रह्माणों ने जो धन छोड़ दिया था, वह वहीं पड़ा हुआ है। कुन्तीकुमार! उसे ले आओ। वह तुम्हारे लिये पर्याप्त होगा। युधिष्ठर ने कहा- वक्ताओं में श्रेष्ठ महर्षे! मरुत्त के यज्ञ में इतने धन का संग्रह किस प्रकार किया गया था तथा वे महाराज मरुत्त किस समय इस पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। व्यासजी ने कहा- पार्थ! यदि तुम सुनना चाहते हो तो करन्धम के पौत्र मरुत्त का वृत्तान्त सुनो। वे महाधनी और महापराक्रमी राजा किस काल में इस पृथ्वी पर प्रकठ हुए थे, यह बता रहा हँ। | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधपर्व के अन्तर्गत अश्वमेध पर्व में संवर्त और मरुत्त का उपाख्यानविषयक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधपर्व के अन्तर्गत अश्वमेध पर्व में संवर्त और मरुत्त का उपाख्यानविषयक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।</div> |
11:18, 5 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
तृतीय (3) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अश्वमेध पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 19-23 का हिन्दी अनुवाद
कुन्तीकुमार युधिष्ठिर के इस प्रकार कहने पर श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने दो घड़ी तक सोच-विचाकर धर्मराज से कहा-‘पार्थ! यद्यपि तुम्हारा खजाना इस समय ख़ाली हो गया है तथा पिवह बहुत शीघ्र भर जाएगा। हिमालय पर्वत पर महात्मा मरुत्त के यज्ञ में ब्रह्माणों ने जो धन छोड़ दिया था, वह वहीं पड़ा हुआ है। कुन्तीकुमार! उसे ले आओ। वह तुम्हारे लिये पर्याप्त होगा। युधिष्ठर ने कहा- वक्ताओं में श्रेष्ठ महर्षे! मरुत्त के यज्ञ में इतने धन का संग्रह किस प्रकार किया गया था तथा वे महाराज मरुत्त किस समय इस पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। व्यासजी ने कहा- पार्थ! यदि तुम सुनना चाहते हो तो करन्धम के पौत्र मरुत्त का वृत्तान्त सुनो। वे महाधनी और महापराक्रमी राजा किस काल में इस पृथ्वी पर प्रकठ हुए थे, यह बता रहा हँ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधपर्व के अन्तर्गत अश्वमेध पर्व में संवर्त और मरुत्त का उपाख्यानविषयक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।
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