"महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 75 श्लोक 1-20": अवतरणों में अंतर
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अर्जुन का प्राग्ज्योतिषपुर के राजा वज्रदत्त के साथ युद्ध | अर्जुन का प्राग्ज्योतिषपुर के राजा वज्रदत्त के साथ युद्ध | ||
वैशम्पायनजी कहते हैं– जनमेजय ! तदनन्तर वह उत्तम अश्व प्राग्ज्योतिषपुर के पास पहुँकर विचरने लगा । वहॉं भगदत्त का पुत्र वज्रदत्त राज्य करता था, जो युद्ध में बड़ा ही कठोर था । भरतश्रेष्ठ ! जब उसे पता लगा कि पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर का अश्व मेरे राज्य की सीमा में आ गया है, तब राजा वज्रदत्त नगर से बाहर निकला और युद्ध के लिये तैयार हो गया। नगर से निकलकर भगत्तकुमार राजा वज्रदत्त ने अपनी ओर आते हुए घोड़े को बलपूर्वक पकड़ लिया और उसे साथ लेकर वह नगर की ओर चला। उसको ऐसा करते देख कुरुश्रेष्ठ महाबाहु अर्जुन ने गाण्डीव धनुष पर टंकार देते हुए सहसा वेगपूर्वक उस पर धावा किया। गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाणों के प्रहार से व्याकुल हो वीर राजा वज्रदत्त ने उस घोड़े को तो छोड़ दिया और स्वयं पुन: नगर में प्रवेश करके कवच आदि से सुसज्जित हो एक श्रेष्ठ गजराज पर चढ़कर वह रणकर्कश नरेश युद्ध के लिये बाहर निकला। आते ही उसने पार्थ पर धावा बोल दिय। उसने मस्तक पर श्वेत छत्र धारण कर रखा था । सेवक श्वेत चंवर डुला रहे थे । पाण्डव महारथी पार्थ के पास पहुँचकर उस महारथी नरेश ने बालचापल्य और मूर्खता के कारण उन्हें युद्ध के लिये ललकारा। क्रोध में भरे हुए राजा वज्रदत्त ने श्वेत वाहन अर्जुन की ओर अपने पर्वताकार विशालकाय गजराज को, जिसके गण्डस्थल मद की धारा बह रही थी, बढ़ाया। वह | वैशम्पायनजी कहते हैं– जनमेजय ! तदनन्तर वह उत्तम अश्व प्राग्ज्योतिषपुर के पास पहुँकर विचरने लगा । वहॉं भगदत्त का पुत्र वज्रदत्त राज्य करता था, जो युद्ध में बड़ा ही कठोर था । भरतश्रेष्ठ ! जब उसे पता लगा कि पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर का अश्व मेरे राज्य की सीमा में आ गया है, तब राजा वज्रदत्त नगर से बाहर निकला और युद्ध के लिये तैयार हो गया। नगर से निकलकर भगत्तकुमार राजा वज्रदत्त ने अपनी ओर आते हुए घोड़े को बलपूर्वक पकड़ लिया और उसे साथ लेकर वह नगर की ओर चला। उसको ऐसा करते देख कुरुश्रेष्ठ महाबाहु अर्जुन ने गाण्डीव धनुष पर टंकार देते हुए सहसा वेगपूर्वक उस पर धावा किया। गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाणों के प्रहार से व्याकुल हो वीर राजा वज्रदत्त ने उस घोड़े को तो छोड़ दिया और स्वयं पुन: नगर में प्रवेश करके कवच आदि से सुसज्जित हो एक श्रेष्ठ गजराज पर चढ़कर वह रणकर्कश नरेश युद्ध के लिये बाहर निकला। आते ही उसने पार्थ पर धावा बोल दिय। उसने मस्तक पर श्वेत छत्र धारण कर रखा था । सेवक श्वेत चंवर डुला रहे थे । पाण्डव महारथी पार्थ के पास पहुँचकर उस महारथी नरेश ने बालचापल्य और मूर्खता के कारण उन्हें युद्ध के लिये ललकारा। क्रोध में भरे हुए राजा वज्रदत्त ने श्वेत वाहन अर्जुन की ओर अपने पर्वताकार विशालकाय गजराज को, जिसके गण्डस्थल मद की धारा बह रही थी, बढ़ाया। वह महान् मेघ के समान मद की वर्षा करता था । शत्रु पक्ष के हाथियों को रोकने में समर्थ था । उसे शास्त्रीय विधि के अनुसार युद्ध के लिये तैयार किया गया था । वह स्वामी के अधीन रहने वाला और युद्ध में दुर्धर्ष था। राजा वज्रदत्त ने जब अंकुश से मारकर उस महाबली हाथी को आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया, तब वह इस तरह आगे कर ओर झपटा, मानो वह आकाश में उड़ जायगा। राजन ! भरतनन्दन ! उसे इस प्रकार आक्रमण करते देख अर्जुन कुपित हो उठे । वे पृथ्वी पर स्थित होते हुए भी हाथी पर चढ़े हुए वज्रदत्त के साथ युद्ध करने लगे। उस समय वज्रदत्त ने कुपित होकर तुरंत ही अर्जुन पर अग्नि के समान प्रज्वलित तोमर चलाये, जो वेग से उड़ने वाले पतंगों के समान जान पड़ते थे। वे तोमर अभी पास भी नहीं आने पाये थे कि अर्जुन ने गाण्डीव धनुष द्वारा छोड़े गये आकाशचारी बाणों द्वारा आकाश में ही एक–एक तोमर के दो –दो, तीन–तीन टुकड़े कर डाले। इस प्रकार उन तोमर के टुकड़े–टुकड़े हुए देख भगदत्त के पुत्र ने पाण्डुनन्दन अर्जुन पर शीघ्रतापूर्वक लगातार बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। तब कुपित हुए अर्जुन ने तुरंत ही सोने के पंखों से युक्त सीधे जाने वाले बाण वज्रदत्त पर चलाये उन बाणों से अत्यन्त आहत और घायल होकर उस महासमर मेंमहातेजस्वी वज्रदत्त हाथी की पीठ से पृथ्वी पर गिर पड़ा; परंतु इतने पर भी बेहोश नहीं हुआ। तदनन्तर वज्रदत्त ने पुन: उस श्रेष्ठ गजराज पर आरूढ़ हो रणभूमि में बिना किसी घबराहट के विजय की अभिलाषा रखकर अर्जुन की ओर उस हाथी को बढ़ाया। यह देख अर्जुन को बड़ा क्रोध हुआ । उन्होंने उस हाथी के ऊपर केंचुल से निकले हुए सर्पों के समान भयंकर तथा प्रज्वलित अग्नि तुल्य तेजस्वी बाणों का प्रहार किया। उन बाणों से घायल होकर वह महानाग खून की धारा बहाने लगा । उस समय वह गेरूमिश्रित जल की धारा बहाने वाले अनेक झरनों से युक्त पर्वत के समान जान पड़ता था। | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में अर्जुन का वज्रदत्त के साथ युद्धविषयक पचहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में अर्जुन का वज्रदत्त के साथ युद्धविषयक पचहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।</div> |
11:30, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
पंचसप्ततिमम (75) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
अर्जुन का प्राग्ज्योतिषपुर के राजा वज्रदत्त के साथ युद्ध
वैशम्पायनजी कहते हैं– जनमेजय ! तदनन्तर वह उत्तम अश्व प्राग्ज्योतिषपुर के पास पहुँकर विचरने लगा । वहॉं भगदत्त का पुत्र वज्रदत्त राज्य करता था, जो युद्ध में बड़ा ही कठोर था । भरतश्रेष्ठ ! जब उसे पता लगा कि पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर का अश्व मेरे राज्य की सीमा में आ गया है, तब राजा वज्रदत्त नगर से बाहर निकला और युद्ध के लिये तैयार हो गया। नगर से निकलकर भगत्तकुमार राजा वज्रदत्त ने अपनी ओर आते हुए घोड़े को बलपूर्वक पकड़ लिया और उसे साथ लेकर वह नगर की ओर चला। उसको ऐसा करते देख कुरुश्रेष्ठ महाबाहु अर्जुन ने गाण्डीव धनुष पर टंकार देते हुए सहसा वेगपूर्वक उस पर धावा किया। गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाणों के प्रहार से व्याकुल हो वीर राजा वज्रदत्त ने उस घोड़े को तो छोड़ दिया और स्वयं पुन: नगर में प्रवेश करके कवच आदि से सुसज्जित हो एक श्रेष्ठ गजराज पर चढ़कर वह रणकर्कश नरेश युद्ध के लिये बाहर निकला। आते ही उसने पार्थ पर धावा बोल दिय। उसने मस्तक पर श्वेत छत्र धारण कर रखा था । सेवक श्वेत चंवर डुला रहे थे । पाण्डव महारथी पार्थ के पास पहुँचकर उस महारथी नरेश ने बालचापल्य और मूर्खता के कारण उन्हें युद्ध के लिये ललकारा। क्रोध में भरे हुए राजा वज्रदत्त ने श्वेत वाहन अर्जुन की ओर अपने पर्वताकार विशालकाय गजराज को, जिसके गण्डस्थल मद की धारा बह रही थी, बढ़ाया। वह महान् मेघ के समान मद की वर्षा करता था । शत्रु पक्ष के हाथियों को रोकने में समर्थ था । उसे शास्त्रीय विधि के अनुसार युद्ध के लिये तैयार किया गया था । वह स्वामी के अधीन रहने वाला और युद्ध में दुर्धर्ष था। राजा वज्रदत्त ने जब अंकुश से मारकर उस महाबली हाथी को आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया, तब वह इस तरह आगे कर ओर झपटा, मानो वह आकाश में उड़ जायगा। राजन ! भरतनन्दन ! उसे इस प्रकार आक्रमण करते देख अर्जुन कुपित हो उठे । वे पृथ्वी पर स्थित होते हुए भी हाथी पर चढ़े हुए वज्रदत्त के साथ युद्ध करने लगे। उस समय वज्रदत्त ने कुपित होकर तुरंत ही अर्जुन पर अग्नि के समान प्रज्वलित तोमर चलाये, जो वेग से उड़ने वाले पतंगों के समान जान पड़ते थे। वे तोमर अभी पास भी नहीं आने पाये थे कि अर्जुन ने गाण्डीव धनुष द्वारा छोड़े गये आकाशचारी बाणों द्वारा आकाश में ही एक–एक तोमर के दो –दो, तीन–तीन टुकड़े कर डाले। इस प्रकार उन तोमर के टुकड़े–टुकड़े हुए देख भगदत्त के पुत्र ने पाण्डुनन्दन अर्जुन पर शीघ्रतापूर्वक लगातार बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। तब कुपित हुए अर्जुन ने तुरंत ही सोने के पंखों से युक्त सीधे जाने वाले बाण वज्रदत्त पर चलाये उन बाणों से अत्यन्त आहत और घायल होकर उस महासमर मेंमहातेजस्वी वज्रदत्त हाथी की पीठ से पृथ्वी पर गिर पड़ा; परंतु इतने पर भी बेहोश नहीं हुआ। तदनन्तर वज्रदत्त ने पुन: उस श्रेष्ठ गजराज पर आरूढ़ हो रणभूमि में बिना किसी घबराहट के विजय की अभिलाषा रखकर अर्जुन की ओर उस हाथी को बढ़ाया। यह देख अर्जुन को बड़ा क्रोध हुआ । उन्होंने उस हाथी के ऊपर केंचुल से निकले हुए सर्पों के समान भयंकर तथा प्रज्वलित अग्नि तुल्य तेजस्वी बाणों का प्रहार किया। उन बाणों से घायल होकर वह महानाग खून की धारा बहाने लगा । उस समय वह गेरूमिश्रित जल की धारा बहाने वाले अनेक झरनों से युक्त पर्वत के समान जान पड़ता था।
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