"महाभारत शल्य पर्व अध्याय 1 श्लोक 20-46": अवतरणों में अंतर
नवनीत कुमार (वार्ता | योगदान) ('==प्रथम (1) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)== <div style="text-alig...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 20-46 का हिन्दी अनुवाद </div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 20-46 का हिन्दी अनुवाद </div> | ||
हम लोगों ने देखा कि नगर के श्रेष्ठ | हम लोगों ने देखा कि नगर के श्रेष्ठ पुरुष अचेत और उन्मत्त से होकर शोक से अत्यन्त पीड़ित हो वहाँ दौड़ रहे हैं।। इस प्रकार व्याकुल हुए संजय ने राजभवन में प्रवेश करके अपने स्वामी प्रज्ञाचक्षु नृपश्रेष्ठ धृतराष्ट्र का दर्शन किया।। भरतश्रेष्ठ ! वे निष्पाप नरेश अपनी पुत्रवधुओं, गान्धारी, विदुर तथा अन्य हितैषी सुहृदों एवं बन्धु-बान्धवों द्वारा सब ओर से घिरे हुए बैठे थे और कर्ण के मारे जाने से होने वाले परिणाम का चिन्तन कर रहे थे। जनमेजय ! उस समय संजय ने खिन्नचित्त होकर रोते हुए ही संदिग्ध वाणी में कहा-नरव्याघ्र ! भरतश्रेष्ठ ! में संजय हूँ । आपको नमस्कार है। पुरुषसिंह ! मद्रराज शल्य, सुबलपुत्र शकुनि तथा जुआरी का पुत्र सृदृढ़ पराक्रमी, उलूक-ये सब-के-सब मारे गये। समस्त संशप्तक वीर, काम्बोज, शक, म्लेच्छ, पर्वतीय योद्धा और यवनसैनिक मार गिराये गये। महाराज ! पूर्वदेश के योद्धा मारे गये, समस्त दक्षिणात्यों का संहार हो गया तथा उत्तर और पश्चिम के सभी श्रेष्ठ मनुष्य मार डाले गये। नरेश्वर ! समस्त राजा और राजकुमार काल के गाल में चले गये। महाराज ! जैसा पाण्डुपुत्र भीमसेन ने कहा था, उसके अनुसार राजा दुर्योधन भी मारा गया। उसकी जाँघ टूट गयी और वह धूल-धूसर होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा । <br /> | ||
महाराज ! नरव्याघ्र नरेश ! धृष्टघुम्न, अपराजित वीर शिखण्डी, उत्तमौजा, युधामन्यु, प्रभद्रकगण, पांचाल और चेदिदेशीय योद्धाओं काभी संहार हो गया। भारत ! आपके तथा द्रौपदी के भी सभी पुत्र मारे गये। कर्ण का प्रतापी एवं शूरवीर पुत्र वृषसेन भी नष्ट हो गया। नरव्याघ्र ! युद्धस्थल में समस्त पैदल मनुष्य, हाथीसवार, रथी और घुड़सवार भी मार गिराये गये। प्रभो ! पाण्डवों तथा कौरवों में परस्पर संघर्ष होकर आपके पुत्रों तथा पाण्डव शिविर में किंचिन्मात्र ही शेष रह गया है। प्रायः काल से मोहित हुए सारे | महाराज ! नरव्याघ्र नरेश ! धृष्टघुम्न, अपराजित वीर शिखण्डी, उत्तमौजा, युधामन्यु, प्रभद्रकगण, पांचाल और चेदिदेशीय योद्धाओं काभी संहार हो गया। भारत ! आपके तथा द्रौपदी के भी सभी पुत्र मारे गये। कर्ण का प्रतापी एवं शूरवीर पुत्र वृषसेन भी नष्ट हो गया। नरव्याघ्र ! युद्धस्थल में समस्त पैदल मनुष्य, हाथीसवार, रथी और घुड़सवार भी मार गिराये गये। प्रभो ! पाण्डवों तथा कौरवों में परस्पर संघर्ष होकर आपके पुत्रों तथा पाण्डव शिविर में किंचिन्मात्र ही शेष रह गया है। प्रायः काल से मोहित हुए सारे जगत् में स्त्रियाँ ही शेष रह गयी हैं। पाण्डवपक्ष में सात और आपके पक्ष में तीन रथी मरने से बचे हैं। उधर पाँचों भाई पाण्डव, वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण और सात्यकि शेष हैं तथा इधर कृपाचार्य, कृतवर्मा और विजयी वीरों में श्रेष्ठ अश्वत्थामा जीवित हैं। नृपश्रेष्ठ ! जनेश्वर ! महाराज! उभय पक्ष में जो समस्त अक्षौहिणी सेनाएँ एकत्र हुई थीं, उनमें से ये ही रथी शेष रह गये हैं, अन्य सब लोग काल के गाल में चले गये। भरतश्रेष्ठ ! भरतनन्दन ! काल ने दुर्योधन और उसके वैर को आगे करके सम्पूर्ण जगत् को नष्ट कर दिया । | ||
वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! यह क्रूर वचन सनुकर राजाधिराज जनेश्वर धृतराष्ट्र प्राणहीन-से होकर पथ्वी पर गिर पडे़। महाराज ! उनके गिरते ही महायशस्वी विदुरजी भी शोकसंताप से दुर्बल हो घड़ामसे गिर पडे़। नृपश्रेष्ठ ! उस समय वह क्रूरतापूर्वक वचन सुनकर कुरूकुल की समस्त स्त्रियाँ और गान्धारी देवी सहसा पृथ्वी पर गिर गयीं, राजपरिवार के सभी लोग अपनी सुध-बुध खोकर धरती पर गिर पडे़ और प्रलाप करने लगे। वे ऐसे जान पड़ते थे मानो विशाल पटपर अंकित किये गये चित्र हों। तत्पश्चात् पुत्रशोक से पीड़ित हुए पृथ्वीपति राजा धृतराष्ट्र में बड़ी कठिनाई से धीरे-धीरे प्राणों का संचार हुआ।। चेतना पाकर राजा धृतराष्ट्र अत्यन्त दुखी हो थर-थर काँपने लगे और सम्पूर्ण दिशाओं की ओर देखकर विदुर से इस प्रकार बोले- विद्वेन ! महाज्ञानी विदुर ! भरतभूषण ! अब तुम्ही मुझ पुत्रहीन और अनाथ के सर्वथा आश्रय हो। इतना कहकर वे पुनः अचेत हो पृथ्वी पर गिर पडे़। | वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! यह क्रूर वचन सनुकर राजाधिराज जनेश्वर धृतराष्ट्र प्राणहीन-से होकर पथ्वी पर गिर पडे़। महाराज ! उनके गिरते ही महायशस्वी विदुरजी भी शोकसंताप से दुर्बल हो घड़ामसे गिर पडे़। नृपश्रेष्ठ ! उस समय वह क्रूरतापूर्वक वचन सुनकर कुरूकुल की समस्त स्त्रियाँ और गान्धारी देवी सहसा पृथ्वी पर गिर गयीं, राजपरिवार के सभी लोग अपनी सुध-बुध खोकर धरती पर गिर पडे़ और प्रलाप करने लगे। वे ऐसे जान पड़ते थे मानो विशाल पटपर अंकित किये गये चित्र हों। तत्पश्चात् पुत्रशोक से पीड़ित हुए पृथ्वीपति राजा धृतराष्ट्र में बड़ी कठिनाई से धीरे-धीरे प्राणों का संचार हुआ।। चेतना पाकर राजा धृतराष्ट्र अत्यन्त दुखी हो थर-थर काँपने लगे और सम्पूर्ण दिशाओं की ओर देखकर विदुर से इस प्रकार बोले- विद्वेन ! महाज्ञानी विदुर ! भरतभूषण ! अब तुम्ही मुझ पुत्रहीन और अनाथ के सर्वथा आश्रय हो। इतना कहकर वे पुनः अचेत हो पृथ्वी पर गिर पडे़। |
13:51, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
प्रथम (1) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
हम लोगों ने देखा कि नगर के श्रेष्ठ पुरुष अचेत और उन्मत्त से होकर शोक से अत्यन्त पीड़ित हो वहाँ दौड़ रहे हैं।। इस प्रकार व्याकुल हुए संजय ने राजभवन में प्रवेश करके अपने स्वामी प्रज्ञाचक्षु नृपश्रेष्ठ धृतराष्ट्र का दर्शन किया।। भरतश्रेष्ठ ! वे निष्पाप नरेश अपनी पुत्रवधुओं, गान्धारी, विदुर तथा अन्य हितैषी सुहृदों एवं बन्धु-बान्धवों द्वारा सब ओर से घिरे हुए बैठे थे और कर्ण के मारे जाने से होने वाले परिणाम का चिन्तन कर रहे थे। जनमेजय ! उस समय संजय ने खिन्नचित्त होकर रोते हुए ही संदिग्ध वाणी में कहा-नरव्याघ्र ! भरतश्रेष्ठ ! में संजय हूँ । आपको नमस्कार है। पुरुषसिंह ! मद्रराज शल्य, सुबलपुत्र शकुनि तथा जुआरी का पुत्र सृदृढ़ पराक्रमी, उलूक-ये सब-के-सब मारे गये। समस्त संशप्तक वीर, काम्बोज, शक, म्लेच्छ, पर्वतीय योद्धा और यवनसैनिक मार गिराये गये। महाराज ! पूर्वदेश के योद्धा मारे गये, समस्त दक्षिणात्यों का संहार हो गया तथा उत्तर और पश्चिम के सभी श्रेष्ठ मनुष्य मार डाले गये। नरेश्वर ! समस्त राजा और राजकुमार काल के गाल में चले गये। महाराज ! जैसा पाण्डुपुत्र भीमसेन ने कहा था, उसके अनुसार राजा दुर्योधन भी मारा गया। उसकी जाँघ टूट गयी और वह धूल-धूसर होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा ।
महाराज ! नरव्याघ्र नरेश ! धृष्टघुम्न, अपराजित वीर शिखण्डी, उत्तमौजा, युधामन्यु, प्रभद्रकगण, पांचाल और चेदिदेशीय योद्धाओं काभी संहार हो गया। भारत ! आपके तथा द्रौपदी के भी सभी पुत्र मारे गये। कर्ण का प्रतापी एवं शूरवीर पुत्र वृषसेन भी नष्ट हो गया। नरव्याघ्र ! युद्धस्थल में समस्त पैदल मनुष्य, हाथीसवार, रथी और घुड़सवार भी मार गिराये गये। प्रभो ! पाण्डवों तथा कौरवों में परस्पर संघर्ष होकर आपके पुत्रों तथा पाण्डव शिविर में किंचिन्मात्र ही शेष रह गया है। प्रायः काल से मोहित हुए सारे जगत् में स्त्रियाँ ही शेष रह गयी हैं। पाण्डवपक्ष में सात और आपके पक्ष में तीन रथी मरने से बचे हैं। उधर पाँचों भाई पाण्डव, वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण और सात्यकि शेष हैं तथा इधर कृपाचार्य, कृतवर्मा और विजयी वीरों में श्रेष्ठ अश्वत्थामा जीवित हैं। नृपश्रेष्ठ ! जनेश्वर ! महाराज! उभय पक्ष में जो समस्त अक्षौहिणी सेनाएँ एकत्र हुई थीं, उनमें से ये ही रथी शेष रह गये हैं, अन्य सब लोग काल के गाल में चले गये। भरतश्रेष्ठ ! भरतनन्दन ! काल ने दुर्योधन और उसके वैर को आगे करके सम्पूर्ण जगत् को नष्ट कर दिया ।
वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! यह क्रूर वचन सनुकर राजाधिराज जनेश्वर धृतराष्ट्र प्राणहीन-से होकर पथ्वी पर गिर पडे़। महाराज ! उनके गिरते ही महायशस्वी विदुरजी भी शोकसंताप से दुर्बल हो घड़ामसे गिर पडे़। नृपश्रेष्ठ ! उस समय वह क्रूरतापूर्वक वचन सुनकर कुरूकुल की समस्त स्त्रियाँ और गान्धारी देवी सहसा पृथ्वी पर गिर गयीं, राजपरिवार के सभी लोग अपनी सुध-बुध खोकर धरती पर गिर पडे़ और प्रलाप करने लगे। वे ऐसे जान पड़ते थे मानो विशाल पटपर अंकित किये गये चित्र हों। तत्पश्चात् पुत्रशोक से पीड़ित हुए पृथ्वीपति राजा धृतराष्ट्र में बड़ी कठिनाई से धीरे-धीरे प्राणों का संचार हुआ।। चेतना पाकर राजा धृतराष्ट्र अत्यन्त दुखी हो थर-थर काँपने लगे और सम्पूर्ण दिशाओं की ओर देखकर विदुर से इस प्रकार बोले- विद्वेन ! महाज्ञानी विदुर ! भरतभूषण ! अब तुम्ही मुझ पुत्रहीन और अनाथ के सर्वथा आश्रय हो। इतना कहकर वे पुनः अचेत हो पृथ्वी पर गिर पडे़।
« पीछे | आगे » |