"महाभारत शल्य पर्व अध्याय 19 श्लोक 41-56": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (1 अवतरण) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " महान " to " महान् ") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 41-56 का हिन्दी अनुवाद </div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 41-56 का हिन्दी अनुवाद </div> | ||
परस्पर हर्ष में भरकर एक दूसरे पर आक्रमण करनेवाले उभय पक्ष के सैनिकों का वह घोर एवं | परस्पर हर्ष में भरकर एक दूसरे पर आक्रमण करनेवाले उभय पक्ष के सैनिकों का वह घोर एवं महान् संघर्ष बड़ा भयंकर हुआ । राजन् ! उस समय भीमसेन और द्रुपदकुमार धृष्टधुम्न चतुंरगिणी सेना साथ लेकर उन अनेकदेशीय सैनिकों को रोकने लगे । तब रणभूमि में अन्य पैदल योद्धा हर्ष और उत्साह में भरकर भुजाओं पर ताल ठोंकते और सिंहनाद करते हुए वीरलोक में जाने की इच्छा से भीमसेन के ही सामने आ पहुँचे।। भीमसेन के पास पहुँचकर वे रोष भरे रणदुर्भद कौरवयोद्धा केवल गर्जना करने लगे, मुँह से दूसरी कोई बात नहीं कहते थे । उन्होंने रणभूमि में भीमसेन को चारों ओर से घेरकर उन पर प्रहार आरम्भ कर दिया। समरांगण में पैदल सैनिकों से घिरे हुए भीमसेन उनके अस्त्र-शस्त्रों की चोट सहते हुए भी मैनाक पर्वत के समान अपने स्थान से विचलित नहीं हुए।। महाराज ! वे सभी सैनिक कुपित हो पाण्डव महारथी भीमसेन को पकड़ने की चेष्टा में संलग्न हो गये और दूसरे योद्धाओं को भी आगे बढ़ने से रोकने लगे । उनके इस प्रकार सब ओर से खडे़ होने पर उस समय रणभूमि में भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ।। वे तुरन्त अपने रथ से उतर कर पैदल खडे़ हो गये और सोने से जड़ी हुई विशाल गदा हाथर में लेकर दण्डधारी यमराज के समान आपके उन योद्धाओं का संहार करने लगे रथ और घोड़ों से रहित उन इक्कीसों हजार पैदल सैनिकों को पुरुषप्रवर भीमने गदा से मारकर धराशायी कर दिया।। सत्यपराक्रमी भीमसेन उस पैदल सेना का संहार करके थोड़ी ही देर में धृष्टधुम्न को आगे किये दिखायी दिये । मारे गये पैदल सैनिक खून से लथपथ हो पृथ्वी पर सदा के लिये सो गये, मानों हवा के उखाडे़ हुए सुन्दर लाल फूलों से भरे कनेर के वृक्ष हों । वहाँ नाना देशों से आये हुए, नाना जाति के, नाना शस्त्र धारण किये और नाना प्रकार के कुण्डलधारी योद्धा मारे गये थे । ध्वज और पताकाओं से आच्छादित पैदलों की वह विशाल सेना छिन्न-भिन्न होकर रौद्र, घोर एवं भयानक प्रतत होती थी । तत्पश्चात् सेनासहित युधिष्ठिर आदि महारथी आपके महामनस्वी पुत्र दुर्योधन की ओर दौडे़ । आपके योद्धाओं को युद्ध से विमुख हो भागते देख वे सब महाधनुर्धर पाण्डव-महारथी आपके पुत्र को लाघँकर आगे नहीं बढ़ सके।। जैसे तटभूमि समुद्र को आगे नहीं बढ़ने देती है (उसी प्रकार दुर्योधन ने उन्हें अग्रसर नहीं होने दिया) । उस समय हमलोगों ने आपके पुत्र का अद्भुत पराक्रम देखा कि कुन्ती के सभी पुत्र एक साथ प्रयत्न करने पर भी उसे लाँघकर आगे न जा सके । | ||
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत शल्य पर्व अध्याय 9 श्लोक 23-47|अगला=महाभारत शल्य पर्व अध्याय 19 श्लोक 57-70}} | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत शल्य पर्व अध्याय 9 श्लोक 23-47|अगला=महाभारत शल्य पर्व अध्याय 19 श्लोक 57-70}} |
11:20, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
एकोनविंश (19) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
परस्पर हर्ष में भरकर एक दूसरे पर आक्रमण करनेवाले उभय पक्ष के सैनिकों का वह घोर एवं महान् संघर्ष बड़ा भयंकर हुआ । राजन् ! उस समय भीमसेन और द्रुपदकुमार धृष्टधुम्न चतुंरगिणी सेना साथ लेकर उन अनेकदेशीय सैनिकों को रोकने लगे । तब रणभूमि में अन्य पैदल योद्धा हर्ष और उत्साह में भरकर भुजाओं पर ताल ठोंकते और सिंहनाद करते हुए वीरलोक में जाने की इच्छा से भीमसेन के ही सामने आ पहुँचे।। भीमसेन के पास पहुँचकर वे रोष भरे रणदुर्भद कौरवयोद्धा केवल गर्जना करने लगे, मुँह से दूसरी कोई बात नहीं कहते थे । उन्होंने रणभूमि में भीमसेन को चारों ओर से घेरकर उन पर प्रहार आरम्भ कर दिया। समरांगण में पैदल सैनिकों से घिरे हुए भीमसेन उनके अस्त्र-शस्त्रों की चोट सहते हुए भी मैनाक पर्वत के समान अपने स्थान से विचलित नहीं हुए।। महाराज ! वे सभी सैनिक कुपित हो पाण्डव महारथी भीमसेन को पकड़ने की चेष्टा में संलग्न हो गये और दूसरे योद्धाओं को भी आगे बढ़ने से रोकने लगे । उनके इस प्रकार सब ओर से खडे़ होने पर उस समय रणभूमि में भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ।। वे तुरन्त अपने रथ से उतर कर पैदल खडे़ हो गये और सोने से जड़ी हुई विशाल गदा हाथर में लेकर दण्डधारी यमराज के समान आपके उन योद्धाओं का संहार करने लगे रथ और घोड़ों से रहित उन इक्कीसों हजार पैदल सैनिकों को पुरुषप्रवर भीमने गदा से मारकर धराशायी कर दिया।। सत्यपराक्रमी भीमसेन उस पैदल सेना का संहार करके थोड़ी ही देर में धृष्टधुम्न को आगे किये दिखायी दिये । मारे गये पैदल सैनिक खून से लथपथ हो पृथ्वी पर सदा के लिये सो गये, मानों हवा के उखाडे़ हुए सुन्दर लाल फूलों से भरे कनेर के वृक्ष हों । वहाँ नाना देशों से आये हुए, नाना जाति के, नाना शस्त्र धारण किये और नाना प्रकार के कुण्डलधारी योद्धा मारे गये थे । ध्वज और पताकाओं से आच्छादित पैदलों की वह विशाल सेना छिन्न-भिन्न होकर रौद्र, घोर एवं भयानक प्रतत होती थी । तत्पश्चात् सेनासहित युधिष्ठिर आदि महारथी आपके महामनस्वी पुत्र दुर्योधन की ओर दौडे़ । आपके योद्धाओं को युद्ध से विमुख हो भागते देख वे सब महाधनुर्धर पाण्डव-महारथी आपके पुत्र को लाघँकर आगे नहीं बढ़ सके।। जैसे तटभूमि समुद्र को आगे नहीं बढ़ने देती है (उसी प्रकार दुर्योधन ने उन्हें अग्रसर नहीं होने दिया) । उस समय हमलोगों ने आपके पुत्र का अद्भुत पराक्रम देखा कि कुन्ती के सभी पुत्र एक साथ प्रयत्न करने पर भी उसे लाँघकर आगे न जा सके ।
« पीछे | आगे » |