"महाभारत आदि पर्व अध्याय 23 श्लोक 19-27": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: त्रयोविंश अध्यााय: श्लोक 19-27 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: त्रयोविंश अध्यााय: श्लोक 19-27 का हिन्दी अनुवाद</div>


आप बल के सागर और साधु पुरुष हैं। आप में उदार सत्वगुण विराजमान हैं। आप महान ऐश्वर्यशाली हैं। युद्ध में आपके वेग को सह लेना सभी के लिये  सर्वथा कठिन है। पुण्यश्लोक ! यह सम्पूर्ण जगत् आपसे ही प्रकट हुआ है। भूत, भविष्य और वर्तमान सब कुछ आप ही हैं। आप उत्तम हैं। जैसे सूर्य अपनी किरणों से सबको प्रकाशित करता है, उसी प्रकार आप इस सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करते हैं। आप ही सबका अन्त करने वाले काल हैं और बारम्बार सूर्य की प्रभा का उपसंहार करते हुए इस समस्त क्षर और अक्षर रूप जगत् का संहार करते हैं। अग्नि के समान प्रकाशित होने वाले देव ! जैसे सूर्य क्रुद्ध होने पर सबको जला सकते हैं, उसी प्रकार आप भी कुपित होने पर सम्पूर्ण प्रजा को दग्ध कर डालते हैं। आप युगान्तकारी काल के भी काल हैं और प्रलयकाल में सबका विनाश करने के लिये भयंकर संवर्तकाग्रि के रूप में प्रकट होते हैं। आप सम्पूर्ण पक्षियों एवं जीवों अधीश्वर हैं। आपका ओज महान है। आप अग्नि के समान तेजस्वी हैं। आप बिजली के समान प्रकाशित होते हैं। आपके द्वारा अज्ञान पुञज का निवारण होता है। आप. आकाश में मेघों की भाँति विचरने वाले महापराक्रमी गरूड़ हैं। हम यहाँ आकर आपके शरणागत हो रहे हैं। आप ही कार्य और कारण रूप हैं। आपसे ही सबको वर मिलता है। आपका पराक्रम अजेय है। आपके तेज से यह सम्पूर्ण जगत् संतप्त हो उठा है। जगदीश्वर ! आप तपाये हुए सुवर्ण के समान अपने दिव्य तेज से सम्पूर्ण देवताओं और महात्मा पुरुषों की रक्षा करें। पक्षिराज ! प्रभो ! विमान पर चलने वाले देवता आपके तेज से तिरस्कृत एवं भयभीत हो आकाश में पथ भ्रष्ट हो जाते हैं।  आप दयालु महात्मा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। प्रभो ! आप कुपित न हों। सम्पूर्ण जगत् पर उत्तम दया का विस्तार करें। आप ईश्वर हैं, अतः शान्ति धारण करें और हम सबकी रक्षा करें। महान वज्र की गड़गड़ाहट के समान आपकी गर्जना से दिशाएँ, आकाश, स्वर्ग तथा यह पृथ्वी सब के सब विचलित हो उठे हैं और हमारा हृदय भी निरन्तर काँपता रहता है। अतः खगश्रेष्ठ ! आप अग्नि के समान तेजस्वी अपने इस भयंकर रूप को शान्त कीजिये। क्रोध में भरे हुए यमराज के समान आपकी उग्र कान्ति देखकर हमारा मन अस्थिर एवं चंचल है। आप हम याचकों पर प्रसन्न होइये। भगवन ! आप हमारे लिये कल्याण स्वरूप और सुखदायक हो जाइये। ऋषियों सहित देवताओं के इस प्रकार स्तुति करने पर उत्तम पंखों वाले गरूड़ ने उस समय अपने तेज को समेट लिया।
आप बल के सागर और साधु पुरुष हैं। आप में उदार सत्वगुण विराजमान हैं। आप महान् ऐश्वर्यशाली हैं। युद्ध में आपके वेग को सह लेना सभी के लिये  सर्वथा कठिन है। पुण्यश्लोक ! यह सम्पूर्ण जगत् आपसे ही प्रकट हुआ है। भूत, भविष्य और वर्तमान सब कुछ आप ही हैं। आप उत्तम हैं। जैसे सूर्य अपनी किरणों से सबको प्रकाशित करता है, उसी प्रकार आप इस सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करते हैं। आप ही सबका अन्त करने वाले काल हैं और बारम्बार सूर्य की प्रभा का उपसंहार करते हुए इस समस्त क्षर और अक्षर रूप जगत् का संहार करते हैं। अग्नि के समान प्रकाशित होने वाले देव ! जैसे सूर्य क्रुद्ध होने पर सबको जला सकते हैं, उसी प्रकार आप भी कुपित होने पर सम्पूर्ण प्रजा को दग्ध कर डालते हैं। आप युगान्तकारी काल के भी काल हैं और प्रलयकाल में सबका विनाश करने के लिये भयंकर संवर्तकाग्रि के रूप में प्रकट होते हैं। आप सम्पूर्ण पक्षियों एवं जीवों अधीश्वर हैं। आपका ओज महान् है। आप अग्नि के समान तेजस्वी हैं। आप बिजली के समान प्रकाशित होते हैं। आपके द्वारा अज्ञान पुञज का निवारण होता है। आप. आकाश में मेघों की भाँति विचरने वाले महापराक्रमी गरूड़ हैं। हम यहाँ आकर आपके शरणागत हो रहे हैं। आप ही कार्य और कारण रूप हैं। आपसे ही सबको वर मिलता है। आपका पराक्रम अजेय है। आपके तेज से यह सम्पूर्ण जगत् संतप्त हो उठा है। जगदीश्वर ! आप तपाये हुए सुवर्ण के समान अपने दिव्य तेज से सम्पूर्ण देवताओं और महात्मा पुरुषों की रक्षा करें। पक्षिराज ! प्रभो ! विमान पर चलने वाले देवता आपके तेज से तिरस्कृत एवं भयभीत हो आकाश में पथ भ्रष्ट हो जाते हैं।  आप दयालु महात्मा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। प्रभो ! आप कुपित न हों। सम्पूर्ण जगत् पर उत्तम दया का विस्तार करें। आप ईश्वर हैं, अतः शान्ति धारण करें और हम सबकी रक्षा करें। महान् वज्र की गड़गड़ाहट के समान आपकी गर्जना से दिशाएँ, आकाश, स्वर्ग तथा यह पृथ्वी सब के सब विचलित हो उठे हैं और हमारा हृदय भी निरन्तर काँपता रहता है। अतः खगश्रेष्ठ ! आप अग्नि के समान तेजस्वी अपने इस भयंकर रूप को शान्त कीजिये। क्रोध में भरे हुए यमराज के समान आपकी उग्र कान्ति देखकर हमारा मन अस्थिर एवं चंचल है। आप हम याचकों पर प्रसन्न होइये। भगवन ! आप हमारे लिये कल्याण स्वरूप और सुखदायक हो जाइये। ऋषियों सहित देवताओं के इस प्रकार स्तुति करने पर उत्तम पंखों वाले गरूड़ ने उस समय अपने तेज को समेट लिया।


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11:17, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

त्रयोविंश (23) अध्याशय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: त्रयोविंश अध्यााय: श्लोक 19-27 का हिन्दी अनुवाद

आप बल के सागर और साधु पुरुष हैं। आप में उदार सत्वगुण विराजमान हैं। आप महान् ऐश्वर्यशाली हैं। युद्ध में आपके वेग को सह लेना सभी के लिये सर्वथा कठिन है। पुण्यश्लोक ! यह सम्पूर्ण जगत् आपसे ही प्रकट हुआ है। भूत, भविष्य और वर्तमान सब कुछ आप ही हैं। आप उत्तम हैं। जैसे सूर्य अपनी किरणों से सबको प्रकाशित करता है, उसी प्रकार आप इस सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करते हैं। आप ही सबका अन्त करने वाले काल हैं और बारम्बार सूर्य की प्रभा का उपसंहार करते हुए इस समस्त क्षर और अक्षर रूप जगत् का संहार करते हैं। अग्नि के समान प्रकाशित होने वाले देव ! जैसे सूर्य क्रुद्ध होने पर सबको जला सकते हैं, उसी प्रकार आप भी कुपित होने पर सम्पूर्ण प्रजा को दग्ध कर डालते हैं। आप युगान्तकारी काल के भी काल हैं और प्रलयकाल में सबका विनाश करने के लिये भयंकर संवर्तकाग्रि के रूप में प्रकट होते हैं। आप सम्पूर्ण पक्षियों एवं जीवों अधीश्वर हैं। आपका ओज महान् है। आप अग्नि के समान तेजस्वी हैं। आप बिजली के समान प्रकाशित होते हैं। आपके द्वारा अज्ञान पुञज का निवारण होता है। आप. आकाश में मेघों की भाँति विचरने वाले महापराक्रमी गरूड़ हैं। हम यहाँ आकर आपके शरणागत हो रहे हैं। आप ही कार्य और कारण रूप हैं। आपसे ही सबको वर मिलता है। आपका पराक्रम अजेय है। आपके तेज से यह सम्पूर्ण जगत् संतप्त हो उठा है। जगदीश्वर ! आप तपाये हुए सुवर्ण के समान अपने दिव्य तेज से सम्पूर्ण देवताओं और महात्मा पुरुषों की रक्षा करें। पक्षिराज ! प्रभो ! विमान पर चलने वाले देवता आपके तेज से तिरस्कृत एवं भयभीत हो आकाश में पथ भ्रष्ट हो जाते हैं। आप दयालु महात्मा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। प्रभो ! आप कुपित न हों। सम्पूर्ण जगत् पर उत्तम दया का विस्तार करें। आप ईश्वर हैं, अतः शान्ति धारण करें और हम सबकी रक्षा करें। महान् वज्र की गड़गड़ाहट के समान आपकी गर्जना से दिशाएँ, आकाश, स्वर्ग तथा यह पृथ्वी सब के सब विचलित हो उठे हैं और हमारा हृदय भी निरन्तर काँपता रहता है। अतः खगश्रेष्ठ ! आप अग्नि के समान तेजस्वी अपने इस भयंकर रूप को शान्त कीजिये। क्रोध में भरे हुए यमराज के समान आपकी उग्र कान्ति देखकर हमारा मन अस्थिर एवं चंचल है। आप हम याचकों पर प्रसन्न होइये। भगवन ! आप हमारे लिये कल्याण स्वरूप और सुखदायक हो जाइये। ऋषियों सहित देवताओं के इस प्रकार स्तुति करने पर उत्तम पंखों वाले गरूड़ ने उस समय अपने तेज को समेट लिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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