"महाभारत वन पर्व अध्याय 16 श्लोक 17-25": अवतरणों में अंतर

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राजेन्द्र ! शाल्व के बाणों से घायल होकर रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न तुरंत ही उस युद्ध भूमि में शाल्व पर एक ऐसा बाण चलाया, जो मर्मस्थल को विदीर्ण कर देने वाला था।  मेरे पुत्र के चलाये हुए उस बाण ने शाल्व के कवच को छेदकर उसके हृदय को बींध डाला। इससे वह मूच्र्छित होकर गिर पड़ा। वीर शाल्वराज के अचेत होकर गिर जाने पर उसकी सेना के समस्त दानवराज पृथ्वी को विदीर्ण करके पाताल में पलायन कर गये। पृथ्वीपते !  उस समय सौभ विमान का स्वामी राजा शाल्व जब संज्ञाशून्य होकर धराशायी हो गया, तब उसकी समस्त सेना में हाहाकर मच गया।। 20 ।।
राजेन्द्र ! शाल्व के बाणों से घायल होकर रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न तुरंत ही उस युद्ध भूमि में शाल्व पर एक ऐसा बाण चलाया, जो मर्मस्थल को विदीर्ण कर देने वाला था।  मेरे पुत्र के चलाये हुए उस बाण ने शाल्व के कवच को छेदकर उसके हृदय को बींध डाला। इससे वह मूच्र्छित होकर गिर पड़ा। वीर शाल्वराज के अचेत होकर गिर जाने पर उसकी सेना के समस्त दानवराज पृथ्वी को विदीर्ण करके पाताल में पलायन कर गये। पृथ्वीपते !  उस समय सौभ विमान का स्वामी राजा शाल्व जब संज्ञाशून्य होकर धराशायी हो गया, तब उसकी समस्त सेना में हाहाकर मच गया।। 20 ।।
कुरुश्रेष्ठ ! तत्पश्चात जब चेत हुआ, तब महाबली शाल्व सहसा उठकर प्रद्युम्न पर बाणों की वर्षा करने लगा। शाल्व के उन बाणों द्वारा कण्ठ के मूलभाग में गहरा आघात लगने से अत्यन्त घायल होकर समर में स्थित महाबाहु वीर प्रद्युम्न उस समय रथ पर मूर्च्छित हो गये। महाराज ! रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न को घायल करके शाल्व बड़े जोर-जोर से सिंहनाद करने लगा। उसकी आवाज से वहाँ की सारी पृथ्वी गूँज उठी। भारत ! मेरे पुत्र के मूर्च्छित हो जाने पर भी शाल्व ने उन पर और भी बहुत-से दुर्द्धर्ष बाण शीघ्रतापूर्वक छोड़े। कौरवश्रेष्ठ ! इस प्रकार बहुत-से बाणों से आहत होने कारण प्रद्युम्न उस रणांगण में मूर्च्छित एवं निश्चेष्ट हो गये।
कुरुश्रेष्ठ ! तत्पश्चात् जब चेत हुआ, तब महाबली शाल्व सहसा उठकर प्रद्युम्न पर बाणों की वर्षा करने लगा। शाल्व के उन बाणों द्वारा कण्ठ के मूलभाग में गहरा आघात लगने से अत्यन्त घायल होकर समर में स्थित महाबाहु वीर प्रद्युम्न उस समय रथ पर मूर्च्छित हो गये। महाराज ! रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न को घायल करके शाल्व बड़े जोर-जोर से सिंहनाद करने लगा। उसकी आवाज से वहाँ की सारी पृथ्वी गूँज उठी। भारत ! मेरे पुत्र के मूर्च्छित हो जाने पर भी शाल्व ने उन पर और भी बहुत-से दुर्द्धर्ष बाण शीघ्रतापूर्वक छोड़े। कौरवश्रेष्ठ ! इस प्रकार बहुत-से बाणों से आहत होने कारण प्रद्युम्न उस रणांगण में मूर्च्छित एवं निश्चेष्ट हो गये।


<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगनपर्व में सौभवधोपाख्यानविषयक सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगनपर्व में सौभवधोपाख्यानविषयक सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>

07:31, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

सप्‍तदश (17) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍यपर्व)

महाभारत: वन पर्व: सप्‍तदश अध्याय: श्लोक 17-25 का हिन्दी अनुवाद

राजेन्द्र ! शाल्व के बाणों से घायल होकर रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न तुरंत ही उस युद्ध भूमि में शाल्व पर एक ऐसा बाण चलाया, जो मर्मस्थल को विदीर्ण कर देने वाला था। मेरे पुत्र के चलाये हुए उस बाण ने शाल्व के कवच को छेदकर उसके हृदय को बींध डाला। इससे वह मूच्र्छित होकर गिर पड़ा। वीर शाल्वराज के अचेत होकर गिर जाने पर उसकी सेना के समस्त दानवराज पृथ्वी को विदीर्ण करके पाताल में पलायन कर गये। पृथ्वीपते ! उस समय सौभ विमान का स्वामी राजा शाल्व जब संज्ञाशून्य होकर धराशायी हो गया, तब उसकी समस्त सेना में हाहाकर मच गया।। 20 ।। कुरुश्रेष्ठ ! तत्पश्चात् जब चेत हुआ, तब महाबली शाल्व सहसा उठकर प्रद्युम्न पर बाणों की वर्षा करने लगा। शाल्व के उन बाणों द्वारा कण्ठ के मूलभाग में गहरा आघात लगने से अत्यन्त घायल होकर समर में स्थित महाबाहु वीर प्रद्युम्न उस समय रथ पर मूर्च्छित हो गये। महाराज ! रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न को घायल करके शाल्व बड़े जोर-जोर से सिंहनाद करने लगा। उसकी आवाज से वहाँ की सारी पृथ्वी गूँज उठी। भारत ! मेरे पुत्र के मूर्च्छित हो जाने पर भी शाल्व ने उन पर और भी बहुत-से दुर्द्धर्ष बाण शीघ्रतापूर्वक छोड़े। कौरवश्रेष्ठ ! इस प्रकार बहुत-से बाणों से आहत होने कारण प्रद्युम्न उस रणांगण में मूर्च्छित एवं निश्चेष्ट हो गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगनपर्व में सौभवधोपाख्यानविषयक सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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