"महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 10 श्लोक 19-36": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
 
छो (1 अवतरण)
(कोई अंतर नहीं)

14:07, 23 अगस्त 2015 का अवतरण

दशम (10) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (आश्रमवास पर्व)

महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 19-36 का हिन्दी अनुवाद

‘पृथ्वीनाथ ! महाराज शान्तनु तथा राजा चित्रांगदे ने जिस प्रकार हमारी रक्षा की है, भीष्म के पराक्रम से सुरक्षित आपके पिता विचित्रवीर्य ने जिस तरह हम लोगों का पालन किया है तथा आपकी देखरेख में रहकर पृथ्वीपति पाण्डु ने जिस प्रकार प्रजाजनों की रक्षा की है, उसी प्रकार राजा दुर्योधन ने भी हम लोगों का यथावत् पालन किया है। ‘नरेश्वर ! आपके पुत्र ने कभी थोड़ा सा भी अन्याय हम लोगों के साथ नहीं किया । हम लोग उन राजा दुर्योधन पर भी पिता के समान विश्वास करते थे और उनके राज्य में बड़े सुख से जीवन व्यतीत करते थे । यह बात आपको भी विदित ही है’। ‘नरेश्वर ! भगवान करें कि बुद्धिमान कुन्तीकुमार राजा युधिष्ठिर धैर्यपूर्वक सहस्त्रों वर्ष तक हमारा पालन करें और हम उनके राज्य में सुख से रहें। ‘यज्ञों में बड़ी बड़ी दक्षिणा प्रदान करने वाले ये धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर प्राचीन काल के पुण्यात्मा राजर्षि कुरू और संवरण आदि के तथा बुद्धिमान राजा भरत के बर्ताव का अनुसरण करते हैं। ‘महाराज ! इनमें कोई छोटे से छोटा दोष भी नहीं है । इनके राज्य में आपके द्वारा सुरक्षित होकर हम लोग सदा सुख से रहते आये हैं। ‘कुरूनन्दन ! पुत्रसहित आपका कोई सूक्ष्म से सूक्ष्म अपराध भी हमारे देखने में नहीं आया है । महाभारत युद्ध में जो जाति भाईयों का संहार हुआ है, उसके विषय में आपने जो दुर्योधन के अपराध की चर्चा की है, इसके सम्बन्ध में भी मैं आपसे कुछ निवेदन करूँगा। ‘कौरवों का जो संहार हुआ है, उसमें न दुर्योधन का हाथ है, न आपका । कर्ण और शकुनि ने भी इसमें कुछ नहीं किया है। ‘हमारी समझ में तो यह दैव का विधान था । इसे कोई टाल नहीं सकता था । दैव को पुरूषार्थ से मिटा देना असम्भव है। ‘महाराज ! उस युद्ध में अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ एकत्र हुई थी; किंतु कौरव पक्ष के प्रधान योद्धा भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य आदि तथा महामना कर्ण ने एवं पाण्डव दल के प्रमुख वीर सात्यकि, धृष्टद्युमन, भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि ने अठारह दिनों में ही सबका संहार कर डाला’। ‘नरेश्वर ! ऐसा विकट संहार दैवीशक्ति के बिना कदापि नहीं हो सकता था । अवश्य ही संग्राम में मनुष्य को विशेषतः क्षत्रिय को समयानुसार श.त्रुओं का संहार एवं प्राणोत्सर्ग करना चाहिये। ‘उन विद्या और बाहुबल से सम्पन्न पुरूष सिंहों ने रथ, घोड़े और हाथियों सहित इस सारी पृथ्वी का नाश कर डाला। ‘आपका पुत्र उन महात्मा नरेशों के वध में कारण नहीं हुआ है । इसी प्रकार न आप, न आपके सेवक, न कर्ण और न शकुनि ही इसमें कारण है। ‘कुरूश्रेष्ठ ! उस युद्ध में जो सहस्त्रों राजा काट डाले गये हैं, वह सब दैव की ही करतूत समझिये । इस विषय में दूसरा कोई क्या कह सकता है। ‘आप इस सम्पूर्ण जगत् के स्वामी है; इसीलिये हम आपको अपना गुरू मानते हैं और आप धर्मात्मा नरेश को वन में जाने की अनुमति देते हैं तथा आपके पुत्र दुर्योधन के लिये हमारा यह कथन है।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख