"महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 80 श्लोक 23-41": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('==अशीतितम (80) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )== <div style="...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (1 अवतरण)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:03, 27 अगस्त 2015 के समय का अवतरण

अशीतितम (80) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व:अशीतितम अध्याय: श्लोक 23-41 का हिन्दी अनुवाद

तब शुभ लक्षणो से युक्त ब्रह्म मुहूर्त में ध्यानस्थ होने पर अर्जुन ने अपने आपको भगवान् श्रीकृष्ण के साथ आकाश में जाते देखा।पवित्र हिमालय के शिखर तथा तेजःपुन्ज से व्याप्त एवं सिद्धों और चारणों से वित मणिमान् पर्वत को भी देखा। उस समय अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण के साथ वायु वेग के समान तीव्र गति से आकाश में बहुत उंचे उठ गये । भगवान् केशव ने उनकी दाहिनी बाहें पकड रखी थी। तत्पशचात धर्मात्मा अर्जुन ने अदभुत दिखायी देने वाले बहुत-से पदार्थो को देखते हुए क्रमश: उत्तर दिशा में जाकर श्वेत पर्वत का दर्शन किया। इसके बाद उन्होने कुबेर के उद्यान में कमलो से विभुशित सरोवर तथा अगाघ जल राशि‍ से भरी हुई सरिताओ में श्रेष्ठ गड्डे का अवलोकन किया। गड्डे के तट पर स्फटिकमणिमय पत्थर सुशोभित होते थे। सदा फुल और फलो से भरे हुए वृक्ष समुह वहां की शोभा बढा रहे थे। गड्डे के उस तट प्रान्त में बहुत-से सिंह और वयाघ्र विचरण करते थे। नाना प्रकार के मृग वहां सब ओर मरे हुए थे।अनेक पवित्र आश्रमों से युक्त और मनोहर पक्षियों से से वित रमणीय गड्डनदी का दर्शन करते हुए आगे बढने पर उन्हे मन्दराचल के प्रदेश दिखायी दिये, जो किन्नरो के उच्च स्वर गाये हुए मधुर गीतो से मुखरित हो रहे थे।सोने और चांदी के शिखर तथा फूलो से भरे हूए पारिजात के वृक्ष उन पर्वतीय प्रान्तो की शोभा बढा रहे थे तथा भांति -भांति की तेजोमयी ओषधियां वहां अपना प्रकाश फैला रही थी। वे क्रमश: आगे बढते हुए स्निगध कज्जलराशि के समान आकार वाले काल पर्वत के समीप जा पहुंचे।। फिर ब्रहतुंगा पर्वत , अन्यान्य नदियों तथा बहुत-से जनपदो को भी उन्होने देखा। तदननतर क्रमश उच्चतम शतश्रृड, शर्यातिवन, पवित्र अश्वशिररःस्थान, आथर्वण, मुनिका स्थान और गिरिराज वृषदंश का वलोकन करते हुए वे महा-मन्दरा- चलपर जा पहुंचे , जो अप्सराओं से वयाप्त और किन्नरो से सुशोभित था। उस पर्वत के उपर से जाते हुए श्रीकृष्ण सहित अर्जुन ने नीचे देखा कि नगरों एवं गांवो के समुदाय से सुशोभित, सुवर्णमय धातुओ से विभूषित तथा सुन्दर झरनो से युक्त पृथ्वी के सम्पूर्ण अतः चन्द्रमा की किरणों से प्रकाशित हो रहे है।बहुत-से रत्नों की खानो से युक्त समुद्र भी अद्भुत आकार- मैं द‍ष्टिगोचर हो रहे थे। इस प्रकार पृथ्वी , अन्तरिक्ष और आकाश एक साथ दर्शन करके आश्चर्य चकित हुए अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ विष्णु पद उच्चतम आकाश में यात्रा करने लगे । वे धनुष चलाये हुए बाण के समान आगे बढ रहे थे।-तदनन्तर कुन्ती कुमार अर्जुन ने एक पर्वत को देखा, जो अपने तेज से प्रज्जवलित -सा हो रहा था । ग्रह, नक्षत्र, चन्द्रमा, सूर्य अग्नि के समान उसकी प्रभा सब ओर फैल रही थी।उस पर्वत पर पहुंचकर अर्जुन ने उसके एक शिखर पर खडे हुए नित्य तपस्यापरायण परमात्मा भगवान् वृषभ-ध्वज दर्शन किया। वे अपने तेज से सहस्त्रो सूर्यों के समान प्रकाशित हो रहे थे। उनके हाथ में त्रिषूल, मस्त कपर जटा और श्री अडों पर वल्कल एवं मृगचर्म के वस्त्र शोभा पा रहे थे। उनकी कान्ति गौरवर्ण की थी।सहस्त्रो नेत्रो से युक्त उनके श्रीविग्रह की विचित्र शोभा हो रही थी। वे तेजस्वी महादेव अपनी धर्मपत्नी पार्वती जी- के साथ विराजमान थे और तेजोमय शरीर वाले भृतों के समुदाय उनकी सेवा में उपस्थित थे।उनके सम्मुख गीतों और वाद्यों की मधुर ध्वनि हो रही थी। हास्य-लास्य नृत्य का प्रदर्शन किया जा रहा था। प्रमथगण उछल-कूदकर बाहे फैलाकर और उच्चस्वर से बोल- बोलकर अपनी कलाओं से भगवान् का मनोरंजन करते थे। उनकी सेवा में पवित्र, सुगन्धित पदार्थ प्रस्तुत किये गये थे।



« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख