"महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 87 श्लोक 16-35": अवतरणों में अंतर
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (1 अवतरण) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:06, 27 अगस्त 2015 का अवतरण
सप्ताषीतितम (87) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
जिन पर युद्ध कुशल हाथीसवार आरूढ थे, ऐसे भयंकर रूप तथा पराक्रमवाले डेढ हजार कवच धारी मतवाले गज- राजों के साथ आकर आपका पुत्र दुर्मर्षण युद्ध के लिये उद्यत हो सम्पूर्ण सेनाओं के आगे खडा हुआ। तत्पश्चात् आपके दो पुत्र दुःशासन और विकर्ण सिन्धु-राज जयद्रथ के अभीष्ट अर्थ की सिद्धि के लिये सेना के अग्र-भाग में खड़े हुए। आचार्य द्रोण ने चक्र गर्भ शकट-व्यूह का निर्माण किया था, जिसकी लम्बाई बारह गव्यूति चौबीस कोस थी और पिछले भाग की चैडाई पांच गव्यूति दस कोस थी। यत्र-तत्र खड़े हुए अनके नरपतियों तथा हाथीसवार, घुड़सवार, रथी और पैदल सैनिकों द्वारा द्रोणाचार्य ने स्वयं उस व्यूह की रचना की थी।उस चक्रशकटव्यूह के पिछले भाग में पद्यनामक एक गर्भव्यूह बनाया था, जो अत्यन्त दुर्भेग्द था ।उस पद्यव्यूह के मध्यभाग में सूची नामक एक गूढ़ व्यूह और बनाया गया था । इस प्रकार इस महाव्यूह की रचना करके द्रोणाचार्य युद्ध के लिये तैयार खड़े थे। सूचीमुख व्यूह के प्रमुख भाग में महाधनुर्धर कृतवर्मा खडा किया गया था।आर्य। कृतवर्मा के पीछे काम्बोजराज और जलसंघ खड़े हुए, तदनन्तर दुर्योधन और कर्ण स्थित हुए।तत्पश्चात् युद्ध में पीढ न दिखाने वाले एक लाख योद्धा खडे हुए थे। वे सबके सब शकअव्यूह के प्रमुख भाग की रक्षा के लिये नियुक्त थे।उनके पीछे विषाल सेना के साथ स्वयं राजा जयद्रथ सूचीव्यूह के पाष्र्वभाग में खड़ा था।राजेन्द्र। उस शकटव्यूह के मुहाने पर भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्य थे और उनके पीछे भोज था, जो स्वयं आचार्य- की रक्षा करता था।द्रोणाचार्य का कवच श्वेत रंग का था। उनके वस्त्र और उष्णीय भी श्वेत ही थे। छाती चौडी और भूजाएं विशाल थी। उस समय धनुष खींचते हुए द्रोणाचार्य वहां क्रोध में भरे हुए यमराज के समान खडे थे।उस समय वेदी और काले मृगचर्म के चिन्ह से युक्त ध्वजवाले, पताका से सुशोभित और लाल घोडा़ं से जुते हुए द्रोणाचार्य के रथ को देखकर समस्त कौरव बड़े प्रसन्न हुए।द्रोणचार्य द्वारा रचित चह महाव्यूह महासागर के समान जान पडता था । उसे देखकर सिद्धों और चारणों के समुदायों को महान् विस्मय हुआ।उस समय प्राणी ऐसा मानने लगे कि व्यूह पर्वत, समुद्र और काननों सहित अनेकाने का जन पदों से भरी हुई इस सारी पृथ्वी को अपना ग्रास बना लेगा।बहुत-से रथ, पैदल मनुष्य, घोड़े और हथियों से परिपूर्ण, भयंकर कोलाहल से युक्त एवं शत्रुओं के हदय को विदीर्ण करने में समर्थ , अद्भुत और समय के अनुरूप बने हुए उस महान् शकटव्यूह को देखकर राजा दुर्योधन बहुत प्रसत्र हुआ।
« पीछे | आगे » |