"महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 102 श्लोक 1-18": अवतरणों में अंतर

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द्वयधिकशततम (102) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: द्वयधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

श्री कृष्‍ण अर्जुन की प्रशंसा पूर्वक उसे प्रोत्‍साहन देना, अर्जुन और दुर्योधन का एक दूसरे के सम्‍मुख आना, कौरव-सैनिकों का भय तथा दुर्योधन का अर्जुन को ललकारना

श्री कृष्‍ण बोले- घनंजय। सबको लांघकर सामने आये हुए दुर्योधन को देखो। मैं तो इसे अत्‍यन्‍त अभ्‍दूत योद्धा मानता हूं। इसके समान दूसरा कोई रथी नहीं है।

यह महाबली धृतराराष्‍ट्र दूर तक के लक्ष्य को मार गिराने वाला, महान् धनुर्धर, अब विद्या में निपुण और युद्ध में दुर्मद है । इसके अस्‍त्र-शस्‍त्र अत्‍यन्‍त सुद्यढ़ हैं तथा यह विचित्र रीति से युद्ध करने वाला है। कुन्‍तीकुमार। महारथी दुर्योधन अत्‍यन्‍त सुख से पला हुआ सम्‍मानित और विद्वान् है । यह तुम जैसे बन्‍धु बान्‍धवों से नित्‍य-निरन्‍तर द्वेष रखता है। निष्‍पाप अर्जुन । मैं समझता हूं, इस समय इसी के साथ युद्ध करने का अवसर प्राप्‍त हुआ है। यहां तुम लोगों के अधीन जो रणद्युत होने वाला है, वही विजय अथवा पराजय का कारण होगा। पार्थ। तुम बहुत दिनों से संजोकर रक्‍खे हुए अपने क्रोध रुपी विष को इसके उपर छोड़ों । महारथी दुर्योधन ही पाण्‍डवों के सारे अनर्थों की जड़ है। आज यह तुम्‍हारे बाणों के मार्ग में आ पहुंचा है। इसे तुम अपनी सफलता समझो; अन्‍यथा राज्‍य की अभिलाषा रखने वाला राजा दुर्योधन तुम्‍हारे साथ युद्ध भूमि में कैसे उतर सकता था। धनंजय। सौभाग्‍यवश यह दुर्योधन इस समय तुम्‍हारे बाणों के पथ में आ गया है। तुम ऐसा प्रयत्‍न करो, जिससे यह अपने प्राणों को त्‍याग दे। पुरुष रत्‍न । ऐश्रवर्य के घमंड में चूर रहने वाले इस दुर्योधन ने कभी कष्‍ट नहीं उठाया है। य‍ह युद्ध में तुम्‍हारे बल पराक्रम को नहीं जानता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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