"महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 78 श्लोक 1-17": अवतरणों में अंतर

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अष्‍टसप्‍ततितम (78) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: अष्‍टसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन का सेन्‍धवों के साथ युद्ध और दुशला के अनुरोध से उसकी समाप्‍ति

वैशम्‍पायनजी कहते हैं– जनमेजय ! तदनन्‍तर गाण्‍डीवधारी शूरवीर अर्जुन युद्ध के लिये उद्यत हो गये। वे शत्रुओं के लिये दुर्जन थे और युद्धभूमि में हिमवान् पर्वत के समान अचल भाव से डटे रहकर बड़ी शोभा पाने लगे। भरतनन्‍दन ! तदनन्‍तर सिन्‍धुदेशीय योद्धा फिर से संगिठत होकर खड़े हो गये और अत्‍यन्‍तक्रोध में भरकर बाणों की वर्षा करने लगे। उस समय महाबाहु कुन्‍तीकुमार अर्जुन पुन: मरने की इच्‍छा से खड़े हुए सैन्‍धवों को सम्‍बोधित करके हंसते हुए मधुर वाणी में बोले–‘वीरों ! तुम पूरी शक्‍ति लगाकर युद्ध करो और मुझ पर विजय पाने का प्रयत्‍न करते रहो। तुम अपने सारे कार्य पूरे कर लो। तुम लोगों पर महान भय आ पहुंचा है ।यह देखो– मैं तुम्‍हारें बाणों का जाल छिन्‍न–भिन्‍न करके तुम सब लोगों के साथ युद्ध करने को उद्यत हूं ‘मन में युद्ध का हौसला लेकर खड़े रहो । मैं तुम्‍हारा घमण्‍ड चूर किये देता हूं ।‘ भारत ! गाण्‍डीवधारी कुरुनन्‍दप अर्जुन शत्रुओं से ऐसा वचन कहकर अपने बड़े भाई की कही हुई बातें याद करने लगे। महात्‍मा धर्मराज ने कहा था कि ‘तात ! रणभूमि में विजय की इच्‍छा रखने वाले क्षत्रियों का वध न करना। साथ ही उन्‍हें पराजित भी करना।‘ इस बात को याद करके पुरुष प्रवर अर्जुन इस प्रकार चिन्‍ता करने लगे। ‘अहो ! महाराज ने कहा था कि क्षत्रियों का वध न करना। धर्मराज का वह मंगलमय वचन कैसे मिथ्‍या न हो। राजालोग मारे न जाय और राजा युधिष्‍ठिर की आज्ञा का पालन हो जाय, इसके लिये क्‍या करना चाहिये ।ऐसा सोचकर धर्म के ज्ञाता पुरुष प्रवर अर्जुन ने रणोन्‍मत्‍त सैन्‍धवों से इस प्रकार कहा-‘योद्धाओं ! मैं तुम्‍हारे कल्‍याण की बात बता रहा हूं। तुममें से जो कोई अपनी पराजय स्‍वीकार करते हुए रणभूमि में यह कहेगा कि मैं आपका हूं, आपने मुझे युद्ध में जीत लिया है, वह सामने खड़ा रहे तो भी मैं उसका वध नहीं करूंगा । मेरी यह बात सुनकर तुम्‍हें जिसमें अपना हित दिखायी पड़े, वह करो। ‘यदि मेरे कथन के विपरीत तुम लोग युद्ध के लिये उद्यत हुए तो मुझसे पीड़ित होकर भारी संकट में पड़ जाओगे ।उन वीरों से ऐसा कहकर कुरुकुलितलक अर्जुन अत्‍यन्‍त कुपित हो क्रोध में भरे हुए विजयाभिलाषी सैन्‍धवों के साथ युद्ध करने लगे। राजन ! उस समय सैन्‍धवों ने गाण्‍डीवधारी अर्जुन पर झुकी हुई गांठवाले एक करोड़ बाणों का प्रहार किया। विषधर सर्पों के समान उन कठोर बाणों को अपनी ओर आते देख अर्जुन ने तीखे सायकों द्वारा उन सबको बीच से काट डाला। सान पर चढ़कर तेज किये हुए उन कंक पत्र युक्‍त बाणों के तुरन्‍त ही टुकड़े–टुकड़े करके समरांगण में अर्जुन ने सैन्‍धव वीरों में से प्रत्‍येक को पैने बाण मारकर घायल कर दिया। तदनन्‍तर जयद्रथ–वध का स्‍मरण करके सैन्‍धवों ने अर्जुन पर पुन: बहुत–से प्रासों और शक्‍तियों का प्रहार किया। परंतु महाबली किरीटधारी पाण्‍डुकुमार अर्जुन ने उनका सारा मनसूबा व्‍यर्थ कर दिया। उन्‍होंने उन सभी प्रासों और शक्‍तियों को बीच से ही काटकर बड़े जोर से गर्जना की। साथ ही विजय की अभिलाषा लेकर आक्रमण करने वाले उन सैन्‍धव योद्धाओं के मस्‍तकों को वे झुकी हुई गांठ वाले भल्‍लों द्वारा काट–काट कर गिराने लगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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