"महाभारत आदि पर्व अध्याय 18 श्लोक 40-46": अवतरणों में अंतर
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अष्टादश (18) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
तत्पश्चात श्वेत रंग के चार दाँतों से सुशोभित विशालकाय महानाग ऐरावत प्रकट हुआ, जिसे वज्रधारी इन्द्र ने अपने अधिकार में कर लिया। तदनन्तर अत्यन्त वेग से मथने पर कालकूट महाविष उत्पन्न हुआ, वह धूमयुक्त अग्नि की भाँति एकाएक सम्पूर्ण जगत को घेर कर जलाने लगा। उस विष की गन्ध सूँघते ही त्रिलोकी के प्राणी मूर्च्छित हो गये । तब ब्रह्माजी के प्रार्थना करने पर भगवान श्रीशंकर ने त्रिलोकों की रक्षा के लिये उस महान विष को पी लिया। मन्त्र मूर्ति भगवान महेश्वर ने विषपान करके उसे अपने कण्ठ में धारण कर लिया। तभी से महादेव जी नीलकण्ठ के नाम से विख्यात हुए, ऐसी जनश्रुति है। ये सब अदभुत बातें देखकर दानव निराश हो गये और अमृत तथा लक्ष्मी के लिये उन्होंने देवताओं के साथ महान वैर बाँध लिया। उसी समय भगवान विष्णु ने मोहिनी माया का आश्रय ले मनोहारिणी स्त्री का अदभुत रूप बनाकर, दानवों के पास पदार्पण किया। समस्त दैत्यों और दानवों ने उस मोहिनी पर अपना हृदय निछावर कर दिया। उनके चित्त में मूढ़ता छा गयी। अतः उन सब ने स्त्री रूपधारी भगवान को वह अमृत सौंप दिया। (भगवान नारायण की वह मूर्तिमती माया हाथ में कलश लिये अमृत परोसने लगी। उस समय दानवों सहित दैत्य पंगत लगाकर बैठै ही रह गये, परन्तु उस देवी ने देवताओं को ही अमृत पिलाया; दैत्यों को नहीं दिया, इससे उन्होंने बड़ा कोलाहल मचाया)।
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