"महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 18 श्लोक 20-25": अवतरणों में अंतर
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अष्टादश (18) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (आश्रमवास पर्व)
गान्धारी के निकट ही उत्तम व्रत में स्थित हुई युधिष्ठिर की माता कुन्ती भी कुशासन पर सोयीं और उसी में उन्होंने सुख माना। विदुर आदि भी राजा से उतनी ही दूर पर सोये जहाँ से उनकी बोली सुनायी दे सके । यज्ञ कराने वाले ब्राह्मण तथा राजा के साथ आये हुए अन्य द्विज यथायोग्य स्थान पर सोये। उस रात में मुख्य-मुख्य ब्राह्मण स्वाध्याय करते थे और जहाँ-तहाँ अग्निहोत्र की आग प्रज्वलित हो रही थी । इससे वह रजनी उन लोगों के लिये ब्राह्मी निशा के समान आनन्द बढ़ाने वाली हो रही थी। तत्पश्चात् रात बीतने पर पूर्वाह्णकाल की क्रिया पूरी करके विधिपूर्वक अग्नि में आहुती देने के पश्चात् वे सब लोग क्रमशः आगे बढ़ने लगे । उन सबने रात्रि में उपवास किया था और सभी उत्तर दिशा की ओर मुँह करके उधर ही देखते हुए चले ला रहे थे। नगर और जनपद के लोग जिनके लिये शोक कर रहे थे तथा जो स्वयं भी शोकमग्न थे, उन धृतराष्ट्र आदि के लिये यह पहले दिन का निवास बड़ा ही दुःखदायी प्रतीत हुआ।
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