"महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 70 श्लोक 14-24": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
 
छो (1 अवतरण)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:03, 27 अगस्त 2015 के समय का अवतरण

सप्‍ततितम (70) अध्याय: द्रोण पर्व ( अभिमन्‍युपर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व:सप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 14-24 का हिन्दी अनुवाद


सहस्‍त्रों और लाखों कोटि क्षत्रियों के इन्‍द्रगोप (वीर बहूटी) नामक कीट तथा बन्‍धुजीव (दुपहरिया) पुष्‍प के समान रंगवाले रक्‍त की धाराओं से भृगुनन्‍दन परशुराम ने कितने ही तालाब भर दिये और समस्‍त अठारह द्वीपों को अपने वश में करके उत्‍तम दक्षिणाओं से युक्‍त सौ पवित्र यज्ञों का अनुष्‍ठान किया । उस यज्ञ में विधिपूर्वक बत्‍तीस हाथ ऊँची सोने की बेदी बनायी गयी थी, जो सब प्रकार के सैकडों रत्‍नों से परिपूर्ण और सौ पताकाओं से सुशोभित थी । जमदग्निनन्‍दन परशुराम की उस वेदी को तथा ग्रामीण और जंगली पशुओं से भरी पूरी इस पृथ्‍वी को भी महर्षि कश्‍यप ने दक्षिणारूप से ग्रहण किया । उस समय परशुराम जी ने लाखों गजराजों को सोने के आभूषणों से विभूषित करके तथा पृथ्‍वी को चोर-डाकुओं से सूनी और साधु पुरुषों से भरी-पूरी करके महायज्ञ अश्‍वमेघ में कश्‍यपजी को दे दिया । वीर एवं शक्तिशाली परशुराम जी ने इक्‍कीस बार इस पृथ्‍वी को क्षत्रियों से शून्‍य करके सैकडों यज्ञों द्वारा भगवान्‍ का यजन किया और इस वसुधा को ब्राह्मणों के अधिकार में दे दिया । ब्रह्मर्षि कश्‍यप ने जब सातों द्वीपों से युक्‍त यह पृथ्‍वी दान में ले ली तब उन्‍होंने परशुराम जी से कहा – ‘अब तू मेरी आज्ञा से इस पृथ्‍वी से निकल जाआ’ (और कहीं अन्‍यत्र जाकर रहो) । कश्‍यप के इस आदेश से योद्धाओं में श्रेष्‍ठ परशुराम ने जितनी दूर बाण फेंका जा सकता है, समुद्र को उतनी ही दूर पीछे हटाकर ब्राह्मण की आज्ञा का पालन करते हुए उत्‍तम पर्वत गिरिश्रेष्‍ठ महेन्‍द्र पर निवास किया। इस प्रकार भृगुकुल की कीर्ति बढाने वाले महायशस्‍वी, महातेजस्‍वी और सैकडों गुणों से सम्‍पन्‍न जमदग्निनन्‍दन परशुराम भी एक न एक दिन मरेंगे ही । सृंजय ! चारों कल्‍याणकारी गुणों में वे तुमसे श्रेष्‍ठ और तुम्‍हारे पुत्र से अधिक पुण्‍यात्‍मा हैं । अत: तुम यज्ञानुष्‍ठान और दान-दक्षिणा से रहित अपने पुत्र के शोक न करो ।नरश्रेष्‍ठ सृंजय ! अब तक जिन लोगों का वर्ण किया गया है, वे चतुर्विध कल्‍याणकारी गुणों में तो तुमसे बढकर थे ही, तुम्‍हारी अपेक्षा उनमें सैकडों मंगलकारी गुण अधिक भी थे, तथापि वे मर गये और जो विद्यमान हैं, वे भी मरेंगे ही।

इस प्रकर श्रीमहाभारत द्रोण पर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवध पर्व में षोडशराजकीयोपाख्‍यान विषयक सत्‍तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख