"महाभारत सभा पर्व अध्याय 1 श्लोक 15-21": अवतरणों में अंतर
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प्रथम (1) अध्याय: सभा पर्व (सभाक्रिया पर्व)
तत्पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन ने धर्मराज युधिष्ठिर को ये सब बातें बताकर मयासुर को उनसे मिलाया। भारत ! राजा युधिष्ठिर ने उस समय मयासुर का यथायोग्य सत्कार किया और मयासुर ने भी बडे़ आदर के साथ उनका वह सत्कार ग्रहण किया। जनमेजय ! दैत्यराज मय ने उस समय वहाँ पाण्डवों को दैत्यों के अद्भुत चरित्र सुनाये। कुछ दिनों तक वहाँ आराम से रहकर दैत्यों के विश्वकर्मा मयासुर ने सोच विचारकर महात्मा पाण्डवों के लिये सभा भवन बनाने की तैयारी की। उसने कुन्तीपुत्रों तथा महात्मा श्रीकृष्ण की रूचि के अनुसार सभा बनाने का निश्चय किया । किसी पवित्र तिथि को (शुभ मुहूर्त में) मंगलानुष्ठान, स्वस्तिवाचन आदि करके महातेजस्वी और पराक्रमी मय ने हजारों श्रेष्ठ ब्राह्मणें को खीर खिलाकर तृप्त किया तथा उन्हें अनेक प्रकार का धन दान किया। इसके बाद उसने सभा बनाने के लिये समस्त ऋतुओं के गुणों से सम्पन्न दिव्य रूपवाली मनोरम सब ओर से दस हजार हाथ की (अर्थात् दस हजार हाथ चैड़ी और दस हजार हाथ लम्बी) धरती नपवायी।
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