"महाभारत स्‍त्री पर्व अध्याय 24 श्लोक 19-30": अवतरणों में अंतर

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यह वही हाथ है, जो हमारी करधनी को खींच लेता, उभरे हुए स्तनों का मर्दन करता, नाभि, उरू और जघन प्रदेष का छूता और निभिका बन्दन सरका दिया करता था।
यह वही हाथ है, जो हमारी करधनी को खींच लेता, उभरे हुए स्तनों का मर्दन करता, नाभि, उरू और जघन प्रदेष का छूता और निभिका बन्दन सरका दिया करता था।
जब मेरे पति समरांगन में दूसरे के साथ युद्ध में संलग्न हो अर्जुन की ओर से असावधान थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था।
जब मेरे पति समरांगन में दूसरे के साथ युद्ध में संलग्न हो अर्जुन की ओर से असावधान थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था।
जनार्दन। तुम सतपुरूषों की सभाओं में, बातचीत के प्रसंग में अर्जुन के महान कर्म का किस तरह वर्णन करोगे? अथवा स्वयं किरीटाधारी अर्जुन ही कैसे इस जघन्य कार्य की चर्चा करेंगे?  
जनार्दन। तुम सतपुरुषों की सभाओं में, बातचीत के प्रसंग में अर्जुन के महान कर्म का किस तरह वर्णन करोगे? अथवा स्वयं किरीटाधारी अर्जुन ही कैसे इस जघन्य कार्य की चर्चा करेंगे?  
इस तरह अर्जुन की निंदा करके यह सुन्दरी चुप हो गयी है। इसकी बड़ी सौतें इसके लिये उसी प्रकार शोक प्रकट कर रही हैं, जैसे सास अपनी बहू के लिये किया करती है।
इस तरह अर्जुन की निंदा करके यह सुन्दरी चुप हो गयी है। इसकी बड़ी सौतें इसके लिये उसी प्रकार शोक प्रकट कर रही हैं, जैसे सास अपनी बहू के लिये किया करती है।
यह गान्धार देष का राजा महाबली सत्यपराक्रमी शकुनि पड़ा हुआ है। यह सहदेव ने मारा है। भान्जे ने मामा के प्राण लिये हैं।
यह गान्धार देष का राजा महाबली सत्यपराक्रमी शकुनि पड़ा हुआ है। यह सहदेव ने मारा है। भान्जे ने मामा के प्राण लिये हैं।

07:33, 3 जनवरी 2016 का अवतरण

चतुर्विंष (24) अध्याय: स्‍त्रीपर्व (जलप्रदानिक पर्व )

महाभारत: स्‍त्रीपर्व: चतुर्विंष अध्याय: श्लोक 19-30 का हिन्दी अनुवाद

यह वही हाथ है, जो हमारी करधनी को खींच लेता, उभरे हुए स्तनों का मर्दन करता, नाभि, उरू और जघन प्रदेष का छूता और निभिका बन्दन सरका दिया करता था। जब मेरे पति समरांगन में दूसरे के साथ युद्ध में संलग्न हो अर्जुन की ओर से असावधान थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था। जनार्दन। तुम सतपुरुषों की सभाओं में, बातचीत के प्रसंग में अर्जुन के महान कर्म का किस तरह वर्णन करोगे? अथवा स्वयं किरीटाधारी अर्जुन ही कैसे इस जघन्य कार्य की चर्चा करेंगे? इस तरह अर्जुन की निंदा करके यह सुन्दरी चुप हो गयी है। इसकी बड़ी सौतें इसके लिये उसी प्रकार शोक प्रकट कर रही हैं, जैसे सास अपनी बहू के लिये किया करती है। यह गान्धार देष का राजा महाबली सत्यपराक्रमी शकुनि पड़ा हुआ है। यह सहदेव ने मारा है। भान्जे ने मामा के प्राण लिये हैं। पहले सोने के डण्डों से विभूषित दो-दो व्यजनों द्वारा जिसको हवा की जाती थी, वही शकुनि आज धरती पर सो रहा है और पक्षी अपनी पांखों से इसको हवा करते हैं। जो अपने सैकड़ों और हजारों रूप बना लिया करता था, उस मायावी की सारी मायाऐं पाण्डु पुत्र सहदेव के तेज से दग्ध हो गयीं । जो छलविद्या का पण्डित था, जिसने द्यूतसभी में माया द्वारा युधिष्ठिर तथा उनके विशाल राज को जीत लिया था, वही फिर अपना जीवन भी हार गया। श्रीकृष्ण। आज शकुनि (पक्षी) ही इस शकुनि की चारों ओर से उपासना करते हैं। इसने मेेरे पुत्रों के विनाश के लिये ही द्यूतविद्या अथवा धूर्तविद्या सीखी थी। इसी ने सगे सम्बन्धियों सहित अपने और मेरे पुत्रों के वध के लिये पाण्डवों के साथ महान वैर की नींव डाली थी। प्रभो। जैसे मेरे पुत्रों को शस्त्रों द्वारा जीते हुए पुण्य लोक प्राप्त हुए हैं, उसी प्रकार इस दुर्बुद्वि शकुनि को भी शस्त्र द्वारा जीते हुए उत्तम लोक प्राप्त होंगे। मधुसूदन। मेरे पुत्र सरल बुद्वि के हैं। मुझे भय है कि उन पुण्य लोकांे में पहुंच कर यह शकुनि फिर किसी प्रकार उन सब भाईयांे में परस्पर विरोध न उत्पन्न कर दे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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