"महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 18 श्लोक 33-35": अवतरणों में अंतर

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जन्म, मृत्यु एवं रोगों से घिरा हुआ जो पुरुश प्रधान तत्त्व (प्रकृति) को जानता है और समस्त चेतन प्राणियों में चैतन्य को समान रूप से व्याप्त देखता है, व पूर्ण परम पद के अनुसंधान में संलज्न हो जगत के भोगों से विरक्त हो जाता है। साधुशिरोमणे! उस वैराज्यवान पुरुष के लिये जो  हितकर उपदेश है, उसका मैं यथार्थ रूप से वर्णन करूँगा।  उसके लिये जो सनातन अविनाशी परमात्मा का उत्तम ज्ञान अभीष्ट है, उसका मैं वर्णन करता हूँ। विप्रवर! तुम सारी बातों को ध्यान देकर सुनो।
जन्म, मृत्यु एवं रोगों से घिरा हुआ जो पुरुश प्रधान तत्त्व (प्रकृति) को जानता है और समस्त चेतन प्राणियों में चैतन्य को समान रूप से व्याप्त देखता है, व पूर्ण परम पद के अनुसंधान में संलज्न हो जगत् के भोगों से विरक्त हो जाता है। साधुशिरोमणे! उस वैराज्यवान पुरुष के लिये जो  हितकर उपदेश है, उसका मैं यथार्थ रूप से वर्णन करूँगा।  उसके लिये जो सनातन अविनाशी परमात्मा का उत्तम ज्ञान अभीष्ट है, उसका मैं वर्णन करता हूँ। विप्रवर! तुम सारी बातों को ध्यान देकर सुनो।


इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में अट्ठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में अट्ठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

13:47, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

अष्टादश (18) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: अष्टादश अध्याय: श्लोक 33-35 का हिन्दी अनुवाद


जन्म, मृत्यु एवं रोगों से घिरा हुआ जो पुरुश प्रधान तत्त्व (प्रकृति) को जानता है और समस्त चेतन प्राणियों में चैतन्य को समान रूप से व्याप्त देखता है, व पूर्ण परम पद के अनुसंधान में संलज्न हो जगत् के भोगों से विरक्त हो जाता है। साधुशिरोमणे! उस वैराज्यवान पुरुष के लिये जो हितकर उपदेश है, उसका मैं यथार्थ रूप से वर्णन करूँगा। उसके लिये जो सनातन अविनाशी परमात्मा का उत्तम ज्ञान अभीष्ट है, उसका मैं वर्णन करता हूँ। विप्रवर! तुम सारी बातों को ध्यान देकर सुनो।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में अट्ठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।






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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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