"महाभारत वन पर्व अध्याय 9 श्लोक 17-23": अवतरणों में अंतर
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'''व्यासजी कहते हैं'''- [[कुरु]] राज ! [[सुरभि]] की यह बात सुनकर इन्द्र बड़े विस्मित हो गये। तब से वे पुत्रों को प्राणों से भी अधिक प्रिय मानने लगे। उस समय वहाँ पाकशासन भगवान इन्द्र ने किसान के कार्य में | '''व्यासजी कहते हैं'''- [[कुरु]] राज ! [[सुरभि]] की यह बात सुनकर इन्द्र बड़े विस्मित हो गये। तब से वे पुत्रों को प्राणों से भी अधिक प्रिय मानने लगे। उस समय वहाँ पाकशासन भगवान इन्द्र ने किसान के कार्य में विघ्न डालते हुए सहसा भयंकर वर्षा की। इस प्रसंग में सुरभि ने जैसा कहा है, वह ठीक है, कौरव और पाण्डव सभी मिलकर तुम्हारे ही पुत्र हैं। परंतु राजन ! सब पुत्रों में जो हीन हों, दयनीय दशा में पड़े हों, उन्हीं पर अधिक कृपा होनी चाहिये। | ||
वत्स ! जैसे पाण्डु मेरे पुत्र हैं, वैसे ही तुम भी हो, उसी प्रकार महाज्ञानी विदुर भी हैं। मैंने स्नेहवश ही तुम से ये बातें कही हैं। भारत ! दीर्घकाल से तुम्हारे एक सौ एक पुत्र हैं; किंतु पाण्डु के पाँच ही पुत्र देखे जाते हैं। वे भी भोले-भाले, छल-कपट से रहित हैं और अत्यन्त दुःख उठा रहे हैं। ‘वे कैसे जीवित रहेंगे और कैसे वृद्धि को प्राप्त होंगे?‘ इस प्रकार [[कुन्ती]] के उन दीन पुत्रों के प्रति सोचते हुए मेरे मन में बड़ा संताप होता है। राजन ! यदि तुम चाहते हो कि समस्त कौरव यहाँ जीवित रहें, तो तुम्हारा पुत्र [[दुर्योधन]] पाण्डवों से मेल करके शान्तिपूर्वक रहे। | वत्स ! जैसे पाण्डु मेरे पुत्र हैं, वैसे ही तुम भी हो, उसी प्रकार महाज्ञानी विदुर भी हैं। मैंने स्नेहवश ही तुम से ये बातें कही हैं। भारत ! दीर्घकाल से तुम्हारे एक सौ एक पुत्र हैं; किंतु पाण्डु के पाँच ही पुत्र देखे जाते हैं। वे भी भोले-भाले, छल-कपट से रहित हैं और अत्यन्त दुःख उठा रहे हैं। ‘वे कैसे जीवित रहेंगे और कैसे वृद्धि को प्राप्त होंगे?‘ इस प्रकार [[कुन्ती]] के उन दीन पुत्रों के प्रति सोचते हुए मेरे मन में बड़ा संताप होता है। राजन ! यदि तुम चाहते हो कि समस्त कौरव यहाँ जीवित रहें, तो तुम्हारा पुत्र [[दुर्योधन]] पाण्डवों से मेल करके शान्तिपूर्वक रहे। | ||
11:40, 3 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
नवम (9) अध्याय: वन पर्व (अरण्यपर्व)
व्यासजी कहते हैं- कुरु राज ! सुरभि की यह बात सुनकर इन्द्र बड़े विस्मित हो गये। तब से वे पुत्रों को प्राणों से भी अधिक प्रिय मानने लगे। उस समय वहाँ पाकशासन भगवान इन्द्र ने किसान के कार्य में विघ्न डालते हुए सहसा भयंकर वर्षा की। इस प्रसंग में सुरभि ने जैसा कहा है, वह ठीक है, कौरव और पाण्डव सभी मिलकर तुम्हारे ही पुत्र हैं। परंतु राजन ! सब पुत्रों में जो हीन हों, दयनीय दशा में पड़े हों, उन्हीं पर अधिक कृपा होनी चाहिये। वत्स ! जैसे पाण्डु मेरे पुत्र हैं, वैसे ही तुम भी हो, उसी प्रकार महाज्ञानी विदुर भी हैं। मैंने स्नेहवश ही तुम से ये बातें कही हैं। भारत ! दीर्घकाल से तुम्हारे एक सौ एक पुत्र हैं; किंतु पाण्डु के पाँच ही पुत्र देखे जाते हैं। वे भी भोले-भाले, छल-कपट से रहित हैं और अत्यन्त दुःख उठा रहे हैं। ‘वे कैसे जीवित रहेंगे और कैसे वृद्धि को प्राप्त होंगे?‘ इस प्रकार कुन्ती के उन दीन पुत्रों के प्रति सोचते हुए मेरे मन में बड़ा संताप होता है। राजन ! यदि तुम चाहते हो कि समस्त कौरव यहाँ जीवित रहें, तो तुम्हारा पुत्र दुर्योधन पाण्डवों से मेल करके शान्तिपूर्वक रहे।
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