महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 37 श्लोक 20-37

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सप्‍त‍त्रिश (37) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: सप्‍त‍त्रिश अध्याय: श्लोक 20-37 का हिन्दी अनुवाद

तब आपके सभी पुत्रों ने मिलकर अभिमन्‍यु को त्रास देना आरम्‍भ किया, फिर तो वह क्रोध से जल उठा और अपनी अस्‍त्रशिक्षा तथा हृदय का महान बल दिखाने लगा । इतने मे ही अश्‍म‍क के पुत्र ने सारथि के आदेश का पालन करने वाले, गरूड और वायु के समान वेगशाली सुशिक्षित घोड़ों द्वारा बड़ी तेजी से वहां आकर अभिमन्‍यु को रोका और दस बाण उसे घायल कर दिया, साथ ही इस प्रकार कहा-अरे ! खड़ा रह, खड़ा रह । तब अभिमन्‍यु ने मुसकराकर अश्‍मक पुत्र के घोडों, सारथि, ध्‍वज, भुजाओं, धनुष तथा मस्‍तक को भी दस बाणों से पृथ्‍वीपर काट गिराया। सुभद्राकुमार अभिमन्‍युके द्वारा वीर अश्‍मक राजकुमार के मारे जाने पर सारी सेना विचलित हो भागने लगी । तदनन्‍तर कर्ण, कुपाचार्य, द्रोणाचार्य, अश्‍वत्‍थामा, गान्‍धारराज, शकुनि, शल, शल्‍य, भूरिश्रवा, क्राथ, सोमदत, विविंशति, वृषसेन, सुषेण, कुण्‍डभेदी, प्रतर्दन, वृन्‍दारक, ललित्‍थ, प्र‍बाहु, दीर्धलोचन तथा अत्‍यन्‍त क्रोध में भरे हुए दुर्योधन ने अभिमन्‍यु पर बाणोंकी वर्षा आरम्‍भ कर दी ।इन महाधनुर्धर वीरों के चलाये हुए बाणों से अत्‍यन्‍त घायल होकर अभिमन्‍यु ने कर्ण को लक्ष्‍य करके एक ऐसा बाण हाथ में लिया, जो उसके कवच और काया को विदीर्ण कर डालनेवाला था । जैसे सर्प बाँबी में घुस जाता है, उसी प्रकार अभिमन्‍यु का छोड़ा हुआ वह बाण कर्ण के शरीर और कवच को विदीर्ण करके बडे वेग से धरती में समा गया । जैसे भूकम्‍प होने पर पर्वत भी हिलने लगता है, उसी प्रकार उस अत्‍यन्‍त गहरे आघात से व्‍यथित एवं विह्रल-सा होकर कर्ण उस रणभूमिमें विचलित हो उठा । फिर बलवान अभिमन्‍यु ने अत्‍यन्‍त कुपित होकर दूसरे तीन पैने बाणों द्वारा सुषेण, दीर्घलोचन तथा कुण्‍डभेदी इन तीन वीरों को घायल कर दिया । तब कर्ण ने पच्‍चीस, अश्‍वत्‍थामा ने बीस तथा कृतवर्मा ने सात नाराचों द्वारा अभिमन्‍यु को गहरी चोट पहॅुचायी । उस समय इन्‍द्र कुमार अर्जुन के पुत्र अभिमन्‍यु के सम्‍पूर्ण अंगों में बाण-ही-बाण व्‍याप्‍त हो रहे थे, वह क्रोध में भरे हुए पाशधारी यमराज के समान शत्रुसेना में विचरता दिखायी देता था । राजा शल्‍य अभिमन्‍यु के पास ही खड़े थे, अत: वह महाबाहु वीर उन पर बाणों की वर्षा करने लगा । उसने आपकी सेना को भयभीत करते हुए बड़े जोर से गर्जना की । राजन् ! अस्‍त्रवेता अभिमन्‍यु के चलाये हुए मर्मभेदी बाणों द्वारा घायल होकर राजा शल्‍य रथ कीबैठक मे धम्‍म से बैठ गये और मूर्छित हो गये । यशस्‍वी सुभद्राकुमार के द्वारा घायल किये हुए शल्‍य को इस प्रकार भय हुआ देख द्रोणाचार्य के देखते-देखते उनकी सारी सेना रणभूमि में भाग चली । महाबाहु शल्‍य के अभिमन्‍यु के सुवर्णमय पंख वाले बाणों से व्‍याप्‍त हुआ देख आपके सभी सैनिक सिंह के सताये हुए मृगों की भॉति जोर-जोर से भागने लगे । देवताओं, पितरों, चारणों, सिद्धों तथा यक्षसमूहों एवं भूतलवर्ती भूतसमदायों से प्रशंसित होकर युद्धविषयक सुयश से प्रकाशित होनेवाला अभिमन्‍यु घृतकी धारा से अभिषिक्त हुए अग्निदेव के समान अत्‍यन्‍त शोभा पाने लगा ।

इस प्रकार श्रीमहाभारतद्रोणपर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवध पर्व में पराक्रम विषयक सैतीसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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