महाभारत सभा पर्व अध्याय 8 श्लोक 33-41

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:35, 3 जनवरी 2016 का अवतरण (Text replacement - "पुरूष" to "पुरुष")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

अष्टम (8) अध्‍याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: अष्टम अध्याय: श्लोक 33-41 का हिन्दी अनुवाद

कुन्ती नन्दन ! वह सभा बाधारहित है । वह रमणीय तथा इच्छानुसार गमन करने वाली है । विश्वकर्मा ने दीर्घकाल तक तपस्या करके उस का निर्माण किया है। भारत ! वह सभा अपने तेज से प्रज्वलित तथा उद्भासित होती रहती है । कठोर तपस्या और उत्तम व्रत का पालन करने वाले, सत्यवादी, शान्त, संन्यासी तथा अपने पुण्यकर्म शुद्ध एवं पवित्र हुए पुरुष उस सभा में जाते हैं । उन सब के शरीर तेज से प्रकाशित होते रहते हैं । सभी निर्मल वस्त्र धारण करते हैं। सभी अद्भुत बाजूबंद, विचित्र हार और जगमगाते हुए कुण्डल धारण करते हैं । वे अपने पवित्र शुभ कर्मों तथा वस्त्राभूषणों से भी विभूषित होते हैं। कितने ही महामना गन्धर्व और झुंड-की- झुंड अप्सराएँ उस सभा में उपस्थित हो सब प्रकार के वाद्य, नृत्य, गीत, हास्य और लास्य की उत्तम कला का प्रदर्शन करती हैं। कुन्ती कुमार ! उस सभा में सदा सब ओर पवित्र गन्ध, मधुर शब्द और दिव्य मालाओें के सुखद स्पर्श प्राप्त होते रहते हैं। सुन्दर रूप धारण करने वाले एक करोड़ धर्मात्मा एवं मनस्वी पुरुष महात्मा यम की उपासना करते हैं। राजन् ! पितृराज महात्मा यम की सभा ऐसी ही है । अब मैं वरूण की मूर्तिमान् पुष्कर आदि तीर्थमालाओं से सुशोभित सभा का भी वर्णन करूँगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत लोकपाल सभाख्यानपर्व में यम-सभा-वर्णन नामक आठवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख