महाभारत शल्य पर्व अध्याय 20 श्लोक 1-27

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विंशो (20) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: विंशो अध्याय: श्लोक 1-27 का हिन्दी अनुवाद

धृष्‍टधुम्न द्वारा राजा शाल्व के हाथी का और सात्यकि द्वारा राजा शाल्व का वध

संजय कहते हैं- राजन् ! जब कौरवपक्ष का जनसमूह पुनः युद्ध के लिये लौअ आया, उस समय म्लेच्छों का राजा शाल्व अत्यन्त क्रुद्र हो मद की धारा बहानेवाले, पर्वत के समान विशालकाय, अभिमानी तथा ऐरावत के सदृश शत्रु समुदाय का संहार करने में सर्मथ एक महान गजराज पर आरूढ़ हो पाण्डवों की विशाल सेना का सामना करने के लिये आया।। उत्पन्न हुआ था । धृतराष्ट्र दुर्योधन ने नित्य ही उसका आद किया था, गजशास्त्र के ज्ञाता पुरुषों ने उसे अच्छी तरह सजाया था और सदा ही युद्ध के अवसरों पर वह सवारी के उपयोग में लाया जाता था । राजाओं में श्रेष्ठ शाल्व उस गजराज पर बैठकर प्रातःकाल उदयाचल पर स्थित हुए सूर्यदेव के समान सुशोभित होने लगा। महाराज ! वह उस श्रेष्ठ हाथ के द्वारा वहाँ एकत्र हुए समस्त पाण्डवों पर चढ़ गया और इन्द्र के वज्र की भाँति अत्यन्त भयंकर तीखे बाणों से उन सबको वेगपूर्वक विदीर्ण करने लगा । राजन् ! जैसे पर्वूकाल में ऐरावत पर बैठकर शत्रु-सेना का संहार करते हुए वज्रधारी इन्द्र के बाण छोड़ने और विपक्षी को मार गिराने के अन्तर को दैत्य और देवता नहीं देख पाते थे, उसी प्रकार उस महासमर में शाल्व के बाण छोड़ने तथा सैनिकों को यमलोक पहुँचाने में कितनी देर लगती है, इसे अपने या शत्रुपक्ष के योद्धा नहीं देख सके । इन्द्र के ऐरावत हाथी की भाँति म्लेच्छराज का वह गजराज यद्यपि रणभूमि में अकेला ही निकट विचर रहा था, तो भी पाण्डव, सृंजय और सोमक योद्धा उसे सहस्त्रों की संख्या में देखते थे। उन्हें सब ओर वही वह दिखायी देता था । उस हाथी के द्वारा खदेड़ी जाती हुई वह सेना सब ओर से घिरी हुई सी जान पड़ती थी। अत्यन्त भय के कारण वह समरभूमि में ठहर न सकी। उस समय सभी सैनिक आपस में ही धक्के खाकर कुचले जाने लगे । म्लेच्छराज शाल्व ने पाण्डवों की उस विशाल सेना में सहसा भगदड़ मचा दी। उस गजराज के वेग को सहन न कर सकने के कारण वह सेना तत्काल चारों दिशाओं में भाग चली ! उस वेगशालिनी सेना को भागती देख युद्धस्थल में खडे़ हुए आपके सभी प्रधान-प्रधान योद्धा म्लेच्छराज शाल्व की प्रशंसा करन और चन्द्रमा के समान उज्जवल शंख बजाने लगे । शंखध्वनि के साथ कौरव का वह हर्षनाद सुनकर पाण्डवों और सृंजयों के सेनापति पांचालराजकुमार धृष्‍टधुम्न क्रोधपूर्वक उसे सहन न कर सके । तदनन्तर उन महामनस्वी धृष्‍टधुम्न ने बड़ी उतावली के साथ विजय प्राप्त करने के लिये उस हाथी पर चढ़ाई की । जैसे इन्द्र के साथ युद्ध छिड़ने पर जम्भासुर ने इन्द्रवाहन नागराज ऐरावत पर धावा किया था । राजन् ! पांचालपुत्र धृष्‍टधुम्न को युद्ध में सहसा आक्रमण करते देख नृपश्रेष्ठ शाल्व ने उस हाथी को उनके वध के लिये तुरन्त ही उनकी ओर बढ़ाया । उस नागराज को सहसा आते देख धृष्‍टधुम्न ने अग्नि के समान प्रज्वलित, कारीगर के साफ किये हुए, तेजधारवाले, तीन भयंकर वेगशाली उत्तम नाराचों द्वारा घायल कर दिया।। तत्पश्चात् महामना धृष्‍टधुम्न ने उसके कुम्भस्थल को लक्ष्य करके पांच सौ उत्तम नाराच और छोड़े। उनके द्वारा अत्यन्त घायल हुआ वह महान् गजराज युद्ध से मुँह मोड़कर वेगपूर्वक भागने लगा । उस नाराच को सहसा पीड़ित होकर भागते देख शाल्वराज ने पुनः युद्ध की ओर लौटाया और पीड़ा देनेवाले अंकुशों से मारकर उसे तुरन्त ही पांचालराज के रथ की ओर दौड़ाया।। हाथी को सहसा आक्रमण करते देख वीर धृष्‍टधुम्न हाथ में गदा ले शीघ्र ही अत्यन्त वेगपूर्वक अपने रथ से कूदकर पृथ्वीपर आ गये। उस समय उनके सारे अंग भय से व्याकुल हो रहे थे । गर्जना करते हुए उस विशाल काय हाथी ने धृष्‍टधुम्न के उस सुवर्णभूषित रथ को घोड़ों और सारथि सहित सहसा कुचल डाला और सूँड़ से ऊपर उठाकर पृथ्वी पर दे मारा।। पांचाल राजकुमार धृष्टधुम्न को उस गजराज के द्वारा पीड़ित हुआ देख भीमसेन, शिखण्डी और सात्यकि सहसा बडे़ वेग से उसकी ओर दौडे़ । उस रथियों ने सब ओर आक्रमण करनेवाले उस हाथी के वेग को सहसा अपने बाणों द्वारा अवरुद्ध कर दिया। उनके द्वारा अपनी प्रगति रूक जाने के कारण वह निगृहीत-सा होकर विचलित हो उठा । तदनन्तर जैसे सूर्यदवे सब ओर अपनी किरणों का प्रसार करते हैं, उसी प्रकार राजा शाल्व ने बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। उन शीघ्रगामी बाणों की मार खाकर वे पाण्डव रथी एक साथ इधर-उधर भागने लगे । नरेश्वर ! शाल्व का वह पराक्रम देखकर समस्त नरश्रेष्ठ पांचाल तथा सृंजय अपने हाहाकारों से सम्पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्वनित करने लगे। उन्होंने युद्धभूमि में उस हाथी को चारों ओर से घेर लिया । भारत! इसी समय शत्रुघाती शूरवीर पांचालराज कुमार धृष्‍टधुम्न ने तुरन्त ही पर्वतशिखर के समान विशाल गदा हाथ में लेकर बडे़ वेग से उस हाथीपर आक्रमण किया । पांचाल राज के वेगवान् पुत्र ने मेघों के समान मद की वर्षा करनेवाले उस पर्वताकार गजराज पर अपनी गदा घुमाकर बडे़ वेग से प्रहार किया । गदा के आघात से हाथी का कुम्भस्थल फट गया और वह पर्वत के समान विशालकाय गजराज सहसा चीत्कार करके मुँह से रक्तवमन करता हुआ गिर पड़ा, मानों भूकम्प आने से कोई पहाड़ ढह गया हो । जब वह गजराज गिराया जाने लगा, उस सयम आपके पुत्र की सेना में हाहाकार मच गया। इतने ही में शिनिवंश के प्रमुख वीर सात्यकि ने एक तीखें भल्ल से शाल्वराज का सिर काट दिया । रणभूमि में सात्यकि द्वारा मस्तक कट जाने पर शाल्वराज भी उस गजराज के साथ ही धराशायी हो गया, मानो देवराज इन्द्र के चलाये हुए वज्र से कटकर कोई विशाल पर्वतशिखर पृथ्वी पर गिर पड़ा ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में शाल्व का वधविषयक बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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