महाभारत मौसल पर्व अध्याय 7 श्लोक 1-18

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:17, 1 अगस्त 2017 का अवतरण (Text replacement - " महान " to " महान् ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

सप्‍तम (7) अध्याय: मौसल पर्व

महाभारत: मौसल पर्व: सप्‍तम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
वासुदेव जी तथा मौसल युद्व में मरे हुए यादवों का अन्‍त्‍येष्टि संस्‍कार करके अर्जुन का द्वारका वासी स्‍त्री-पुरुषों को अपने साथ ले जाना, समुद्र का द्वारका को डूबो देना और मार्ग में अर्जुन पर डाकुओं का आक्रमण, अवशिष्‍ट यादवों को अपनी राजधानी में बसा देना

वैशम्‍पायनजी कहते हैं– परंतप ! अपने मामा वसुदेवजी के ऐसा कहने पर अर्जुन मन-ही मन बहुत दुखी हुए। उनका मुख मलिन हो गया। वे वासुदेव जी से इस प्रकार बोले- मामाजी ! वृष्णिवंश के प्रमुख वीर भगवान श्रीकृष्‍ण तथा अपने भाइयों से हीन हुई यह पृथ्‍वी मुझसे अब किसी तरह देखी नही जा सकेगी। राजा युधिष्‍ठर, भीमसेन, पाण्‍डव सहदेव, नकुल, द्रौपदी तथा मैं– ये छ: व्‍यक्ति एक ही हृदय रखते हैं। (इनमें से कोई भी अब यहां नहीं रहना चाहेगा)। राजा युधिष्ठिर के भी परलोक-गमनका समय निश्‍चय ही आ गया है । कालों में श्रेष्‍ठ मामाजी ! यह वही काल प्राप्‍त हुआ है । ऐसा समझें। शत्रुदमन ! अब मैं वृष्णिवंशकी स्त्रियों, बालकों और बूढों को अपने साथ ले जाकर इन्‍द्रप्रस्‍थ पहुँचाउँगा। मामा से यों कहकर अर्जुन ने दारूक से कहा- अब मैं वृष्णिवंशी वीरोंके मन्त्रियों से से शीघ्र मिलना चाहता हूं । ऐसा कहकर शुरवीर अर्जुन यादव महारथियों के लिये शोक करते हुए यादवों की सुधर्मा नामक सभा में प्रविष्‍ट हुए। वहां एक सिंहासन पर बैठे हुए अर्जुन के पास मन्‍त्री आदि समस्‍त प्रकृति वर्ग के लोग तथा वेदवेता ब्राह्माण आये और उन्‍हें सब ओर से घेरकर पास ही बैठ गये। उन सब के मन में दीनता छा गयी थी। सभी किं कर्तव्‍य विमुढ़ एवं अचेत हो रहे थे । अर्जुन की दशा तो उन से भी अधिक दयनीय थी । वे उन सभा सदों से समयोचित वचन बोले-मन्त्रियों ! मैं वृष्णि और अन्‍धक वंश में लोगों को अपने साथ इन्‍द्रप्रस्‍थ ले जाउंगा; क्‍योंकि समुद्र अब इस सारे नगर को डूबो देगा; अत: तुम लोग तरह-तरह के वाहन और रत्‍न लेकर तैयार हो जाओ । और इन्‍द्रप्रस्‍थ में चलने पर ये श्रीकृष्‍ण- पौत्र वज्र तुम लोगों के राजा बनाये जायंगें। आज के सातवें दिन निर्मल सूर्योदय होते ही हम सब लोग इस नगर से बाहर हो जायेंगे । इसलिये सब लोग शीघ्र तैयार हो जाओ, विलम्‍ब न करो। अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन के इस प्रकार आज्ञा देने पर समस्‍त मन्त्रियों ने अपनी अभीष्‍ट-सिद्वि के लिये अत्‍यन्‍त उत्‍सुक होकर शीघ्र ही तैयारी आरम्‍भ कर दी। अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्‍ण के महल में ही उस रात को निवास किया । वे वहां पहुंचते ही सहसा महान् शोक और मोह में डूब गये। सबेरा होते ही महातेजस्‍वी शूरनन्‍दन प्रतापी वसुदेवजी ने अपने चित्‍त को परमात्‍मा में लगाकर योग के द्वारा उत्‍तम गति प्राप्‍त की। फिर तो वसुदेवजी के महल में बडा भारी कोहराम मचा । रोती चिन्‍नाती हुई स्त्रियों का आर्तनाद बडा भयंकर प्रतीत होता था। उन सब के बाल खुले हुए थे। उन्‍होंने आभूषण और मालाएं तोड़कर फेंक दी थीं और वे सारी स्त्रियां अपने हाथों से छाती पीटती हुई करूणाजनक विलाप कर रही थी। युवतियों में श्रेष्‍ठ देव की, भद्रा, रोहिणी तथा मदिरा- ये सब-की-सब अपने पति के साथ चिता पर आरूढ़ होने को उद्यत हो गयीं।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख