महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 16 श्लोक 1-17

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षोडश (16) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

बृहस्पतिद्वारा अग्नि और इन्द्र का स्तवन तथा बृहस्पति एवं लोकपालों की इन्द्र से बातचीत

बृहस्पति बोले-अग्निदेव ! आप सम्पूर्ण देवताओं के मुख है । आप ही देवताओं को हविष्य पहुँचाने वाले है । आप समस्त प्राणी के अन्तःकरण में साक्षी की भाँति गूढभाव से विचरते है। विद्वान पुरूष आपको एक बताते है । फिर वे ही आप को तीन प्रकार का कहते है । हुताशन ! आपके त्याग देने पर यह सम्पूर्ण जगत् तत्काल नष्ट हो जायेगा। ब्राह्मण लोग आपकी पूजा और वन्दना करके अपनी पत्निीयो तथा पुत्रो के साथ अपने कर्मो द्वारा प्राप्त चिरस्थायी स्वर्गीय मुख लाभ करते है। अग्ने ! आप ही हविष्य को वहन करने वाले देवता है । आप ही उत्कृष्ट हवि है । याशिक विद्वान पुरूष बडे-बडे यज्ञो में अवान्तर सत्रो और यज्ञो द्वारा आप की अराधना करते है। हव्य वाहन ! आप ही सृष्टि के समय इन तीनो लोको को उत्पन्न करके प्रलयकाल आने पर पुनः प्रज्वलित हो इन सबका संहार करते है । अग्ने ! आप ही सम्पूर्ण विश्व के उत्पŸिास्थान है और आप ही पुनः इसके प्रलयकाल में अधार होते है। अग्निदेव ! मनीषी पुरूष आपको ही मेघ और विद्युत कहते है । आप से ही ज्वालाएँ निकलकर समपूर्ण भूतो को दग्ध करती है ॥६॥पावक ! आप मे ही सारा जल संचित है । आप में ही यह सम्पूर्ण जगत प्रतिष्ठत है । तीनों लोको में कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो आप को ज्ञात न हो। समस्त पदार्थ अपने-अपने कारण में प्रवेश करते है । अतः आप भी निःशंक होकर जल में प्रवेश कीजिये । मै सनातन वेदमन्त्रो द्वारा आपको बढ़ाऊँगा।इस प्रकार स्तुति की जाने पर हविष्य वहन करने वाले श्रेष्ठ एवं सर्वज्ञ भगवान अग्निदेव प्रसन्न होकर बृहस्पते से यह उत्‍तम वचन वोले-ब्रह्मन् ! मै आपको इन्द्र का दर्शन कराऊँगा, यह मै आप से सत्य कह रहा हूँ।

शल्य कहते है-युधिष्ठिर ! तरनन्तर अग्निदेव ने छोटे गडढे से लेकर बडे से बडे समुद्र तक के जल में प्रवेश करके पता लगाते हुए क्रमशः उस सरोवर में जा पहुँचे, जहाँ इन्द्र छिपे हुए थे। भरत श्रेष्ठ ! उसमे भी कमलों के भीतर खोज करते हुए अग्निदेव ने एक कमल के नाले में बैठे हुए देवेन्द्र को देखा । वहाँ से तुरन्त लौटकर अग्निदेव बृहस्पति को बताया कि भगवान इन्द्र सूक्ष्म शरीर धारण करके एक कमलनल का आश्रय लेकर रहते है। तब बृहस्पति जी ने देवर्षियों और गन्र्धवों के साथ वहाँ जाकर बलसूदन इन्द्र के पुरातन कर्मा का वर्णन करते हुए उनकी स्तुति की-। इन्द्र अपने अत्यन्त भयंकर मुचिनामक महान असुर को मार गिराया है । शम्बर और बल दोनों भयंकर पराक्रमी दानव थे;परंतु उन्‍हें भी आपने मार डाला। शतक्रतो ! आप अपने तेजस्वी स्वरूप से बढि़ये और समस्त शत्रुओं का संहार कीजिये । इन्द्रदेव ! उठिये और यहाँ पधारे हुए देवर्षियों का दर्शन कीजि। येप्रभो महेन्द्र ! आपने कितने ही दानवों का वध करके समस्त लोको की रक्षा की है । जगदीश्वर देवराज ! भगवान विष्णु के तेज से अत्यन्त शक्तिशाली बने हुए समुद्र फेन को लेकर आपने पूर्वकाल में वृत्रासुर का वध किया। आप सम्पूर्ण भूतो में स्तवन करने योग्य और सब के शरणदाता है । आपकी समानता करने वाला जगत में दूसरा कोई प्राणी नहीं है !शक्र ! आप ही सम्पूर्ण भूतो को धारण करते है और आपने ही देवताओं की महिता बढ़ायी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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