महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 31 श्लोक 1-17

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एकत्रिंश (31) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व: एकत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

कौरव पाण्‍डव सेनाओं का घमासान युद्ध तथा अश्रत्‍थामा के द्वारा राजा नील का वध

धृतराष्‍ट्र ने पूछा – संजय ! पाण्‍डुपुत्र अर्जुन के द्वारा पराजित हो जब सारी सेनाऍ भाग खड़ी हुई, उस समय विचलित हो पलरयन करते हुए तुम लोगों के मन की कैसी अवस्‍था हो रही थी ? भागती हुई सेनाओं को जब अपने ठहरने के लिये कोई स्‍थान नही दिखायी देता हो, उस समय उन सबको संगठित करके एक स्‍थान पर ले आना बड़ा कठिन काम होता है । अत: संजय ! तुम मुझे वह सब समाचार ठीक-ठीक बताओं।

संजय ने कहा – प्रजानाथ ! य‍दपि सेनाओंमे भगदड़ पड़ गयी थी, तथापि बहुत से विश्‍वविख्‍यात वीरों ने आपकेपुत्र का प्रिय करने की इच्‍छा रखकर अपने यश की रक्षा करते हुए उस समय द्रोणाचार्य का साथ दिया। प्रभो ! वह भयंकर संग्राम छिड़ जानेपर समस्‍त योद्धा निर्भय से होकर आर्यजनोचित पुरूषार्थ प्रकट करने लगे । जब सब ओर से हथियार उठे हुए थे और राजा युधिष्ठिर सामने आ पहॅुचे थे, उस दशा मे भी सेन, सात्‍यकि अथवा वीर धृष्‍टधुम्न की असावधानी का लाभ उठाकर अमित तेजस्‍वी कौरव योद्धा पाण्‍डव सेना पर टूट पड़े। क्रूर स्‍वभाववाले पांचाल सैनिक एक-दूसरे को प्रेरित करने लगे, अरे ! द्रोणाचार्य को पकड़ लो, द्रोणाचार्य को बंदी बना लो और आपके पुत्र समस्‍त कौरवों को आदेश दे रहे थे कि देखना, द्रोणाचार्य को शत्रु पकड़ न पावें। एक ओर से आवाज आती थी द्रोण को पकड़ो, द्रोण को पकडो । दूसरी ओर से उत्‍तर मिलता, द्रोणाचार्य को कोई नही पकड़ सकता । इस प्रकार द्रोणाचार्य को दॉव पर रखकर कौरव और पाण्‍डवों मे युद्ध का जूआ आरम्‍भ हो गया था। पांचालो के जिस-जिस रथ समुदाय को द्रोणाचार्य मथ डालने का प्रयत्‍न करते, वहां-वहां पांचाल राजकुमार धृष्‍टधुम्न उनका सामना करने के लिये आ जाता था। इस प्रकार भागविपर्यय द्वारा भयंकर संग्राम आरम्‍भ होने पर भैरव-गर्जना करते हुए उभय पक्ष के वीरों ने विपक्षी वीरों पर आक्रमण किया। उस समय पाण्‍डवों को शत्रु दल के लोग विचलित न कर सके । वे अपने को दिये गये क्‍लेशों को याद करके आपके सैनिकों को कॅपा रहे थे। पाण्‍डव लज्‍जाशील,सत्‍वगुण से प्रेरित और अमर्ष के अधीन हो रहे थे । वे प्राणों की परवा न करके उस महान् समर में द्रोणाचार्य का वध करने के लिये लौट रहे थे। उस भंयकर युद्धमे प्राणों की बाजी लगाकर खेलनेवाले अमित तेजस्‍वी वीरोंका संघर्ष लोहों तथा पत्‍थरों के परस्‍पर टकराने के समान भयंकर शब्‍द करता था। महाराज ! बड़े-बूढ़े लोग भी पहले के देखे अथवा सुने हुए किसी भी वैसे संग्राम का स्‍मरण नही करते हैं। वीरों का विनाश करनेवाले उस युद्धमें लौटते हुए विशाल सैनिकसमूह के महान् भार से पीडित हो यह पृथ्‍वी कॉपने सी लगी। वहां सब और चक्‍कर काटते हुए सैन्‍यसमूह का अत्‍यन्‍त भयंकर कोलाहल आकाश को स्‍तब्‍ध सा करके अजातशत्रु युधिष्ठिर की सेना में व्‍याप्‍त हो गया। रणभूमिमे विचरते हुए द्रोणाचार्य ने पाण्‍डव सेना में प्रवेश करके अपने तीखेबाणों द्वारा सहस्‍त्रों सैनिकों के पॉव उखाड़ दिये। अद्रुत पराक्रम करनेवाले द्रोणाचार्य के द्वारा जब उन सेनाओं का मन्‍थन होने लगा, उस समय स्‍वयं सेनापति धृष्‍टधुम्न ने द्रोण के पास पहॅुचकर उन्‍हें रोका।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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