महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 33 श्लोक 17-28

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
दिनेश (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:43, 25 अगस्त 2015 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

त्रयस्त्रिश (33) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयस्त्रिश अध्याय: श्लोक 17-28 का हिन्दी अनुवाद

वहॉ अर्जुन का शत्रुओं के साथ ऐसा घोर संग्राम हुआ, जैसा दूसरा कोई कही न तो देखा गया है और न सुना ही गया है । राजन् ! उस समय वहॉ द्रोणाचार्य ने जिस व्‍यूह का निर्माण किया, वह मध्‍याह्रकाल में विचरते हुए सूर्य की भॉति शत्रुओं को संताप देता सा सुशोभित हो रहा था । उसे जीतना तो दूर रहा, उसकी ओर ऑख उठाकर देखना भी अत्‍यन्‍त कठिन था । भारत ! यदपि उस चक्रव्‍यूह का भेदन करना अत्‍यन्‍त दुष्‍कर कार्य था तो भी वीर अभिमन्‍यु ने अपने ताऊ युधिष्ठिर की आज्ञा से उस व्‍यूह का बारंबार भेदन किया । अभिमन्‍यु ने वह दुष्‍कर कर्म करके सहस्‍त्रों वीरों का वध किया और अन्‍त में छ: वीरों के साथ अकेला ही उलझकर दु:शासन पुत्र के हाथ से मारा गया । भूपाल ! शत्रुओं को संताप देनेवाले सुभद्राकुमार ने जब प्राण त्‍याग दिये, उस समय हमलोगों को बड़ा हर्ष हुआ और पाण्‍डव शोक से व्‍याकुल हो गये । राजन् ! सुभद्राकुमार के मारे जानेपर हम लोगों ने युद्ध बंद कर दिया । धृतराष्‍ट्र बोले – संजय ! पुरूषसिंह अर्जुन का वह पुत्र अभी युवावस्‍था में भी नही पहॅुचा था । उसे युद्ध में मारा गया सुनकर मेरा ह्रदय अत्‍यन्‍त विदीर्ण हो रहा है। धर्मशास्‍त्र के निर्माताओं ने यह क्षत्रिय धर्म अत्‍यन्‍त कठोर बनाया है, जिसमें स्थित होकर राज्‍य के सभी लोभी शूरवीरों ने एक बालक पर अस्‍त्र-शस्‍त्रों का प्रहार किया । संजय ! यह अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न रहनेवाला बालक जब निर्भय सा होकर युद्ध में विचर रहा था; उस समय अस्‍त्रविधा के पांरगत बहुसंख्‍यक शूरवीरों ने उसका वध कैसे किया ? यह मुझे बताओ । संजय ! अमित तेजस्‍वी सुभद्राकुमार ने युद्ध के मैदान में रथियों की सेना को विदीर्ण करनेकी इच्‍छा से जिस प्रकार युद्ध का खेल किया था, वह सब मुझे बताओं ।

संजय ने कहा – राजेन्‍द्र ! आप जो मुझसे सुभद्राकुमार के मारे जाने का वृतान्‍त पूछ रहे हैं, वह सब मैं आपको पूर्णरूप से बताऊँगा । राजन् ! आप एकाग्रचित होकर सुने । आपकी सेना के व्‍यूह का भेदन करने की इच्‍छा से कुमार अभिमन्‍यु जिस प्रकार रणक्रीड़ा की थी और उस प्रलयंकर संग्राम में जैसे-जैसे दुर्जय वीरों के भी पॉव उखाड़ दिये थे, वह सब बता रहा हॅू । जैसे प्रचुर लता-गुल्‍म, घास-पात और वृक्षों से भरे हुए वन मे दावानल से घिरे हुए वनवासियों को महान् भय का सामना करना पड़ता है, उसी प्रकार अभिमन्‍यु से आपके सैनिकों को अत्‍यन्‍त भय प्राप्‍त हुआ था ।

इस प्रकार श्रीमहाभारतद्रोणपर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवध पर्व में अभिमन्‍यु वध का संक्षेप से वर्णनविषयक तैतीसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ ।


'

« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख