महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 61 श्लोक 1-12

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:05, 21 अगस्त 2015 का अवतरण ('==एकषष्टितम (61) अध्याय: द्रोण पर्व ( अभिमन्‍युपर्व )== <div st...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

एकषष्टितम (61) अध्याय: द्रोण पर्व ( अभिमन्‍युपर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व:एकषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

राजा दिलीप का उत्‍कर्ष नारदजी कहते हैं – सृंजय ! इलविला के पुत्र राजा दिलीप की भी मृत्‍यु सुनी गयी है, जिनके सौ यज्ञों में लाखों ब्राह्मण नियुक्‍त थे । वे सभी ब्राह्मण वेदों के कर्मकाण्‍ड और ज्ञानकाण्‍ड के तात्‍पर्य को जानने वाले, यज्ञकर्ता तथा पुत्र-पौत्रों से सम्‍पन्‍न थे । पृथ्‍वीपति दिलीप ने यज्ञ करते समय अपने विशाल यज्ञ में धन-धान्‍य से सम्‍पन्‍न इस सारी पृथ्‍वी को ब्राह्मणो के लिये दान कर दिया था । राजा दिलीप के यज्ञों में सोने की सडकें बनायी गयी थीं । इन्‍द्र आदि देवता मानो धर्म की प्राप्ति के लिये उन्‍हें अलंकृत करते हुए उनके यहां पधारते थे । वहां पर्वतों के समान विशालकाय सहस्‍त्रों गजराज विचरा करते थे । राजा का सभामण्‍डप सोने का बना हुआ था, जो सदा देदीप्‍यमान रहता था । वहां रस की नहरें बहती थीं और अन्‍न के पहाडों जैसे ढेर लगे हुए थे । राजन्‍ ! उनके यज्ञ में सहस्‍त्र व्‍याम-विस्‍तृत सुवर्णमय यूप सुशोभित होते थे । उनके यूप में सुवर्णमय चषाल और प्रचषाल लगे हुए थे। उनके यहां तेरह हजार अप्‍सराएं नृत्‍य करती थीं ।उस समय वहां साक्षात्‍ गन्‍धर्वराज विश्‍वावसु प्रेमपूर्वक वीणा बजाते थे । समस्‍त प्राणी राजा दिलीप को सत्‍यवादी मानते थे । उनके यहां आये हुए अतिथि ‘रागखाण्‍डव’ नामक मोदक और विविध भोज्‍य पदार्थ खाकर मतवाले हो सडकों पर लेट जाते थे । मेरे मत में उनके यहां यह एक अद्भुत बात थी, जिसकी दूसरे राजाओं से तुलना नहीं हो सकती थी । राजा दिलीप युद्ध करते समय जल में भी चले जाते तो उनके रथ के पहिये यहां डूबते नहीं थे । सुदृढ धनुष धारण करने वाले तथा प्रचुर दक्षिणा देने वाले सत्‍यवादी राजा दिलीप का जो लोग दर्शन कर लेते थे, वे मनुष्‍य भी स्‍वर्गलोक के अधिकारी हो जाते थे । खट्वांग (दिलीप) के भवन में ये पांच प्रकार के शब्‍द कभी बंद नहीं होते थे वेद-शास्‍त्रों के स्‍वाध्‍याय का शब्‍द, धनुष की प्रत्‍यंचा की ध्‍वनि तथा अतिथियों के लिये कहे जाने वाले ‘खाओ, पीओ और अन्‍न ग्रहण करो’ ये तीन शब्‍द। श्‍वैत्‍य सृंजय ! वे दिलीप धर्म, ज्ञान, वैराग्‍य और ऐश्‍वर्य – इन चारों कल्‍याणकारी गुणों में तुमसे बहुत बढे-चढे थे, तुम्‍हारे पुत्र से भी अधिक पुण्‍यात्‍मा थे । जब वे भी मर गये, तब औरों की क्‍या बात है ? अत: जिसने अभी यज्ञ नहीं किया, दक्षिणाएं नहीं बांटीं, अपने उस पुत्र के लिये तुम शोक न करो – इस प्रकार नारदजी ने कहा ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के द्रोण पर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवध पर्व में षोडशराजकीयोपाख्‍यान विषयक इकसठवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख