महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 90 श्लोक 14-34

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नवतितम (90) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व:नवतितम अध्याय: श्लोक 14-34 का हिन्दी अनुवाद


कुछ दूसरे गजराज नीचे के ओठों में , कुम्भस्थलों में ओर कनपअियों में बाणों से छिद जाने के कारण कुरर पक्षी के समान बारंबार आर्तनाद कर रहे थे।किरीट धारी अर्जुन झुकी हुई गांठ वाले भल्ल नामक बाणो द्वारा हाथी की पीठ पर बैठे हुए पुरूषों के मस्तक भी धड़ाधड़ काटते जा रह थे। पृथ्वी पर गिरते हुए कुण्डलयुक्त मस्तक कमल पुष्‍पो के ढेर के समान जान पड़ते थे, मानो अर्जुन ने उन मस्तकों के रूप् में पृथ्वी को पद्य के समूह भेंट किये हो। युद्ध के मैदान में चक्कर काटतें हुए हाथियों पर बहुत-से मनुष्य इस प्रकार लटक रहे थें, मानो उन्हें किसी यन्त्र से वहां जड़ दिया हो । उनके कवच नष्‍ट हो गये थे। वे घाव से पीडि़त और खून से लथपथ हो रहे थे। कुछ हाथी तो अच्छी तरह से चलाये हुए सुन्दर पंख-युक्त एक ही बाण द्वारा दो-दो तीन-तीन की संख्या में एक साथ विदीर्ण होकर पृथ्वी गिर पड़ते थे।। सवारों सहित कितने ही हाथी नाराचों से अतयन्त घायल होकर मुंह से रक्त वमन करते हुए वृक्षयुक्त पर्वतो के समान धराशायी हो रहे थे।तदनन्तर अर्जुन ने झुकी हुई गांठ वाले भल्लों द्वारा रथियों की प्रत्यांषा,ध्वजा,धनुष,जुआ तथा ईशादण्ड के टुकडे़-टुकडे़ कर डाले।उस समय अर्जुन मण्डलालार धनुष साथ सब ओर नृत्य करते हुए -से दृष्टिगोचर हो रहे थे। वे कब धनुष पर बाणो को रखते, कब प्रत्याक्ंशा खींचते, कब बाण छोड़ते और कब उन्हें तरकसर से निकालते है, यह कोई नहीं देख पाता था ।दो ही घड़ी में और भी बहुत-से हाथी नाराचों मार- से अत्यन्त क्षत-विक्षत होकर मुंह से रक्त वमन करते हुए धरती पर लोटने लगे। महाराज।उस अत्यन्त भयानक युद्ध में चारों ओर असंख्य कबन्ध उठे दिखायी देते थे । वीरों की कटी हुई स्वर्णमय आभूषणो से विभूशित भुजाएं धनुष,दस्ताने तलवार और भुजबन्दो सहित कटकर रण भूमि पड़ी दिखायी देती थी। सुन्दर उपकरणों बैठकों,ईशादण्उ,बन्धनरज्जुओं और पहियों सहित रथ चूर-चूर हो रहे थे। उनके धुरे टूट गये थे और जूए टुकडे-टुकडे होकर पडे़ थे। बहुत-सी ढालों और धनुषो को लिये-दिये वे टूटे हुए रथ इधर-उधर बिखरे पड़े थे। बहुत-से हार, आभूषण, वस्त्र और बडे़-बडे़ ध्वज धरती पर गिरे हुए थे। अनेक हाथी और घोडे़ मारे गये थे तथा बहुत-से क्षत्रिय भी धराशायी कर दिये गये थे। इन सबके कारण वहां की भूमि देखने में अत्यन्त भयंकर जान पड़ती थी। महाराजं इस प्रकार किरीटधारी अर्जुन की मार खाकर अत्यन्त व्यथित हुई दुःशासन की सेना अपने नायक-सहित भाग चली।तब अर्जुन के बाणों से अत्यन्त पीडि़त और भयभीत हो सेनाओं सहित दुःशासन अपने रक्षक द्रोणाचार्य के आश्रय में जाने की इच्छा रखकर शकट-व्यूह के भीतर घुस गया।  



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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