महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 3 श्लोक 1-18
तृतीय (3) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
भीष्मजी के प्रति कर्ण का कथन
संजय कहते है- महाराज ! अमित तेजस्वी महात्मा भीष्म बाण-शया पर सो रहे थे । उस समय वे प्रलयकालीन महा वायु समूह से सोख लिये गये समुद्र के समान जान पड़ते थे । समस्त क्षत्रियों का अन्त करने में समर्थ गुरू एवं पितामह महाधनुर्धर भीष्म को सव्यसाची अर्जुन ने अपने दिव्यास्त्रों के द्वारा मार गिराया था । उन्हें उस अवस्था में देखकर आपके पुत्रों की विजय की आशा भंग हो गयी । उन्हें अपने कल्याण की भी आशा नहीं रही । उनके रक्षाकवच भी छिन्न-भिन्न हो गये । कही पार न पानेवाले तथा अथाह समुद्र में थाह चाहने वाले कौरवों के लिये भीष्मजी दीप के समान आश्रय थे, जो पार्थ द्वारा धराशायी कर दिये गये थे । वे यमुनाके जलप्रवाह के समान बाणसमूह से व्याप्त हो रहे थे । उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था, मानो महेन्द्र ने असह्रा मैनाक पर्वत को धरती पर गिरा दिया हो । वे आकाश से च्युत होकर पृथ्वीपर पड़े हुए सूर्य के समान तथा पूर्वकाल मे वृत्रासुर से पराजित हुए अचिन्त्य देवराज इन्द्र के सदृश प्रतीत होते थे । उस युद्धस्थल में भीष्म का गिराया जाना समस्त सैनिकों को मोह में डालने वाला था । आपके ज्येष्ठ पिता महान व्रतधारी भीष्म समस्त सैनिकों में श्रेष्ठ तथा सम्पूर्ण धनुर्धरों के शिरोमणि थे । वे अर्जुन के बाणोंसे व्याप्त होकर वीरशययापर सो रहे थे । उन भारतवंशी वीर पुरुषप्रवर भीष्मको उस अवस्था में देखकर अधिरथपुत्र महातेजस्वी कर्ण अत्यन्त आर्त होकर रथसे उतर पड़ा और अजलि बॉध अभिवादनपूर्वक प्रणाम करके ऑसूसे गद्रद वाणीमें इस प्रकार बोला । भारत ! आपका कल्याण हो । मैं कर्ण हूं । आप अपनी पवित्रएवं मगंलमयी वाणी द्वारा मुझसे कुछ कहिये और कल्याणमयी दृष्टि द्वारा मेरे ओर देखिये । निश्चयही इस लोकमें कोई भी अपने पुण्यकर्मोका फल यहॉ नहीं भोगता है; क्योंकि आप वृद्धावस्थातक सदा धर्ममें ही तत्पर रहे हैं, तो भी यहॉ इस दशामें धरतीपर सो रहे हैं । कुरूश्रेष्ठ ! कोश-संग्रह मन्त्रणा, व्यूह रचना तथा अस्त्र-शस्त्रों के प्रहार में आपके समान कौरव वंश मे दूसरा कोई मुझे नहीं दिखायी देता, जो अपनी विशुद्ध बुद्धि से युक्त हो समस्त कौरवों को भयसे उबार सके तथा यहॉ बहुत से योद्धाओं का वध करके अन्तमें पितृलोक को प्राप्त हो । भरतश्रेष्ठ ! आजसे कोध्र में भरे हुए पाण्डव उसी प्रकार कौरवों का विनाश करेंगे, जैसे व्याघ्र हिरनों का । आज गाण्डीवकी टंकार करने वाले सव्यसाची अर्जुनके पराक्रमको जानने वाले कौरव उनसे उसी प्रकार डरेंगे, जैसे वज्रधारी इन्द्र से असुर भयभीत होते हैं । आज गाण्डीव धनुषसे छुटे हुए बाणोंका वज्रपात के समान शब्द कौरवों तथा अन्य राजाओं को भयभीत कर देगा । वीर ! जैसे बडी-बडी लपटोसे युक्त प्रज्वलित हुई आग वृक्षोंको जलाकर भस्म कर देती है, उसी प्रकार अर्जुन के बाण धृतराष्ट्रके पुत्रों तथा उनके सैनिकों को जला डालेंगे । वायु और अग्निदेव – ये दोनो एक साथ वन मे जिस-जिस मार्गसे फैलते हैं, उसी-उसी के द्वारा बहुत से तृण, वृक्ष और लताओंको भस्म करते जाते है । पुरुषसिंह ! जैसी प्रज्वलित अग्नि होती है, वैसे ही कुन्तीकुमार अर्जुन है – इसमे संशय नहीं है और जैसी वायु होती है, वैसेही श्रीकृष्ण हैं, इसमे भी संशय नहीं है ।
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