महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 6 श्लोक 1-13
षष्ठ (6) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
दुर्योधन का द्रोणाचार्य से सेनापति होने के लिये प्रार्थना करना
संजय कहते हैं – राजन ! कर्ण का यह कथन सुनकर उस समय राजा दुर्योधन ने सेना के मध्य भाग में स्थित हुए आचार्य द्रोण से इस प्रकार कहा । दुर्योधन बोला- द्विजश्रेष्ठ ! आप उत्तम वर्ण, श्रेष्ठ कुलमें जन्म, शास्त्रज्ञान अवस्था, बुद्धि, पराक्रम, युद्धकौशल, अजेयता, अर्थज्ञान, नीति, विजय, तपस्या तथा कृतज्ञता आदि समस्त गुणों के द्वारा सबसे बढ़े-चढ़े हैं । आपके समान योग्य संरक्षक इन राजाओं में भी दूसरा नहीं हैं । अत: जैसे इन्द्र सम्पूर्ण देवताओं की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप हमलोगों की रक्षा करे । हम आपके नेतृत्व में रहकर शत्रुओं पर विजय पाना चाहते है । रूद्रों में शंकर, वसुओं में पावक, यक्षों मे कुबेर, देवताओं में इन्द्र, ब्राह्माणों में वसिष्ठ, तेजोमय प्रदार्थो में भगवान सूर्य, पितरों में धर्मराज, जलचरों मे वरूणदेव, नक्षत्रोंमें चन्द्रमा और दैत्यों मे शुक्राचार्य के समान आप समस्त सेनानायकों में श्रेष्ठ है; अत: हमारे सेनापति होइये । अनघ ! मेरी ग्यारह अक्षौहिणी सेनाऍ आपके अधीन रहें । उन सबके द्वारा शत्रुओं के मुकाबले में व्यूह बनाकर आप मेरे विरोधियों का उसी प्रकार नाश कीजिये, जैसे इन्द्र दैत्यों का नाश करते हैं । जैसे कार्तिकेय देवताओं के आगे चलते हैं, उसी प्रकार आप हमलोगों के आगे चलिये । जैसे बछड़े सॉड़ के पीछे चलते है, उसी प्रकार युद्ध में हम सब लोग आप के पीछे चलेंगे । आपको अग्रगामी सेनापति के रूप में देखकर भयंकर धनुष धारण करने वाले महाधनुर्धर अर्जुन अपने दिव्य धनुष की टंकार फैलाते हुए भी प्रहार नहीं करेंगे ।पुरुषसिंह ! यदि आप मेरे सेनापति हो जायॅ तो मैं युद्ध में निश्चय ही भाइंयो तथा सगे सम्बन्धियों सहित युधिष्ठिर को जीत लॅूगा । संजय कहते हैं - राजन ! दुर्योधन के ऐसा कहनेपर सब राजा अपने महान सिंहनाद से आपके पुत्र का हर्ष बढ़ाते हुए द्रोण से बोले – आचार्य ! आपकी जय हो । दूसरे सैनिक भी प्रसन्न होकर दुर्योधन को आगे करके महान यशकी अभिलाषा रखते हुए द्रोणाचार्य की प्रशंसा करके उनका उत्साह बढ़ाने लगे । राजन ! उस समय द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से कहा ।
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