महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 49 श्लोक 1-13

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:49, 30 जून 2017 का अवतरण (Text replacement - " जगत " to " जगत् ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

एकोनपंचाशत्तम (49) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: एकोनपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


धर्म का निर्णय जानने के लिये ऋषियों का प्रश्न

ऋषियों ने पूछा- ब्रह्मन्! इस जगत् में समस्त धर्मों में कौन सा अनुष्ठान करने के लिये सर्वोत्तम माना गया है, यह कहिये, क्योंकि हमें धर्म के विभिन्न मार्ग एक दूसरे से आहत हुए से प्रतीत होते हैं। कोई तो कहते हैं कि देह का नाश होने के बाद धर्म का फल मिलेगा। दूसरे कहते हैं कि ऐसी बात नहीं है। कितने ही लोग सब धर्मों को संशययुक्त बताते हैं और दूसरे संशय रहित कहते हैं। कोई कहते हैं कि धर्म अनित्य है और कोई उसे नित्य कहते हैं। दूसरे कहते हैकि धर्म नाम की कोई वस्तु ही नहीं। कोई कहते हैकि अवश्य है। कोई कहते है कि एक ही धर्म दो प्रकार का है तथा कुछ लोग कहते हैं कि धर्म मिश्रित है। वेद शास्त्रों के ज्ञाता तत्त्वदर्शी ब्राह्मण लोग यह मानते है कि एक ब्रह्म ही है। अन्य कितने ही कहते हैकि जीव और ईश्वर अलग-अलग हैं और दूसरे लोग सबकी सत्ता भिन्न और बहुत प्रकार से मानते हैं। कितने ही लोग देश और काल की सत्ता मानते हैं। दूसरे लोग कहते है कि इनकी सत्ता नहीं है। कोई जटा और मृगचर्म धारण करने वाले हैं, कोई सिर मुँडाते हैं और कोई दिगम्बर रहते हैं। कितने ही मनुष्य स्नान नहीं करना चाहते और दूसरे लोग जो शास्त्रज्ञ तत्त्वदर्शी ब्राह्मण देवता हैं, वे स्नान को ही श्रेष्ठ मानते हैं। कई लोग भोजन करना अच्छा मानते हैं और कई भोजन न करने में अभिरत रहते हैं। कई कर्म करने की प्रशंसा करते हैं और दूसरे लोग परम शान्ति की प्रशंसा करते हैं। कितने ही मोक्ष की प्रशंसा करते हैं और कितने ही नाना प्रकार के भोगों की प्रशंसा करते हैं। कुछ लोग बहुत सा धन चाहते हैं और दूसरे निर्धनता को पसंद करते हैं। कितने ही मनुष्य अपने उपास्य इष्टदेव की प्राप्ति की साधन करते हैं और दूसरे कितने ही ऐसा कहते हैं कि ‘यह नहीं हैं’। अन्य कई लोग अहिंसा धर्म का पालन करने में रुचि रखते हैं और कई लोग हिंसा के परायण हैं। दूसरे कई पुण्य और यश से सम्पन्न हैं। इनसे भिन्न दूसरे कहते हैं कि ‘यह सब कुछ नहीं है’। अन्य कितने ही सद्भाव में रुचि रखते हैं। कितने ही लोग संशय में पड़े रहते हैं। कितने ही साधक कष्ट सहन करते हुए ध्यान करते हैं और दूसरे कई सुख पूर्वक ध्यान करते हैं। अन्य ब्राह्मण यज्ञ को श्रेष्ठ बताते हैं और दूसरे दान की प्रशंसा करते हैं। अन्य कई तप की प्रशंसा करते हैं तथा दूसरे स्वाध्याय की प्रशंसा करते हैं कई लोग कहते हैं कि ज्ञान ही संन्यास है। भौतिक विचार वाले मनुष्य स्वभा की प्रशंसा करते हैं। कितने ही सभी की प्रशंसा करते हैं और दूसरे सबकी प्रशंसा नहीं करते। सुरश्रेष्ठ ब्रह्मन! इस प्रकार धम्र की व्यवस्था अनेक ढंग से परस्पर विरुद्ध बतलायी जाने के कारण हम लोग धम्र के विषय में मोहित हो रहे हैं, अत: किसी निश्चय पर नहीं पहुँच पाते।







« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख