महाभारत शल्य पर्व अध्याय 19 श्लोक 21-40
एकोनविंश (19) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
जैसे इन्द्र ने असुरों की सेना का संहार किया था, उसी प्रकार युद्ध में भीमसेन के हाथ से दुर्योधन के मारे जाने पर आज धृतराष्ट्र को यह ज्ञात हो जायगा कि महामनस्वी भीम का बल कैसा भयंकर है ! दुःशासन के वध के समय भीमसेन ने जो कुछ किया था, उसे महाबली भीमसेन के सिवा इस संसार में कोई नहीं कर सकता । देवताओं के लिये भी दुःसह मद्रराज शल्य के वध का वृत्तान्त सुनकर आज धृतराष्ट्र ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर के पराक्रम को भी अच्छी तरह जान लें । आज संग्राम में सुबल पुत्र वीर शकुनि तथा दूसरे समस्त प्रमुख वीरेां के मारे जाने पर उन्हें शत्रु के लिये अत्यन्त दुःसह माद्रीकुमार नकुल-सहदेव की शक्ति का भी ज्ञान हो जायगा।। जिनकी ओर से युद्ध करने वाले धनंजय, सात्यकि, भीमसेन, द्रुपदकुमार धृष्टधुम्न, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, माद्रीकुमार पाण्डुनन्दन नकुल-सहदेव, महाधनुर्धर शिखण्डी तथा स्वयं राजा युधिष्ठिर जैसे वीर हैं, उनकी विजय कैसे न हो ? । सम्पूर्ण जगत् के स्वामी जनार्दन श्रीकृष्ण जिनके रक्षक हैं और जिन्हें धर्म का आश्रय प्राप्त है, उनकी विजय क्यों न हो ? ।। कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर के सिवा दूसरा कौन ऐसा राजा है जो रणभूमि में भीष्म-द्रोण, कर्ण मद्रराज शल्य तथा अन्य सैकड़ों-हजारों नरपतियों पर विजय प्राप्त कर सके। सदा सत्य और यश के सागर भगवान श्रीकृष्ण जिनके स्वामी एवं रक्षक हैं, उन्हीं को वह सफलता प्राप्त हो सकती है । इस तरह की बाते करते हुए संृजयवीर अत्यन्त हर्ष में भरकर आपके भागते हुए योद्धाओं का पीछा करने लगे। इसी समय पराक्रमी अर्जुन ने आपकी रथसेना पर धावा कियपा। साथ ही नकुल-सहदेव और महारथी सात्यकि ने शकुनि पर चढ़ाई की। भीमसेन के भय से पीड़ित हुए अपने उन समस्त योद्धाओं को भागते देख दुर्योधन ने विजय की इच्छा से अपने सारथि से कहा- । सूत ! मैं यहाँ हाथ से धनुष लिये खड़ा हूँ और अर्जुन मुझे लाँघ जाने की चेष्टा कर रहे हैं। अतः तुम मेरे घोड़ों को सारी सेना के पिछले भाग में पहुँचा दो । पृष्ठभाग में रहकर युद्ध करते समय मुझे अर्जुन किसी ओर से भी लाँघने का साहस नहीं कर सकते। ठीक वैसे ही, जैसे महासागर अपने तटप्रान्त नहीं लाँघ पाता । सारथे ! देखों, पाण्डव मेरी विशाल सेना को खदेड़ रहे हैं और सैनिकों के दौड़ने से उठी हुई धूल जो सब ओर छा गयी है उस पर भी दृष्टिपात करो । सूत ! वह सुनो, बारंबार भय उत्पन्न करनेवाले घोर सिंहनाद हो रहे हैं। इसलिये तुम धीरे-धीरे चलो और सेना के पृष्ठ-भाग की रक्षा करो । जब मैं समरांगण में खड़ा होऊँगा और पाण्डव का बढ़ाव रूक जायगा, तब मेरी सेना पुनः शीघ्र ही लौट आयेगी और सारी शक्ति लगाकर युद्ध करेगी । राजन् ! आपके पुत्र का यह श्रेष्ठ वीरोचित वचन सुनकर सारथि ने सोने के साज-बाज से सजे हुए घोड़ों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया । उस समय वहाँ हाथीसवार, घुड़सवार तथा रथियों से रहित इक्कीस हजार केवल पैदल योद्धा अपने जीवन का मोह छोड़कर युद्ध के लिये डट गये । वे अनेक देशों में उत्पन्न और अनेक नगरों के निवासी वीर सैनिक महान् यश की अभिलाषा रखते हुए वहाँ युद्ध करने के लिये खडे़ हुए थे ।
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