महाभारत स्‍त्री पर्व अध्याय 24 श्लोक 1-18

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चतुर्विंष (24) अध्याय: स्‍त्रीपर्व (जलप्रदानिक पर्व )

महाभारत: स्‍त्रीपर्व: चतुर्विंष अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

गान्धारी बोलीं- माधव। देखो सात्यकिने जिन्हे मार गिराया था, वे ही ये सोमदत्त के पुत्र भूरीश्रवा पास ही दिखाई दे रहे हैं। इन्हें बहुत से पक्षी चोंच मार-मार कर नोंच रहे हैं। जनार्दन। उधर पुत्र शोक से संतप्त मरे हुए सोमदत्त महान् धनुर्धर सात्यकि की निन्दा करते हुए से दिखाई दे रहे हैं। उधर वे शोक में डूबी हुई भूरिश्रवा की सती साध्वी माता अपने पति को मानो आष्वासन देती हुई कहती है। महाराज। सौभाग्य से आपको यह भरतवंषियों का दारूण विनास, घोर प्रलय के समान कुरू कुल का महान् संहार देखने का अवसर नहीं मिला है। जिसकी ध्वजा में यूप का चिन्ह था जो सहस्त्रो स्वर्ण मुद्राओं की भूरि-भूरि दक्षणा दिया करता था और जिसके अनेक यज्ञों का अनुष्ठान पूरा कर लिया था, उस वीर पुत्र भूरिश्रवा की मृत्यु का कष्ट सौभाग्य से आप नहीं देख रहे हैं।महाराज। समुद्र तट पर चीत्कार करने वाली सारसियों के समान इस युद्धस्थल में आप इन अपने पुत्रबधुआंे का अत्यन्त भयानक विलाप नहीं सुन रहे हैं, यह भाग्य की ही बात है। आपकी पुत्रबधुऐं एक वस्त्र अथवा आधे वस्त्र से ही शरीर को ढक कर अपनी काली-काली लटें छिटकाये इस युद्धभूमि में चारों ओर दौड़ रही हैं। इन सबके पुत्र और पति भी मारे जा चुके हैं। अहो। आपका वड़ा भाग्य है कि अर्जुन ने जिसकी एक बांह काट ली थी और सात्यकि ने जिसे मार गिराया था, युद्ध मेें मारे गये उस भूरिश्रवा और शल्य को आप हिंसक जन्तुओं का आहार बनते नहीं देखते हैं तथा इन सब अनेक प्रकार के रूप रंग वाली पुत्रबधुओं को भी आज यहां रणभूमि में भटकती हुई नहीं देख रहे हैं। सौभाग्य से अपने महामनस्वी पुत्र यूपध्वज भूरिश्रवा के रथ पर खण्डित होकर गिरे हुए उसके के स्वर्णमय छत्र को आप नहीं देख पा रहे हैं। श्रीकृष्ण। भूरिश्रवा के कजरारे नत्रों वाली वे पत्नियां सात्यिकी द्वारा मारे गये अपने पति को सब ओर से घेरकर बार-बार शोक से पीडि़त हो रही हैं। केशव। पति शोक से पीडि़त हुई ये अवलाऐं करूणा जनक विलाप करके पति के सामने अत्यन्त दु:ख से पछाड़ खा-खा कर गिर रही हैं। वे कहती है- अर्जुन ने यह अत्यन्त धृणित कर्म कैसे किया? कि दूसरे के साथ युद्ध में लगे रहकर उनकी ओर से असावधान हुए आप जैसे यज्ञ परायण शूरवीर की बाहें काट डाली। उनसे भी बढकर घोर पाप कर्म सात्यिकी ने किया है; क्योंकि उन्होेंन आमरण अनसन के लिये बैठे हुए एक शुद्वात्मा साधु पुरुष के ऊपर खड़ग का प्रहार किया है। धर्मात्मा माहपुरुष तुम अकेले दो महारथियों द्वारा अधर्म पूर्वक मारे जाकर रणभूमि में सो रहे हो। भला, सात्यिकी साधु पुरुषों की सभाओं और बैठकों में अपने लिये कलंक का टीक लगाने वाले इस पाप कर्मों का वर्णन स्वंय अपने ही मुख से किस प्रकार करेंगे? माधव। इस प्रकार यूपध्वज ये स्त्रियां सात्यिकी को कोस रही हैं। श्रीकृष्ण। देखो, यूपध्वज की यह पतली कमर वाली भार्या पति की कटी हुई बाहों को गोद में लेकर बड़े दीन भाव से विलाप कर रही है। वह कहती है- हाय। यह वही हाथ है, जिसने युद्ध में अनेक शूरवीरों का वध, मित्रों का अभयदान, शहस्त्रों गौदान तथा क्षत्रियांे का संहार किया है।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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