महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 48 श्लोक 19-41
अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
देखो, क्या इस कुमार अभिमन्यु में कही कोई दुर्बलता या छिद्र है ? सम्पूर्ण दिशाओं में विचरते हुए अभिमन्यु में आज कोई छोटा सा छिद्र हो तो देखों । इस पुरुषसिंह पाण्डव पुत्र की शीघ्रता तो देखो । शीघ्रतापूर्वक बाणों का संधान करते और छोड़ते समय रथ के भागों में इसके धनुष का मण्डलमात्र दिखायी देता है । शत्रुवीरों का संहार करनेवाला सुभद्राकुमार अभिमन्यु यदपि अपनेबाणों द्वारा मेरे प्राणोंको अत्यन्त कष्ट दे रहा है, मुझे मुर्छित किये देता है, तथापि बारंबार मेरा हर्ष बढ़ा रहा है । रणक्षेत्र में विचरता हुआ सुभद्रा का यह पुत्र मुझे अत्यन्त आनन्दित कर रहा है । क्रोधमें भरे हुए महारथी इसके छिद्र को नही देख पाते है ।शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाता हुआ अपने महान् बाणों से सम्पूर्ण दिशाओं को व्याप्त कर रहा है । मैं युद्धस्थल में गाण्डीवधारी अर्जुन और इस अभिमन्यु मे कोई अन्तर नही देख पाता हूं । तदनन्तर कर्ण ने अभिमन्यु के बाणों से आहत होकर पुन: द्रोणाचार्य से कहा – आचार्य ! मैं अभिमन्यु के बाणों से पीडित होता हुआ भी केवल इसलिये यहां खड़ा हूं कि युद्ध के मैदान में डटे रहना ही क्षत्रिय का धर्म है (अन्यथा मैं कभी भाग गया होता) । तेजस्वी कुमार अभिमन्यु के ये अत्यन्त दारूण और अग्नि के समान तेजस्वी घोर बाण आज मेरे वक्ष:स्थल को विदीर्ण किये देते है । यह सुनकर द्रोणाचार्य ठहाका मारकर हंसते हुए से धीरे-धीरे कर्ण से इस प्रकार बोले । कर्ण ! अभिमन्यु का कवच अमेघ है । यह तरूण वीर शीघ्रतापूर्वक पराक्रम प्रकट करनेवाला है । मैने इसके पिता को कवच धारण करने की विधि बतायी है । शत्रुनगरी पर विजय पानेवाला यह वीर कुमार निश्चय ही वह सारी विधि जानता है (अत: इसका कवच तो अमेघ ही है); परंतु मनोयोगपूर्वक चलाये हुए बाणों से इसके धनुष और प्रत्यचा को काटा जा सकता है । साथ ही इसके घोड़ों की वागडोरों को, घोड़ों को तथा दोनो पार्श्वरक्षको को भी नष्ट किया जा सकता है । महाधनुर्धर राधापुत्र ! यदि कर सको तो यही करो । अभिमन्यु को युद्ध से विमुख करके पीछे इसके ऊपर प्रहार करो, धनुष लिये रहने पर तो इसे सम्पूर्ण देवता और असुर भी जीत नही सकते । यदि तुम इसे परास्त करना चाहते हो तो इसके रथ और धनुष को नष्ट कर दो । आचार्य की यह बात सुनकर विकर्तनपुत्र कर्ण ने बड़ी उतावली के साथ अपने बाणों द्वारा शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाते हुए अस्त्रों का प्रयोग करने वाले अभिमन्यु के धनुष को काट दिया । भोजवंशी कृतवर्मा ने उसके घोड़े मार डाले और कृपाचार्य ने दोनो पार्श्वरक्षकों का काम तमाम कर दिया। शेष महारथी धनुष कट जानेपर अभिमन्यु के ऊपर बाणों की वर्षा करने लगे । इस प्रकार शीघ्रता करने के अवसर पर शीघ्रता करने वाले छ: निर्दय महारथी एक रथहीन बालक पर बाणों की बौछार करने लगे । धनुष कट जाने और रथ नष्ट हो जानेपर तेजस्वी वीर अभिमन्यु अपने धर्म का पालन करते हुए ढाल और तलवार हाथ में लेकर आकाश में उछल पड़ा । अर्जुनकुमार अभिमन्यु कौशिक आदि मार्गो (पैतरों) द्वारा तथा शीघ्रकारिता और बल पराक्रम से पक्षिराज गरूड़ की भॉति भूतल की अपेक्षा आकाश में ही अधिक विचरण करने लगा । समरागण में छिद्र देखनेवाले योद्धा जान पड़ता है यह मेरे ही ऊपर तलवार लिये टूटा पड़ता है इस आशका से ऊपर की ओर दृष्टि करके महाधनुर्धर अभिमन्यु को बींधने लगे । उस समय शत्रुओं पर विजय पानेवाले महातेजस्वी द्रोणाचार्य ने शीघ्रता करते हुए क्षुरप्र के द्वारा अभिमन्यु की मुठी में स्थित हुए मणिमय मूठ से युक्त खग को काट डाला । राधानन्दन कर्ण ने अपने पैने बाणों द्वारा उसके उत्तम ढाल के टुकड़े –टुकड़े कर डाले । ढाल और तलवार से वचित हो जानेपर बाणों से भरे हुए शरीरवाला अभिमन्यु पुन: आकाश से पृथ्वीपर उतर आया और चक्र हाथ में ले कुपित हो द्रोणाचार्य की ओर दौड़ा । अभिमन्यु का शरीर चक्र की प्रभा से उज्जवल तथा धूल राशि से सुशोभित था । उसके हाथ में तेजोमय उज्जवल चक्र प्रकाशित हो रहा था । इससे उसकी बड़ी शोभा हो रही थी । उस रणक्षेत्र में चक्रधारण द्वारा भगवान श्रीकृष्ण का अनुकरण करता हुआ अभिमन्यु क्षणभर के लिये बड़ा भयंकर प्रतीत होने लगा । अभिमन्यु के वस्त्र उसके शरीर से बहनेवाले एकमात्र रूधिर के रंग में रॅग गये थे । भौंहे टेढ़ी होने से उसका मुखमण्डल सब ओर से कुटिल प्रतीत होता था और वह बड़े जोर-जोर से सिंहनाद कर रहा था । ऐसी अवस्था में प्रभावशाली अनन्त बलवान अभिमन्यु उस रणक्षेत्र में पूवोक्त नरेशों के बीच में खड़ा होकर अत्यन्त प्रकाशित हो रहा था ।
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