महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 12 श्लोक 17-36
द्वादश (12) अध्याय: कर्ण पर्व
राजन् ! वे सभी सैनिक समान रूप से मृत्यु को वरण करने की प्रतिज्ञा करके एक दूसरे का साथउ नहीं छोड़ते थे। वे मस्तक पर मोर पंख धारण किये हुए थे। उनके हाथों में धनुष शोभा पाता था। उनके केश बहुत बड़े थे और वे प्रिय वचन बोलते थे। अन्यान्य पैदल और घुड़सवार भी बडत्रे भयंकर पराक्रमी थे। तदनन्तर पुनः दुसरे शूरवीर चेदि, पान्चाल, केकय, कारूप, कोसल, कान्ची निवासी और मागध सैनिक भी हमी लोगों पर चढ़ आये। उनके रथ, घोड़े और हाथी उत्तम काटि के थे। पैदल सैनिक भी बडत्रे भयंकर थे। वे नाना प्रकार के बाजे बजाने वालों के साथ हर्ष में भरकर नाचते कूदते और हँसते थे ।। उस विशाल सेना के मध्य भाग में हाथी की पीठ पर बड़े बड़े महावतों से घिरकर बैठे हुए भीमसेन आपके सैनिकों की ओर बढ़ रहे थे। उसका लोहे का बना हुआ उत्तम कवच श्रेष्ठ रत्नों से विभूषित होकर ताराओं से भरे हुए शरत्कालीन आकाश के समान प्रकाशित हो रहा था। उस समय सुन्दर मुकुट और आभूषणों से विभूषित हो हाथ में तोमर लेकर शरत्काल के मध्यान्ह सूर्य के समान प्रकाशित होने वाले भीमसेन अपने तेज से शत्रुओं को दग्ध करने लगे। उनके उस हाथी को दूर से ही देखकर हाथी पर बैइे हुएण् महामना क्षेमधूर्ति ने महामनस्वी भीमसेन को ललकारते हुए उन पर धावा किया।
जैसे वृक्षों से भरे हुए दो महान् पर्वत दैवेच्छा से परस्पर टकरा रहे हों, उसी प्रकार उन भयानक रूपधारी दोनों गजराजों में भारी युद्ध छिड़ गया। जिनके हाथी एक दूसरे से उलझे हुए थे, वे दोनों वीर क्षेमधूर्ति और भीमसेन सूर्य की किरणों के समान चमकीले तोरों द्वारा एक दूसरे को बल पूर्वक विदीर्ण करते हुए जोर जोर से गर्जना करने लगे। फिर हाथियों द्वारा ही पीछे हटकर वे दोनों मण्डलाकार विचरने लगे और धनुष लेकर एक दूसरे पर बाणों का प्रहार करने लगे। वे गर्जने, ताल ठोंकने और बाणों के शब्द से चारों ओर के योद्धाओं को हर्ष प्रदान करते हुए सिंहनाद कर रहे थे। वे दोनों महाबली और विद्यान् योद्धा उन सूँड़ उठाये हुए दोनों हाथियों द्वारा युद्ध कर रहे थे।
उस समय उन हाथियों के ऊपर लगी हुई पताकाएँ हवा के वेग से फहरा रही थीं। जैसे वर्षाकाल के दो मेघ पानी बरसा रहे हों, उसी प्रकार शक्ति और तामेरों की वर्षा से एक दूसरे के धनुष को काटकर वे दोनों ही परस्पर गर्जन-तर्जन करने लगे। उस समय क्षेमधूर्ति ने भीमसेन की छाती में बडत्रे वेग से एक तोमर धँसा दिया। फिर गर्जना करते हुए उसने छह तोमर और मारे। अपने शरीर में धँसे हुए उन तोमरों द्वारा क्रोध से उद्दीप्त शरीर वाले भीमसेन मेघों द्वारा सात घोड़ों वाले सूर्य के समान सुशोभित हो रहे थे। तब भीमसेन ने सूर्य के समान प्रकाशमान तथा सीधी गति से जाने वाले एक लोहमय तोमर को अपने शत्रु पर प्रयत्न पूर्वक छोड़ा। यह देख कुलूत देश के राजा क्षेमधूर्ति ने अपने धनुष को नवाकर दस सायकों से उस तोमर को काट डाला और साठ बाण मारकर भीमसेन को भी घायल कर दिया। तत्पश्चात् गर्जते हुए पाण्डु पुत्र भीमसेन ने मेघ गर्जना के समान गम्भीर घोष करने वाले धनुष को लेकर अपने बाणों द्वारा शत्रु के हाथी को पीडि़त कर दिया।
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