महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 12 श्लोक 37-45
द्वादश (12) अध्याय: कर्ण पर्व
युद्ध स्थल में भीमसेन के बाण समूहों से पीडि़त हुआ वह गजराज हवा के उड़ाये हुए बादलों के समान रोकने पर भी वहाँ रुक न सका। जैसे आँधी के उड़ाये हुए मेघ के पीछे वायु प्रेरित दूसरा मेघ जा रहा हो, उसी प्रकार भीमसेन का भयंकर गजराज क्षेमधूर्ति के उस हाथी का पीछा करने लगा । उस समय प्रतापी क्षेमधूर्ति ने अपने हाथी को किसी प्रकार रोककर सामने आते हुए भीमसेन के हाथी को बाणों से बींध डाला। इसके बाद अच्छी तरह छोड़े हुए झुकी हुई गाँठ वाले क्षुर नामक बाण से भीमसेन ने शत्रु के धनुष को काटकर उसके हाथी को पुनः अच्छी तरह पीडि़त किया। तब क्षेमधूर्ति ने कुपित होकर रण भूमि में भीमसेन को गहरी चोट पहुँचायी और अनेक नाराचों द्वारा उनके हाथी के सम्पूर्ण मर्म सथानों में आघात किया। भारत ! इससे भीमसेन का महान् गजराज पृथ्वी पर गिर पड़ा।
उसके गिरने से पहले ही भीमसेन कूदकर भूमि पर खड़े हो गये । तदनन्तर भीम ने भी अपने गदा से क्षेमधूर्ति के हाथी को मार डाला। फिर जब उस मरे हुए हाथी से कूदकर क्षेमधूर्ति तलवार उठाये हुए सामने आने लगा, उस समय भीमसेन ने उस पर भी गदा से प्रहार किया। गदा की चोट खाकर उसके प्राध पखेरू उड़ गये और वह तलवार लिये हुए अपने हाथी के पास गिर पड़ा। भरत श्रेष्ठ ! जैसे वजग के आघात से टूट - फूटकर गिरे हुए पर्वत के समीप वज्र का मारा हुआ सिंह गिरा हो, उसी प्रकार उस हाथी के समीप क्षेमधूर्ति धराशायी हो रहे थे। कूलसों का यश बढ़ाने वाले राजा क्षेमधूर्ति को मारा गया देख आपकी सेना व्यथित होकर भागने लगी।
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