महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 115 श्लोक 36-57
पंचदशाधिकशततम (115) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाराज! क्रोध में भरे हुए जल संघ ने भार सहन करने में समर्थ बाणों द्वारा शिनिपौत्र सात्यकि की विशाल छाती पर गहरा आघात किया ।तत्पश्चात् दूसरे तीखे, पैने और पानीदार भल्ल से उसने बाण फेंकते हुए वृष्णिवीर सात्यकि के धनुष को काट डाला। भारत! धनुष काटनेके पश्चात् सात्यकि को उस मागध वीरने हँसते हुए ही पाँच तीखे बाणों द्वारा घायल कर दिया। जल संघ के बहुत से बाणों द्वारा क्षत-विक्षत होने पर पराक्रर्मी महाबाहु सात्यकि कम्पित नहीं हुए। यह अद्भूत सी बात थी। बलवान सात्यकि ने उसके बाणों को कुछ भी न गिनते हुए संभ्रम में न पड़कर दूसरा धनुष हाथ में ले लिया और कहा-‘अरे! खड़ा रह, खड़ा रह’। ऐसा कहकर सात्यकि ने हँसते हुए ही साठ बाणों द्वारा जल संघ की चौड़ी छाती पर गहरी चोट पहुँचायी। फिर अत्यन्त तीखे क्षरप्र से जल संघ के विशाल धनुष को मुट्ठी पकड़ने की जगह से काट दिया और तीन बाण मारकर उसे घायल भी कर दिया। माननीय नरेश! जल संघ ने बाण सहित उस धनुष को त्याग कर सात्यकि पर तुरंत ही तोमर का प्रहार किया। फुफकारते हुए महान् सर्प के समान वह भयंकर तोमर उस महान् समर में सात्यकि की बायीं भुजा को विदीर्ण करता हुआ धरती में समा गया।अपनी बायीं भुजा के घायल होने पर सत्यपराक्रमी सात्यकि ने तीस तीखे बाणों द्वारा जल संघ को आहत कर दिया।तब महाबली जयसंघ ने सौ चन्द्राकार चमकीले चिन्हों से युक्त वृषभ-चर्म की बनी हुई विषाल ढाल और तलवार हाथ में ले ली तथा उस तलवार को घुमाकर सात्यकि पर छोड़ दिया।वह खंड सात्यकि के धनुष को काटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। धरती पर पहुँचकरवह अकात चक्र के समान प्रकाशितहो रहा था।तब सात्यकि ने धनुष को काटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। धरती पर पहुंचकर वह अलातचक्र के समान प्रकाशितहो रहा था।तब सात्यकि ने साखू के तने के समान विशाल, इन्द्र के वज्र की भांति घोर टंकार करने वाले तथा सबके शरीर को विदीर्ण करने में समर्थ दूसरा धनुष हाथ में लेकर उसे कान तक खींचा और कुपित हो एक बाण से जलसंघ को बींध डाला।फिर मधुवंश शिरोमणि सात्यकि ने हँसते हुए से दो छुरों का प्रहार करके जलसंघ की आभूषण भूषित दोनों भुजाओं को काटदिया। तदन्तर सात्यकि ने तीसरे छुरे से उसके सुन्दर दाँतो वाले मनोहर कुण्डलमण्डित विशाल मस्तक को काट गिराया।मस्तक और भुजाओं के गिर जाने से अत्यंत भयंकर दिखायी देने वाले जल संघ के उस धड़ने अपने खून से उस हाथी को नहला दिया।प्रजानाथ! युद्ध स्थल में जल संघ को मारकर फुर्ती करने वाले सात्यकि ने हाथी की पीठ से उसके हौदे को भी गिरा दिया।खून से भीगे शरीर वाला जलसंघ का वह हाथी अपनी पीठ से सटकर लटकते हुए उस हौदे को ढो रहा था। सात्यकि के बाणों से पीड़ितहो वह महान् गजराज घोर चीत्कार करके अपनी ही सेना को कुचलता हुआ भाग निकला।।आर्य! वृष्णि प्रवर सात्यकि के द्वारा जल संघ को मारा गया देख आप की सेना में महान् हाहाकार मच गया।
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