महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 54 श्लोक 26-42

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चतुःपञ्चाशत्तम (54) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: चतुःपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 26-42 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्‍तर पुष्‍कर, गोकर्ण, नैभिषारण्‍य तथा मलयाचल के तीर्थोमें रहकर मन को प्रिय लगनेवाले नियमों द्वारा उसने अपने शरीर को अत्‍यन्‍त क्षीण कर दिया । दूसरे किसी देवता में मन न लगाकर वह सदा पितामह ब्रह्मामें ही सुदृढ़ भक्तिभाव रखती थी । उस कन्‍या ने अपने धर्माचरण से पितामह को संतुष्‍ट कर लिया । राजन ! तब लोको को उत्‍पति के कारण भूत अविनाशी ब्रह्मा उस समय मन ही मन अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न हो सौम्‍य ह्रद्य से प्रीतिपूर्वक उससे बोले । मृत्‍यो ! तू किसलिये इस प्रकार अत्‍यन्‍त कठोर तपस्‍या कर रही है ? तब मृत्‍यु ने भगवान पितामह से फिर इस प्रकार कहा । देव ! प्रभों ! सवेश्‍वर ! मैं आपसे यही वर पाना चाहती हूं कि मुझे रोती-चिल्‍लाती हुई स्‍वस्‍थ प्रजाओं का वध न करना पड़े । महाभाग ! मै अधर्म के भय से बहुत डरती हूं, इसीलिये तपस्‍या में लगी हुई हूं । अविनाशी परमेश्‍वर ! मुझ भयभीत अबला को अभय दान दीजिये । नाथ ! में एक निरपराध नारी हूं और आपके सामने आर्तभाव से याचना करती हूं, आप मेरे आश्रयदाता हों । तब भूत, भविष्‍य और वर्तमान के ज्ञाता भगवान ब्रह्माने उससे कहा । मृत्‍यों ! इन प्रजाओं का संहार करने से तुझे अधर्म नही होगा । भद्रे ! मेरी कही हुई बात किसी प्रकार झूठी नही हो सकती । इसलिये कल्‍याणि ! तू चार श्रेणियों मे विभाजित समस्‍त प्राणियों का संहार कर । सनातन धर्म तुझे सब प्रकार से पवित्र बनाये रखेगा । लोकपाल, यम तथा नाना प्रकार की व्‍याधियॉ तेरी सहायता करेंगी । मैं और सम्‍पूर्ण देवता तुझे पुन: वरदान देंगे, जिससे तू पापमुक्‍त हो अपने निर्मल स्‍वरूप से विख्‍यात होगी । महाराज ! उनके ऐसा कहनेपर मृत्‍यु हाथ जोड़ मस्‍तक झुकाकर भगवान ब्रह्मा को प्रसन्‍न करके उस समय पुन: यह वचन बोली । प्रभो ! यदि इस प्रकार यह कार्य मेरे बिना नही हो सकता तो आपकी आज्ञा मैंने शिरोधार्य कर ली है, परंतु इसके विषय में मैं आपसे जो कुछ कहती हूं, उसे (ध्‍यान देकर) सुनिये । लोभ, क्रोध, असूया, ईर्ष्‍या, द्रोह, मोह, निर्लज्‍जता और एक दूसरे के प्रति कही हुई कठोर वाणी –ये विभिन्‍न दोष ही देहधारियों की देह का भेदन करे । ब्रह्माजी ने कहा – मृत्‍यो ! ऐसा ही होगा । तू उत्‍तम रीति‍ से प्राणियों का संहार कर । शुभे ! इससे तुझे पाप नही लगेगा और मै भी तेरा अनिष्‍ट चिन्‍तन नही करूँगा । तेरे ऑसुओंकी बॅूदे, जिन्‍हें मैने हाथ में ले लिया था, प्राणियों के अपने ही शरीर से उत्‍पन्‍न हुई व्‍याधियॉ बनकर गतायु प्राणियों का नाश करेंगी । तुझे अधर्म की प्राप्ति नही होगी; इसलिये तू भय न कर । निश्‍चय ही, तूझे पाप नही लगेगा । तू प्राणियों का धर्म और उस धर्म की स्‍वामिनी होगी । अत: सदा धर्म में तत्‍पर रहनेवाली और धर्मानुकूल जीवन बितानेवाली धरित्री होकर इन समस्‍त जीवों के प्राणों का नियन्‍त्रण कर । काम और क्रोध का परित्‍याग करके इस जगत् के समस्‍त प्राणियों का संहार कर । ऐसा करने से तुझे अक्षय धर्म की प्राप्ति होगी । मिथ्‍याचारी पुरुषों को तो उनका अधर्म ही मार डालेगा ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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