महाभारत शल्य पर्व अध्याय 10 श्लोक 21-40

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दशम (10) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद

अपने भाई को मारा गया देख कर्ण के दो महारथी पुत्र सुषेण और सत्यसेन नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करते हुए रथियों में श्रेष्ठ पाण्डुपुत्र नकुल पर तुरन्त ही चढ़ आये । राजन् ! जैसे विशाल वन में दो व्याघ्र किसी एक हाथी को मार डालने की इच्छा से उसकी ओर दौडे़ं, उसी प्रकार चतीखे स्वभाव वाले वे दोनों भाई इन महारथी नकुल पर अपने बाण समूहों की वर्षा करने लगे, मानो दो मेघ पानी की धारावाहिक वृष्टि करते हों । सब ओर से बाणों द्वारा विरुद्ध होने पर भी पाण्डुकुमार नकुल हर्ष और उत्साह मे भरे हुए वीर योद्धा की भाँति दूसरा धनुष हाथ में लेकर बडे़ वेग से दूसरे रथ पर जा चढे़ और कुपित हुए काल के समान रणभूमि में खडे़ हो गये । राजन् ! प्रजानाथ ! उन दोनों भाईयों ने झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा नकुल ने रथ के टुकडे़-टुकडे़ करने की चेष्टा आरम्भ की । तब नकुल ने हँसकर रणभूमि में चार पैने बाणोंद्वारा सत्यसेन के चारों घोड़ों को मार डाला राजेन्द्र ! तत्पश्चात् सानपर चढ़ाकर तेज किय हुए सुवर्णमय पंख वाले एक नाराच का संधान करके पाण्डुपुत्र नकुल ने सत्यसेन का धनुष काट दिया । इसके बाद दूसरे रथ पर सवार हो दूसरा धनूष हाथ में लेकर सत्यसेन और सुषेण दोनों ने पाण्डुकुमार नकुल पर धावा किया । महाराज ! माद्री के प्रतापी पुत्र नकुल ने बिना किसी घबराहट के युद्ध के मुहाने पर दो-दो बाणों से उन दोनों भाईयों को घायल कर दिय । इससे सुषेण को बड़ा क्रोध हुआ। उस महारथी नें हँसते-हँसते युद्धस्थल में एक क्षुरप्र के द्वारा पाण्डुकुमार नकुल के विशाल धनुष को काट डाला । फिर तो नकुल क्रोध से तमतमा उठे और दूसरा धनुष लेकर उन्होंने पाँच बाणों से सुषेण को घायल करके एकसे उसकी ध्वजा को भी काट डाला । आर्य ! इसके बाद रणभूमि में सत्यसेन के धनुष और दस्ताने के भी नकुल ने वेगपूर्वक टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। इससे सब लोग जोर-जोर से कोलाहल करने लगे । तब सल्यसेन ने शत्रु का वेग नष्ट करनेवाले दूसरे भार-साधक धनुष को हाथ में लेकर अपने बाणों द्वारा पाण्डुनन्दन नकुल को ढक दिया । शत्रुवीरों का संहार करने वाले नकुल ने उन बाणों का निवारण करके सत्यसेन और सुषेण को भी दो-दो बाणों द्वारा घायल कर दिया । राजेन्द्र ! फिर उन दोनों भाईयों ने भी पृथक्-पृथक् अनेक बाणों से नकुल को बींध डाला और पैने बाणों द्वारा उनके सारथि को घायल कर दिया । तत्पश्चात् सिद्धहस्त और प्रतापी वीर सत्यसेन ने पृथक्-पृथक् दो-दो बाणों से नकुल का धनुष और उनके रथ के ईषादण्ड भी काट डाले । तदनन्तर रथपर खडे़ हुए अतिरथी वीर नकुल ने एक रथशक्ति हाथ में ली, जिसमें सोने का डंडा लगा हुआ था। उसका अग्रभाग कहीं भी कुण्डित होने वाला नहीं था । प्रभो ! तेल में धोकर साफ की हुई वह निर्मल शक्ति जीभ लपलपाती हुई महाविषैली नागिन के समान प्रतीत होती थी। नकुल ने युद्धस्थल में सत्यसेन को लक्ष्य करके ऊपर उठाकर वह रथशक्ति चला दी । नरेश्वर ! उस शक्ति ने रणभूमि में उसके वक्ष-स्थल को विदीर्ण कर दिया। सत्यसेन की चेतना जाती रही और वह प्राणशून्य होकर रथ से पृथ्वी पर गिर पड़ा ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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