महाभारत शल्य पर्व अध्याय 4 श्लोक 21-39
चतुर्थ (4) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
जैसे वायु की प्रेरणा से बादल उड़ते फिरते हैं, वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण द्वारा हाँके जाते हुए घोडे़, जो सुनहरे साजों से सजे होने के कारण अंगों में विचित्र शोभा धारण करते हैं, रणभूमि में अर्जुन की सवारी ढाते हैं। राजन् ! अर्जुन अस्त्रविद्या में कुशल हैं, उन्होंने तुम्हारी को उसी प्रकार भस्म किया है, जैसे भयंकर आग भीष्म ऋतु में बहुत बडे़ जंगल को जला डालती है। जैसे मतवाला हाथी तालाब में घुसकर उसे मथ डालता है, उसी प्रकार हमने अर्जुन को तुम्हारी सेना को मथते और राजाओं को भयभीत करते देखा। जैसे सिंह मृगों के झुंड को भयभीत कर देता है, उसी प्रकार पाण्डुकुमार अर्जुन अपने धनुष की टंकार से तुम्हारे समस्त योद्धाओं को बारंबार भयभीत करते दिखायी दिये हैं।। अपने अंगों में कवच धारण किये श्रीकृष्ण और अर्जुन जो सम्पूर्ण विश्व के महाधनुर्धर और सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ हैं, योद्धाओं के समूह में निर्भय विचरते हैं। भारत ! परस्पर मार-काट मचाते हुए दोनों ओर से योद्धाओं के इस अत्यन्त भयंकर संग्राम को आरम्भ हुए आज सत्रह दिन हो गये। जैसे हवा शरद् ऋतु के बादलों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार अर्जुन की मार से तुम्हारी सेनाएँ सब ओर से तितर-बितर हो गयी हैं। महाराज ! जैसे महासागर में हवा के थपेडे़ खाकर नाव डगमगाने लगती है, उसी प्रकार सव्यसाची अर्जुन ने तुम्हारी सेना को कँपा डाला है। उस दिन जयद्रथ को अर्जुन के बाणों का निशाना बनते देखकर भी तुम्हारा कर्ण कहाँ चला गया था ? अपने अनुयायियों के साथ आचार्य द्रोण कहाँ थे ? मैं कहाँ था ? तुम कहाँ थे ?
कृतवर्मा कहाँ चले गये थे और भाईयोंसहित तुम्हारा भ्राता दुःशासन भी कहाँ था ? राजन् ! तुम्हारे सम्बन्धी, भाई, सहायक और मामा सब-के-सब देख रहे थे तो भी अर्जुन ने उन सबको अपने पराक्रम द्वारा परास्त करके सब लोगों के मस्तक पर पैर रखकर जयद्रथ को मार डाला। अब और कौन बचा है जिसका हम भरोसा करें ? यहाँ कौन ऐसा पुरुष है जो पाण्डुपुत्र अर्जुन पर विजय पायेगा ? महात्मा अर्जुन के पास नाना प्रकार के दिव्यास्त्र हैं। उनके गाण्डीव धनुष का गम्भीर घोष हमारा धैर्य छीन लेता है। जैसे चन्द्रमा, उदित न होने पर रात्रि अन्धकारमयी दिखायी देती है, उसी प्रकार हमारी यह सेना सेनापति के मारे जाने पर श्रीहीन हो रही है। हाथी ने जिसके किनारे के वृक्षों को तोड़ डाला हो, उस सूखी नदी के समान यह व्याकुल हो उठी है। हमारी इस विशाल वाहिनी नेता नष्ट हो गया है। ऐसी दशा में घास-फूस के ढेर में प्रज्वलित होने वाली आग के समान श्वेत घोड़ों वाले महाबाहु अर्जुन इस सेना के भीतर इच्छानुसार विचरेंगे। उधर सात्यकि और भीमसेन दोनों वीरों का जो वेग है, वह सारे पर्वतों को विदीर्ण कर सकता है। समुद्रों को भी सुखा सकता है। प्रजानाथ ! द्यूतसभा में भीमसेन ने जो बात कही थी, उसे उन्होंने सत्य कर दिखाया और जो शेष है, उसे भी वे अवश्य ही पूर्ण करेंगे। तब कर्ण के साथ युद्ध चल रहा था, उस समय कर्ण के सामने ही था तो भी पाण्डवों द्वारा रक्षित सेना उसके लिये दुर्जय हो गयी; क्योंकि गाण्डीवधारी अर्जुन व्यूह रचनापूर्वक उसकी रक्षा कर रहे थे।
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