"महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 9 श्लोक 36-44": अवतरणों में अंतर
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नवम (9) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
सिंह और हाथी के समान पराक्रमी, उदार, लज्जाशील और किसी से पराजित न होने वाले पुरूषसिंह द्रोणका वध मैं नहीं सहन कर सकता । संजय ! जिनके यश और बलका तिरस्कार होना असम्भव था, उन दुर्धर्ष वीर द्रोणाचार्य को समरभूमि में सम्पूर्ण नरेशों के देखते-देखते धृष्टधुम्न ने कैसे मार डाला ? कौन-कौनसे वीर उस समय निकट से द्रोणाचार्य की रक्षा करते हुए उनके आगे रहकर युद्ध करते थे और कौन-कौन योद्धा दुर्गम मार्गपर पैर बढ़ाते हुए उनके पीछे रहकर रक्षा करते थे ? । कौन वीर उन महात्मा के दाहिने पहिये की और कौन बायें पहिये की रक्षा करते थे ? कौर उस युद्धस्थल में युद्ध परायण वीरवर द्रोणाचार्य के आगे थे और किन लोगों ने अपने शरीर का मोह छोड़कर विपक्षियों का सामना करते हुए उस रणक्षेत्र मे मृत्यु का वरण किया था । किन वीरों ने युद्ध में द्रोणाचार्य को उत्तम धैर्य प्रदान किया ? उनकी रक्षा करने वाले मूर्ख क्षत्रियों ने भयभीत होकर युद्धस्थल में उन्हें अकेला तो नहीं छोड़ दिया ? और इस प्रकार शत्रुओं ने सूनेमें तो उन्हें नहीं मार डाला ? जो बड़ी से बड़ी आपत्ति पड़ने पर भी रण में अपने शौर्य के कारण शत्रुको भयवश पीठ नहीं दिखा सकते थे, वे विपक्षियों द्वारा किस प्रकार मारे गये ? संजय ! बड़े भारी संकट में पड़ने पर श्रेष्ठ पुरूष को यही करना चाहिये कि वह यथाशक्ति पराक्रम दिखावे; यह बात द्रोणाचार्य में पूर्णरूप से प्रतिष्ठित थी । तात ! इस समय मेरा मन मोहित हो रहा है; अत: तुम यह कथा बंद करों ! संजय ! फिर होश मे आने पर तुमसे यह समाचार पूछॅूगा ।
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