अब्जक वृषाकपि का जन्म इन्द्र और इन्द्रणी की अराधना के फलस्वरूप भगवान विष्णु और शिव के मिले-जुले अंश से हुआ था। दैत्य महाशनि के संहार हेतु ही 'अब्जक वृषाकपि' का अवतरण हुआ। देवराज इन्द्र की इच्छानुसार ही अब्जक वृषाकपि ने रसातल में जाकर दैत्य महाशनि का वध किया।
इन्द्र का अपमान
दैत्य हिरण्या का पुत्र महाशनि तथा पुत्रवधु पराजिता थी। महाशनि ने एक बार इन्द्र को ऐरावत सहित पकड़कर पिता को सौंप दिया। महाशनि ने इन्द्र को मारा नहीं, क्योंकि वह उसकी बहन इंद्राणी का पति था। महाशनि वरुण से युद्ध करने गया, किन्तु उसकी कन्या से विवाह तथा उससे मित्रता करके लौटा। देवताओं के अनुरोध पर वरुण ने महाशनि से कहकर इन्द्र तथा ऐरावत को छुड़वा दिया। महाशनि ने इन्द्र को बहुत धिक्कार करके छोड़ा कि इतने कुख्यात होने पर भी उसकी जीवनाकांक्षा कितनी प्रबल है। यह भी कहा कि उस दिन से वरुण, गुरु और इन्द्र शिष्य माने जायेंगे। इस घटना से इन्द्र ने स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया। घर जाकर इन्द्र ने इंद्राणी[1] से सारी बात कहकर बदले का उपाय जानना चाहा। इंद्राणी ने कहा कि वह गौतमी के तट पर शिव आराधना करें।
महाशनि का वध
देवराज इन्द्र के ऐसा करने पर शिव प्रकट हुए। इन्द्र ने अरिनाश का साधन मांगा। शिव ने कहा कि केवल उनकी आराधना से कुछ नहीं होगा, उसे तथा इंद्राणी को आराधना करके विष्णु और गंगा को भी प्रसन्न करना चाहिए, शत्रु पर केवल शिव अधिकार नहीं दिलवा सकते। इन्द्र तथा इंद्राणी ने गंगा तथा विष्णु को भी प्रसन्न किया। अन्त में इन्द्र के सामने विष्णु और शिव के मिले-जुले आकार का चक्र और त्रिशूल लिये हुए 'अब्जक वृषाकवि' नामक एक पुरुष प्रकट हुआ, जिसने रसातल में जाकर महाशनि का वध किया।[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 12 |
- ↑ पौलामी, शची
- ↑ ब्रह्मपुराण, 129|-
संबंधित लेख