जड़भरत

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जड़भरत प्राचीन भारत के एक प्रतापी राजा थे। जड़भरत का प्रकृत नाम 'भरत' है, जो पूर्वजन्म में स्वायंभुव वंशी ऋषभदेव के पुत्र थे। मृग के छौने में तन्मय हो जाने के कारण इनका ज्ञान अवरुद्ध हो गया था और वे जड़वत् हो गए थे, जिससे ये जड़भरत कहलाए।


  • जड़भरत की कथा विष्णुपुराण के द्वितीय भाग में और भागवत पुराण के पंचम काण्ड में आती है। इसके अलावा इनकी कथा आदिपुराण नामक जैन ग्रन्थ में भी आती है।
  • शालग्राम तीर्थ में तप करते समय इन्होंने सद्य: जात मृगशावक की रक्षा की थी। उस मृगशावक की चिंता करते हुए इनकी मृत्यु हुई थी, जिसके कारण दूसरे जन्म में जंबूमार्ग तीर्थ में एक "जातिस्मर मृग" के रूप में जड़भरत का जन्म हुआ था। बाद में पुन: जातिस्मर ब्राह्मण के रूप में इनका जन्म हुआ।
  • आसक्ति के कारण ही जन्मदु:ख होते हैं, ऐसा समझकर जड़भरत आसक्तिनाश के लिए जड़वत् रहते थे। इनको सौवीरराज की डोली ढोनी पड़ी थी, पर सौवीरराज को इनसे ही आत्मतत्वज्ञान मिला था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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