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'''अंगज''' [[कामदेव]] का एक नाम है जो स्त्री-पुरुष संयोग की प्रेरणा करने वाला एक पौरणिक [[देवता]] माना गया।
 
'''अंगज''' [[कामदेव]] का एक नाम है जो स्त्री-पुरुष संयोग की प्रेरणा करने वाला एक पौरणिक [[देवता]] माना गया।
 
   
 
   
* [[रति]] इसकी स्त्री, बसन्त इसका साथी तथा कोकिल वाहन है।  
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* [[रति]] इसकी स्त्री, [[बसन्त ऋतु|बसन्त]] इसका साथी तथा [[कोकिल]] वाहन है।  
* अंगज का शस्त्र धनुण (फूलों का बना) है। उन्मादन, शोषण, तापन, संमोहन और स्तंभन इसके पाँच वाण कहे गये है।
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* अंगज का [[शस्त्र]] धनुण (फूलों का बना) है। उन्मादन, शोषण, तापन, संमोहन और स्तंभन इसके पाँच बाण कहे गये है।
* देवाताओं ने इसे [[शंकर]] की समाधि भंग करने के लिए भेजा था। मना करने पर भी जब ये नहीं माना, तब योगिराज शंकर ने इसे जलाकर भस्म कर दिया। तबसे काम देव का नाम अंनग पड़ा।<ref>(भाग-.3.12.29, [[मत्स्य पुराण|मत्स्य]] 7.23,23.30,154.272,291.32, [[वायु पुराण|वायु]] 104.48)</ref>तदुपरान्त रति के विलाप तथा प्रार्थना से प्रसत्र हुए शंकर के वरदान से इसका जन्म [[श्री कृष्ण]] के पुत्र [[प्रद्युम्न]] के घर द्वार का में हुआ। प्रद्युम्न-सत [[अनिरुद्ध]] को अवतार कहा गया है।
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* [[देवता|देवताओं]] ने इसे [[शंकर]] की समाधि भंग करने के लिए भेजा था। मना करने पर भी जब ये नहीं माना, तब योगिराज शंकर ने इसे जलाकर भस्म कर दिया। तबसे काम देव का नाम '''अंनग''' पड़ा।<ref>(भाग-.3.12.29, [[मत्स्य पुराण|मत्स्य]] 7.23,23.30,154.272,291.32, [[वायु पुराण|वायु]] 104.48)</ref> तदुपरान्त रति के विलाप तथा [[प्रार्थना]] से प्रसन्न हुए शंकर के वरदान से इसका जन्म [[श्री कृष्ण]] के [[पुत्र]] [[प्रद्युम्न]] के घर [[द्वारका]] में हुआ। प्रद्युम्न-सुत [[अनिरुद्ध]] को [[अवतार]] कहा गया है।
  
 
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Disamb2.jpg अंगज एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अंगज (बहुविकल्पी)

अंगज कामदेव का एक नाम है जो स्त्री-पुरुष संयोग की प्रेरणा करने वाला एक पौरणिक देवता माना गया।

  • रति इसकी स्त्री, बसन्त इसका साथी तथा कोकिल वाहन है।
  • अंगज का शस्त्र धनुण (फूलों का बना) है। उन्मादन, शोषण, तापन, संमोहन और स्तंभन इसके पाँच बाण कहे गये है।
  • देवताओं ने इसे शंकर की समाधि भंग करने के लिए भेजा था। मना करने पर भी जब ये नहीं माना, तब योगिराज शंकर ने इसे जलाकर भस्म कर दिया। तबसे काम देव का नाम अंनग पड़ा।[1] तदुपरान्त रति के विलाप तथा प्रार्थना से प्रसन्न हुए शंकर के वरदान से इसका जन्म श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के घर द्वारका में हुआ। प्रद्युम्न-सुत अनिरुद्ध को अवतार कहा गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (भाग-.3.12.29, मत्स्य 7.23,23.30,154.272,291.32, वायु 104.48)

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