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'''निशुंभ''' [[दैत्य]] [[शुंभ]] का छोटा भाई था। [[मार्कण्डेय पुराण]] की कथा के अनुसार इन दोनों भाइयों ने पांच हज़ार वर्ष तक [[शिव]] की आराधना की थी, और उनसे अमरता का वर चाहा था। इन दोनों भाइयों की तपस्या से [[देवता]] भयभीत हो उठे। [[इन्द्र]] के कहने पर [[अप्सरा]] [[रंभा]] और [[तिलोत्तमा]] ने उनकी तपस्या भंग कर दी। लेकिन दोनों दैत्यों भाइयों ने फिर से शिव की तपस्या प्रारम्भ कर दी और उनसे वर प्राप्त कर ही लिया।
 
==शिव की तपस्या==
 
==शिव की तपस्या==
अपनी तपस्या से दोनों भाइयों ने शिव से जो प्रार्थना की थी, उसे शिव ने प्रथमत: ठुकरा दिया था, कि उससे अराजकता व्याप्त हो जायेगी और शक्ति के दो केन्द्र हो जायेंगे। दैत्य भाई नहीं माने और फिर से उन्होंने शिव की तपस्या की, जो आठ सौ साल तक चली। देवता भयभीत हो गए। इन्द्रासन हिलने लगा। इन्द्र ने [[कामदेव]] को बुलाया, जो रंभा और तिलोत्तमा को साथ ले उनसे मिला। इन्द्र ने कहा कि शुंभ और निशुंभ की तपस्या में बिघ्न डालो। उनका तप किसी भी प्रकार से भंग करो। अन्यथा वे देवासन पर अधिकार कर लेंगे।
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अपनी तपस्या से दोनों भाइयों ने शिव से जो प्रार्थना की, उसे शिव ने प्रथमत: ठुकरा दिया, कि उससे अराजकता व्याप्त हो जायेगी और शक्ति के दो केन्द्र हो जायेंगे। दैत्य भाई नहीं माने और फिर से उन्होंने शिव की तपस्या की, जो आठ सौ साल तक चली। देवता भयभीत हो गए। इन्द्रासन हिलने लगा। इन्द्र ने [[कामदेव]] को बुलाया, जो रंभा और तिलोत्तमा को साथ ले उनसे मिला। इन्द्र ने कहा कि शुंभ और निशुंभ की तपस्या में बिघ्न डालो। उनका तप किसी भी प्रकार से भंग करो। अन्यथा वे देवासन पर अधिकार कर लेंगे।
 
====वर प्राप्ति====
 
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[[रंभा]] और तिलोत्तमा ने अपने रूप जाल में शुंभ और निशुंभ और को फँसा लिया और पांच हज़ार वर्ष तक उन्हें भोग-विलास में रत रखा। विरत होने पर वे पुन: तपस्यालीन हुए। जब [[शिव]] प्रसन्न हुए, तो उन्हें धन, शक्ति और ऐश्वर्य में देवताओं से बढ़कर रहने का वरदान दिया। भक्तवत्सल शिव विवश थे, ऐसा देवताओं और ऋषियों ने भी माना। वैभव को पाकर शुंभ-निशुंभ मदांध हो गए और देवों को संत्रस्त करने लगे।
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[[रंभा]] और तिलोत्तमा ने अपने रूप जाल में शुंभ और निशुंभ को फँसा लिया और पांच हज़ार वर्ष तक उन्हें भोग-विलास में रत रखा। विरत होने पर वे पुन: अपने उद्देश्य के प्रति तपस्यालीन हुए। जब [[शिव]] प्रसन्न हुए, तो उन्हें धन, शक्ति और ऐश्वर्य में [[देवता|देवताओं]] से बढ़कर रहने का वरदान दिया। भक्तवत्सल शिव विवश थे, ऐसा देवताओं और ऋषियों ने भी माना। वैभव को पाकर शुंभ-निशुंभ मदांध हो गए और देवों को संत्रस्त करने लगे। उनके अत्याचारों से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।
 
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शिव, [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] सभी ने अपने हाथ खड़े कर दिए, क्योंकि हज़ारों वर्ष की उनकी तपस्या बेजोड़ थी। अंतत: [[देवता]] और देवराज [[इन्द्र]] [[दुर्गा]] की शरण में गए, जो त्रिदेवों से ऊपर विश्व शक्ति रूपा, प्रजा-वत्सला और देव संरक्षिका हैं। देवी को देवताओं पर दया आ गई। उन्होंने दैत्यों को युद्ध का निमंत्रण दिया और युद्ध में शुंभ के साथ-साथ निशुंभ का भी वध कर डाला।
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09:50, 31 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

निशुंभ दैत्य शुंभ का छोटा भाई था। मार्कण्डेय पुराण की कथा के अनुसार इन दोनों भाइयों ने पांच हज़ार वर्ष तक शिव की आराधना की थी, और उनसे अमरता का वर चाहा था। इन दोनों भाइयों की तपस्या से देवता भयभीत हो उठे। इन्द्र के कहने पर अप्सरा रंभा और तिलोत्तमा ने उनकी तपस्या भंग कर दी। लेकिन दोनों दैत्यों भाइयों ने फिर से शिव की तपस्या प्रारम्भ कर दी और उनसे वर प्राप्त कर ही लिया।

शिव की तपस्या

अपनी तपस्या से दोनों भाइयों ने शिव से जो प्रार्थना की, उसे शिव ने प्रथमत: ठुकरा दिया, कि उससे अराजकता व्याप्त हो जायेगी और शक्ति के दो केन्द्र हो जायेंगे। दैत्य भाई नहीं माने और फिर से उन्होंने शिव की तपस्या की, जो आठ सौ साल तक चली। देवता भयभीत हो गए। इन्द्रासन हिलने लगा। इन्द्र ने कामदेव को बुलाया, जो रंभा और तिलोत्तमा को साथ ले उनसे मिला। इन्द्र ने कहा कि शुंभ और निशुंभ की तपस्या में बिघ्न डालो। उनका तप किसी भी प्रकार से भंग करो। अन्यथा वे देवासन पर अधिकार कर लेंगे।

वर प्राप्ति

रंभा और तिलोत्तमा ने अपने रूप जाल में शुंभ और निशुंभ को फँसा लिया और पांच हज़ार वर्ष तक उन्हें भोग-विलास में रत रखा। विरत होने पर वे पुन: अपने उद्देश्य के प्रति तपस्यालीन हुए। जब शिव प्रसन्न हुए, तो उन्हें धन, शक्ति और ऐश्वर्य में देवताओं से बढ़कर रहने का वरदान दिया। भक्तवत्सल शिव विवश थे, ऐसा देवताओं और ऋषियों ने भी माना। वैभव को पाकर शुंभ-निशुंभ मदांध हो गए और देवों को संत्रस्त करने लगे। उनके अत्याचारों से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।

वध

शिव, ब्रह्मा, विष्णु सभी ने अपने हाथ खड़े कर दिए, क्योंकि शुंभ-निशुंभ की हज़ारों वर्ष की तपस्या बेजोड़ थी। अंतत: देवता और देवराज इन्द्र माँ दुर्गा की शरण में गए, जो त्रिदेवों से ऊपर विश्व शक्ति रूपा, प्रजा-वत्सला और देव संरक्षिका हैं। देवी को देवताओं पर दया आ गई। उन्होंने दैत्यों को युद्ध का निमंत्रण दिया और युद्ध में शुंभ के साथ-साथ निशुंभ का भी वध कर डाला।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 452 |


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